Published on Dec 04, 2020 Updated 0 Hours ago

फिनटेक के मामले में भारत पूरी दुनिया से आगे है. ये अभूतपूर्व समय है, कारोबार के लिए बिल्कुल सही.

सिंपल: आसान पेमेंट और क्रेडिट वॉलेट के लिए प्लेटफॉर्म

ORF: सिंपल के लिए आपकी सोच क्या थी और अपने प्रोडक्ट के डिज़ाइन और अनुभव के केंद्र में आप ग्राहकों को किस तरह रखती हैं ?

Chaitra Chidanand: सिंपल असल में एक डिजिटल क्रेडिट कार्ड है (प्लास्टिक कार्ड नहीं, तुरंत जारी और यूज़र के लिए बेहद आसान).

सिंपल को सदियों पुरानी खाते की परंपरा से प्रेरणा मिली जिसका इस्तेमाल व्यापारी अपने नियमित ग्राहकों की सेवा करने के लिए करते हैं. पड़ोस की दुकान, दूध वाले, स्थानीय फल दुकानदार, दफ़्तर के बाहर सुट्टा (सिगरेट) बेचने वाला शख़्स, मूल रूप से कोई भी व्यापारी जो किसी ग्राहक को नियमित सेवा मुहैया कराता है वो आम तौर पर अपने स्थायी ग्राहकों के लिए खाते की ये सुविधा मुहैया कराता है. ये कारोबार के लिए ज़रूरी है. इससे भरोसा बनता है, प्रति ग्राहक कमाई बढ़ती है और ग्राहक के लिए लाइफ़ टाइम वैल्यू की तरह है.

कोई भी व्यापारी जो किसी ग्राहक को नियमित सेवा मुहैया कराता है वो आम तौर पर अपने स्थायी ग्राहकों के लिए खाते की ये सुविधा मुहैया कराता है. ये कारोबार के लिए ज़रूरी है. इससे भरोसा बनता है, प्रति ग्राहक कमाई बढ़ती है और ग्राहक के लिए लाइफ़ टाइम वैल्यू की तरह है.

कारोबार के ऑनलाइन होने के साथ जो पेमेंट सिस्टम ऑफलाइन लेन-देन के लिए बना था उसे ऑनलाइन के लिए बदल दिया गया. पुराने सिस्टम में और ज़्यादा परतों को जोड़कर ये बदलाव किया गया. इसकी वजह से लागत बढ़ी, जटिलता आई और सरलता को छोड़ना पड़ा (इस्तेमाल करने वाले के हिसाब से).

हमने पुराने पेमेंट के सिस्टम में एक मौक़ा देखा और उसे नया रूप दिया- इंटरनेट, क्लाउड, सुपर कंप्यूटर हर जेब में है (स्मार्टफ़ोन- जिसके लिए मानव केंद्रित डिज़ाइन और मैन+मशीन इंटेलिजेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया गया).

मानव केंद्रित डिज़ाइन- या अपने ग्राहक को अपने उत्पाद के केंद्र और अनुभव में रखना- एक लगातार प्रक्रिया है जिसमें जानकारी पर बहुत ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत पड़ती है, आस-पास की चीज़ों को देखने की क्षमता चाहिए, छुपी हुई बात को समझने की ज़रूरत है और ग्राहक से बातचीत में उस बात को सुनना पड़ता है जो कही नहीं गई है. इन बातों के लिए औज़ार और रूपरेखा, सर्वे से लेकर डिज़ाइन पर दृष्टिकोण हमारे पास हैं. लेकिन किसी भी औज़ार की तरह, जिसके हाथ में ये है उसकी इच्छाशक्ति और कुशलता पर आख़िरी नतीजा निर्भर करता है.

मैं एक उदाहरण के साथ बताऊंगी कि किस तरह मैंने पिछले साल एक ख़ास उत्पाद के बारे में विचार बनाते हुए ऐसी एक रूपरेखा को लागू किया.

