Author : Anchal Vohra

Published on Nov 14, 2017 Updated 0 Hours ago

आईेसआईएस के खात्मे के धमाके को नहीं, इसकी सिसकियों को सुनना ज्यादा हैरान करने वाला है।

इराक में बढ़ती ईरान की भूमिका

महज छह साल का एक लड़का हाथ में एक बड़ा सा खंजर थामे है। इसी खंजर से वह एक मुलायम से टेड्डी बीयर खिलौने की गर्दन कलम कर देता है और फिर कैमरे की ओर देख कर मुस्कुराता है। यह आईएसआईएस के प्रचार वीडियो का हिस्सा है जिससे वह बच्चों को ‘जूनियर जिहादी’ बनने के लिए प्रेरित करता है। बाजारों के चौराहों पर धड़ से अलग सर सीरिया और इराक के आम लोगों में खौफ का माहौल बना रहे हैं। यह वहशीपन महज इसलिए कि लोग आईएसआईएस की मौजूदगी को कभी चुनौती ना दें। नारंगी रंग के लबादे में ब्रिटिश लहजे में अंग्रेजी बोलता जिहादी जॉन टेलीविजन और मोबाइल फोन स्क्रीन पर सिर कलम करता दिखाई देता है। ये लोगों में खौफ पैदा करने का आईएसआईएस का अंदाज है। एकदम हॉलीवुड की किसी फिल्म जैसा।

आईएसआईएस के लिए सैन्य क्षमता और भौगोलिक इलाके पर नियंत्रण से बढ़ कर ये वीडियो और दृष्य हैं, जो बेहद क्रूर लेकिन बहुत अच्छे से तैयार किए गए हैं। आईएसआईएस ने अपनी क्रूरता का प्रदर्शन कर के खुद को दुनिया के सबसे खौफनाक आतंकवादी संगठन के तौर पर स्थापित किया है। इसका खौफ इतना अधिक है कि कई युद्धों की रिपोर्टिंग कर चुके पत्रकार जिन्होंने संघर्ष के इलाकों में ऐन मौके से खबरें भेजी हैं, वे भी आईएसआईएस के नियंत्रण वाले इलाके में दाखिल होने से डरते हैं। यह गुट सोशल मीडिया पर अपनी प्रचार सामग्री इतने प्रभावशाली तरीके से रखता है कि दुनिया भर की खुफिया एजेंसियां अपने-अपने स्तर पर खाक छानती रह जाती है लेकिन अपने इलाके में इनके प्रसार की कोशिशों को रोक नहीं पातीं। अपने प्रभाव के चरम के दिनों में 35,000 वर्ग मील के इलाके में यह फैला था। यह इलाका जोर्डन के बराबर है। तेल बेच कर हर रोज की इसकी कमाई लगभग 15 लाख डॉलर होती थी। यह खुद को राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रूप से संचालित एक राष्ट्र के रूप में पेश करता था। साथ ही यह लोगों के सामने यह विचार परोस रहा था कि अगर मुस्लिम समुदाय या उम्मा इस्लामिक कानून की उनकी व्याख्या के मुताबिक जीवन बिताए तो वे ऐसी शक्ति बन सकते हैं तो पश्चिम को परास्त कर सकती है।

तीन साल बाद आईएसआईएस के लड़ाके चूहों की तरह भागे-भागे फिर रहे हैं या फिर हजारों की भीड़ उन्हें कत्ल कर रही है।

आईेसआईएस के खात्मे के धमाके को नहीं, इसकी सिसकियों को सुनना ज्यादा हैरान करने वाला है। बगदादी के जो लड़ाके कभी सब कुछ तहस-नहस करने का दावा करते थे, वे अब जिंदगी की खैर मांगते फिर रहे हैं और कई बार तो बुरका पहन कर सुरक्षित इलाके को भागते नजर आते हैं।

फालूजा, मोसूल और तिरकित ही नहीं अपनी स्वघोषित राजधानी रक्का से भी इन्हें खदेड़ दिया गया है। यही वे इलाके थे, जिनमें मुख्य रूप से ये जमे हुए थे। गार्डियन के मुताबिक 2014 से कम से कम 60,000 आईएसआईएस लड़ाके मारे गए हैं और न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक इस समूह के नियंत्रण का इलाका यूफरात नदी के किनारे के 4,000 वर्ग मील में सीमित हो गया है।