2019 के मध्य में मैं ऑफलाइन व्यापारियों के लिए एक डिजिटल पेमेंट प्रोडक्ट बनाने की संभावना तलाश रही थी- जिसका इस्तेमाल किराने की दुकान में होना था- जो व्यापारी की खाता-बही की जगह ले. मैंने स्थानीय दुकानदारों पर ध्यान दिया (जो दूध, दही और रोज़ाना के ज़रूरी सामान में इस्तेमाल करते थे) जिससे शुरुआत की जा सके.

मानव केंद्रित डिज़ाइन में कारोबार की पहली रीति है समस्या को समझने में असाधारण समय खर्च करना और इसे अच्छी तरह समझना. जैसा कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, “अगर मेरे पास किसी समस्या के हल के लिए एक घंटा है तो मैं 55 मिनट समस्या के बारे में सोचने पर बिताऊंगा और पांच मिनट समस्या के हल के बारे में सोचने पर.”

इस सोच के तहत समस्या को पूरी तरह समझने के लिए मैंने ‘ग़ौर करने, बातचीत, ख़ुद को तल्लीन करने और पैसे का पीछा करने’ की रूपरेखा को अपने गाइड की तरह लागू किया. इस दृष्टिकोण का पालन कर मैंने तीन महत्वपूर्ण बारीकियों का पता लगाया जो मैं भूल सकती थी और जिसकी वजह से नाकाम हो सकती थी:

पहली बारीकी है नये पेमेंट सिस्टम को अपनाने में कैशियर की अहमियत. मेरी रिसर्च के हिस्से के तौर पर, मैं कई किराने की दुकानों, कॉफी शॉप, रेस्टोरेंट्स और फल की दुकानों के आसपास घूमी ताकि ये देख सकूं कि लेन-देन और भुगतान कैसे होता है. मैंने इस प्रक्रिया में शामिल अलग-अलग हिस्सेदारों की भावनाओं पर ख़ास ध्यान दिया. मैंने ख़ामोशी से स्टॉपवॉच का इस्तेमाल कर हर तरह के पेमेंट के तरीक़े में लगने वाले समय को देखा और नतीजों को रिकॉर्ड किया. इससे मुझे पता लगा कि जब कोई पेमेंट का तरीक़ा काम नहीं करता है तो कैशियर बहुत ज़्यादा परेशान हो जाता है. कैशियार की परेशानी उस वक़्त ज़्यादा होती है जब दुकान में भीड़ होती है क्योंकि इससे दुकान में लाइन लग जाती है और लोग बेचैन हो जाते हैं. ऐसे वक़्त में ग्राहक और मैनेजर दोनों कैशियर के ऊपर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करते हैं.

डिजिटल पेमेंट में सबसे ज़्यादा वक़्त लगा (90-120 सेकेंड). अगर इंटरनेट काम करता है तो कार्ड से पेमेंट में 32-35 सेकेंड लगे; कैश पेमेंट में 45-50 सेकेंड लगे (उस वक़्त से जब कार्ड/कैश कैशियर को सौंपे गए से लेकर वापसी तक). इसलिए कैशियर ने ग्राहकों से अनुरोध किया कि वो कार्ड और कैश का इस्तेमाल करें, ख़ास तौर पर भीड़ के दौरान. इससे मुझे ये एहसास हुआ कि ग्राहक भले ही भगवान होता है लेकिन कैशियर पुजारी है. अगर हमारा प्रोडक्ट कामयाब होना है तो हमें ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि कैशियर स्वाभाविक रूप से उस प्रोडक्ट को सर्वोत्तम माने (उसके पास ऐसी कोई वजह नहीं होनी चाहिए कि वो प्रोडक्ट के इस्तेमाल को रोके).

दूसरी बारीकी है प्रोडक्ट के नमूने में कीबोर्ड-शॉर्टकट की भूमिका. एक बार जब ये साफ़ हो गया कि कैशियर एक प्रमुख हिस्सेदार है तो मैंने उनकी भूमिका के बारे में गहराई से पता लगाने का फ़ैसला किया. मैं कुछ समय के लिए गुप्त रूप से एक कैशियर बन गई ताकि ख़ुद महसूस कर सकूं कि कैशियर की ज़िंदगी में पैसे का प्रवाह कैसे होता है. मैंने सीखा कि कैशियर के लिए सबसे परेशान करने वाला समय उस वक़्त होता है जब भीड़ ज़्यादा होती है. उस वक़्त वो याददाश्त पर बहुत ज़्यादा निर्भर होते हैं. कीबोर्ड शॉर्टकट कैशियर के द्वारा की जाने वाली किसी भी डाटा की एंट्री के लिए महत्वपूर्ण है. कीबोर्ड की जगह माउस का इस्तेमाल करने से ज़्यादा समय लगता है, कैशियर का प्रवाह टूटता है और ग़लती करने की आशंका बढ़ती है.

चूंकि हमने प्रोडक्ट का जो नमूना बनाया था, उसमें कुछ डाटा एंट्री करने की ज़रूरत थी, ऐसे में इस छोटी सी जानकारी का पता लगाकर हमने ये सुनिश्चित किया कि हम ग़लती से कैशियर की ज़िंदगी में किसी तरह की जटिलता को नहीं जोड़ें. इसकी जगह हमने ऐसा प्रोडक्ट बनाया जो कैशियर के नज़रिए से 10 गुना ज़्यादा तेज़ हो.

तीसरी बारीकी है अदृश्य अकाउंटेंट. दफ़्तर में पीछे बैठने वाला अकाउंटेंट एक महत्वपूर्ण हिस्सेदार है जो आम तौर पर किसी को दिखता नहीं है. उसका पता तभी लगता है जब आप पैसे के पीछे पड़ें. इस भूमिका के बारे में महत्वपूर्ण बात ये है कि अकाउंटेंट को ख़ुश रखना ज़रूरी नहीं है बल्कि ये सुनिश्चित करना है कि वो नाराज़ नहीं हो जाए. किस बात से वो नाराज़ हो सकते हैं ? ऑर्डर और स्टॉक के साथ पेमेंट सिस्टम के मिलान में कोई भी बिना वजह का अंतर अकाउंटेंट को नाराज़ कर सकता है.

सिंपल को ऑनलाइन प्रोडक्ट बनाने के अनुभव के साथ मैं इसमें विश्वास करने लगी थी कि मिलान एक महत्वपूर्ण काम है जो एपीआई के ज़रिए कंप्यूटर करते हैं, कोई इंसान नहीं. व्यापारी का डैशबोर्ड दूसरे औज़ार के रूप में मौजूद रहता है

इन हिस्सेदारों से बात करके और पैसे के प्रवाह के सवाल पर ध्यान देकर मैंने महसूस किया कि एक किराने की दुकान में हर रोज़ दुकान बंद होने से पहले मिलान का काम बिना कंप्यूटर के होता है. अगर मिलान में कोई भी बिना वजह का अंतर, चाहे वो छोटा हो या बड़ा, होता है तो वो कैशियर के वेतन से काट लिया जाता है. इसका मतलब ये हुआ कि आसानी से इस्तेमाल होने वाला व्यापारी का डैशबोर्ड पहली प्राथमिकता है.

अगर मैंने ध्यानपूर्वक ‘ग़ौर करना, बातचीत, ख़ुद को तल्लीन रखकर और पैसे का पीछा करने’ की प्रक्रिया का पालन नहीं किया होता तो हमारी शुरुआत बिल्कुल अलग होती. आदत की वजह से हमने दूसरी चीज़ों पर ध्यान दिया होता, जैसे ग्राहक और दुकानदार, तो उनके  लिए अच्छा प्रोडक्ट तैयार करते. इस प्रक्रिया में इन महत्वपूर्ण लोगों को छोड़ देते. भगवान यानी ग्राहक भले ही हमें आशीर्वाद दे देते लेकिन पुजारी यानी कैशियर इस आशीर्वाद को रोक देते.

प्रोडक्ट के नमूने के दौरान ही इन बारीकियों का पता लगाने और उनका हल करने की वजह से शुरुआत में ही सभी हिस्सेदार एक सीध में हो गए. कैशियर ने ग्राहकों को हमारा प्रोडक्ट इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया, ख़ास तौर पर भीड़ के समय (ये क़दम शुरुआती दिनों के लिए महत्वपूर्ण था जब हमारे प्रोडक्ट से ग्राहक अनजान थे). चूंकि ज़्यादातर ख़रीदारी भीड़ के समय होती है, ऐसे में हम किसी नई दुकान में अपना प्रोडक्ट लॉन्च करने के चार हफ़्तों के भीतर दुकान के पेमेंट वॉल्यूम के 20 से 25 प्रतिशत पर कब्ज़ा करने में कामयाब रहे.

फिनटेक के मामले में भारत पूरी दुनिया से आगे है. ये अभूतपूर्व समय है, कारोबार के लिए बिल्कुल सही. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि ये आसान है या कामयाबी मिल ही जाएगी. कामयाब होना अभी भी मुश्किल है, ख़ास तौर पर शोरगुल को देखते हुए.

ORF: आप भारत में फिनटेक क्रांति की परिकल्पना कैसे करती हैं और हम क्या सीख दुनिया में लागू कर सकते हैं ?

Chaitra Chidanand: फिनटेक के मामले में भारत पूरी दुनिया से आगे है. ये अभूतपूर्व समय है, कारोबार के लिए बिल्कुल सही. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि ये आसान है या कामयाबी मिल ही जाएगी. कामयाब होना अभी भी मुश्किल है, ख़ास तौर पर शोरगुल को देखते हुए. लेकिन आपने कितनी बार देखा है कि यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस, नोटबंदी और कोविड-19 जैसी घटनाएं एक के बाद एक होती हैं? तकनीक, एक राजनीतिक प्रयोग और एक अचानक की वैश्विक त्रासदी एक के बाद एक हुई, हर घटना स्वीकार करने, इस्तेमाल और वित्तीय तकनीक के विकास में एक ताक़त बनी.

ऐसी कोई ‘सीख’ नहीं है जिसको दुनिया में लागू किया जा सके. हर देश में बैंकिंग गहराई में फैली हुई एक लॉबी है, एक विरासत में मिला हुआ सिस्टम है जिसको बदला नहीं जा सकता या आसानी से फेरबदल भी नहीं किया जा सकता. इसके लिए मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत होती है जो ‘सीख’ के तौर पर नहीं भेजी जा सकती. या तो वो होती है या नहीं होती है; जब ये आपके देश में होती है तो इसका पूरा फ़ायदा उठाना चाहिए.

मैं भारत में देखती हूं कि सरकार और रेगुलेटरी संस्थाओं जैसे रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया- दोनों में प्राइवेट सेक्टर को सुनने और उनके साथ सहयोग के लिए अभूतपूर्व खुलापन है. ये बहुत अच्छी बात है. आख़िरी बार ये 90 के दशक की शुरुआत में हुआ था जिसकी वजह से आईटी सेक्टर में तेज़ी आई थी. आईटी सेक्टर में तेज़ी का सीधा असर जहां सबको मालूम है, वहीं परोक्ष असर ज़्यादा ध्यान देने योग्य है. ये फिनटेक में तेज़ी के असर और प्रभाव की परिकल्पना के समानांतर है.

आईटी की कामयाबी से किसी और बदलाव से ज़्यादा पूंजीवाद को वैध साबित करने में मदद मिली. वो भी ऐसे देश में जहां नीति निर्माता और पढ़े-लिखे लोग बाज़ार और प्राइवेट सेक्टर पर लंबे समय से संदेह जता रहे थे. इसकी वजह से लोगों में ज़बरदस्त ऊर्जा आई. कारोबार को प्रतिष्ठा मिलने की शुरुआत हुई.

मुझे भरोसा है कि फिनटेक सेक्टर भी उसी पल से गुज़र रहा है. ऊर्जा महसूस की जा सकती है. इस क्षेत्र में कारोबार ने अभी-अभी पंख फैलाना शुरू किया है. खुली बनावट, डाटा का बंटवारा, सिद्धांत आधारित विचार की तरफ़ खुला दिमाग़- ये सभी भरोसा देने वाले हैं. मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि अभी बहुत कुछ होना बाक़ी है.

ORF: ये सुनकर बहुत अच्छा लगा कि आपका अगला वेंचर भारत में महिलाओं के बीच वित्तीय समावेशन को और बेहतर बनाने की कोशिश है. इसके लिए आपकी परिकल्पना क्या है ?

Chaitra Chidanand: मेरी परिकल्पना सोचने वाली, बोलने वाली और ख़ुद पैसे का लेन-देन करने वाली महिलाओं का वैश्विक गठबंधन बनाने की है. मेरा मिशन स्टेटमेंट है ‘वैश्विक स्तर पर महिलाओं की ज़िंदगी में पैसे बनाना.’

जब महिलाएं पैसे का लेन-देन करती हैं तो वो इसके साथ घर के सर्वश्रेष्ठ हित में मदद करती हैं. इस तरह महिलाओं को अधिकार देना पूरे घर और समाज को फ़ायदा पहुंचाएगा. जब बात महिलाओं और पैसे के साथ उनके संबंध की आती है तो हमारे पास एक अवसर है अपरिवर्तनीय पीढ़ी में बदलाव के निर्माण का.

जब महिलाएं पैसे का लेन-देन करती हैं तो वो इसके साथ घर के सर्वश्रेष्ठ हित में मदद करती हैं. इस तरह महिलाओं को अधिकार देना पूरे घर और समाज को फ़ायदा पहुंचाएगा. जब बात महिलाओं और पैसे के साथ उनके संबंध की आती है तो हमारे पास एक अवसर है अपरिवर्तनीय पीढ़ी में बदलाव के निर्माण का.

ORF: आपने कई तरह की कंपनियों में काम किया है, स्टार्टअप से लेकर मिड-साइज़ और बड़ी कंपनियों तक. कारोबार के लिए बहुआयामी हुनर निर्माण करने के लिए टेक्नोलॉजिस्ट से आप क्या सीख साझा करेंगी ?

Chaitra Chidanand: मैंने जो सबक़ सीखा है वो हैं:

पहला सबक़: ज्ञान का कोई भी स्रोत हो- किताब, सफल उद्यमी या परंपरागत ज्ञान- उन पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं कीजिए. सच्चाई की खोज में लगे रहिए और उसकी परीक्षा करते रहिए. सीखी हुई चीज़ों को भूलते रहिए और नई बातें फिर से सीखते रहिए (क्योंकि संदर्भ बदलते हैं; जो चीज़ कल काम आई, हो सकता है कि आज वो अप्रासंगिक हो). ये सबक़ ब्रूस ली के सौजन्य से है.

दूसरा सबक़: बेहद तेज़ होने की जगह मूर्ख बनने की कोशिश मत कीजिए. ऐसा करने के लिए हमेशा उलट-पलट करते रहिए. किसी स्थिति या समस्या को उल्टा कर दीजिए. इसे पीछे की ओर से देखिए. हो सकता है कि ये शान की बात नहीं हो लेकिन ये काम करता है. मूर्खता से लगातार परहेज कीजिए और आप कामयाब हो जाएंगे. ये सबक़ चार्ली मुंगेर के सौजन्य से है.

तीसरा सबक़: ख़ुद को आप अपने करियर या ज़िंदगी की पसंद में जंज़ीर से मत बांधिए. उन पर अनुभवों के संग्रह की तरह देखिए. वो आपको ख़ुश करते हैं या उदास, ये महत्वहीन है. वो हमेशा सीख देते हैं जिसको आप तभी ले सकते हैं जब आप ख़ुशी या उदासी के भाव में जकड़े नहीं हैं. यात्रा ज़िंदगी का उद्देश्य है, मंज़िल नहीं. मंज़िल तो मौत है; इसे समय-समय पर याद करना उपयोगी है. ये सबक़ चैत्रा चिदानंद के सौजन्य से है.

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