दुनिया का सबसे खौफनाक आतंकवादी संगठन परास्त हो चुका है।

तो जश्न मनाया जाए? हां, लेकिन इस जश्न का आयोजन करने के लिए कोई नहीं। पश्चिम एशियाई के मंच पर आतंकवाद के मोड्यूल अक्सर समाप्त होने के बाद फिर से पैदा हो जाते हैं इनका इस्लामिक जिहाद फिर किसी नए नाम से अपनी जड़ें जमा लेता है। इराक में पहले भी लोगों ने राहत की सांस ली है। लेकिन लोगों में इस बार भी खौफ है कि यह गुट फिर से गुरिल्ला युद्ध के जरिए लौट सकता है।


दुनिया का सबसे खौफनाक आतंकवादी संगठन परास्त हो चुका है। क्या यह जश्न का वक्त है? है तो, लेकिन पार्टी कौन दे.


क्या यह गुरिल्ला शक्ति के तौर पर लौट सकता है?

नौ जुलाई को इराकी प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी के आईएसआईएस पर जीत के दावे के चंद दिनों बाद मैं मोसूल में गर्मियों के मौसम में अल नूरी मस्जिद के सामने खड़ी हूं। यह वही मस्जिद है जिसके बुर्ज से एक दिन अबू बकर अल बगदादी ने अपनी खिलाफत का एलान किया था। वह बुर्ज भी समाप्त हो चुका है और यह ऐतिहासिक इमारत भी खंडहर में तब्दील हो चुकी है। मैंने पुराने शहर के ऐसे कुछ लोगों से बातचीत की जो आईएसआईएस की तलवार के ठीक नीचे रहते थे।

अधेड़ उम्र का सुलेमान अरबी मर्दों की पहने जाने वाली पारंपरिक लंबी सफेद पोशाक ताऊब पहने है। यह आईएसआईएस के जाने से खुश तो है, लेकिन यह सोच कर परेशान भी है कि वे वापस ना लौट आएं।

अपनी आंखों में खौफ का मंजर समेटे वह कहता है, “उनके स्लीपर सेल पहले ही लौट आए हैं।”

सुलेमान ने शुरुआत में आईएसआईएस का स्वागत किया था, क्योंकि वह चाहता था कि सुन्नी बहुल मोसूल इलाके में सुन्नियों का ही शासन हो ना कि शिया नियंत्रित सरकार का। वह कहता है कि “मलिकी ही कट्टरपंथी हिंसा के लिए जिम्मेदार है।” वह इराक के प्रधानमंत्री नूरी अल मलीकी की बात कर रहा है जिसके शासन काल में 2006 में इराक में शिया आतंकवादी संगठनों ने सिर उठाया और जिन्होंने सुन्नी जिहादियों के हमलों को जवाबी टक्कर दी। इससे खौफनाग कट्टरपंथी हिंसा शुरु हुई। आईएसआईएस ने इस्लामी कानूनों के तहत शासन का वादा किया था, सुन्नी संगठन था और पुराने शहर में आसानी से स्वीकार्य था। हालांकि यूटोपियन समाज की जो परिकल्पना इसने की थी, वह लंबे समय तक टिक नहीं सकी। आईएसआईएस ने बहुत कठोर सामाजिक नियम लागू किए, अपने संचालन में ऐसी क्रूरता दिखाई जिसके बारे में किसी ने कभी सुना तक नहीं था और धीरे-धीरे इस गुट के लिए समर्थन घट गया। अब सुलेमान कहता है कि मोसूल के सुन्नी इसका कभी समर्थन नहीं करेंगे।

सुलेमान जैसे सुन्नी, जिन्होंने आईएसआईएस को सक्रिय रूप से भले समर्थन नहीं किया हो, लेकिन जिनका छुपे तौर पर इसे समर्थन हासिल था, वे अब निराश हैं और टाइम्स के पश्चिम एशिया संवाददाता रिचर्ड स्पेंसर कहते हैं कि इस्लामी जिहाद के ताबूत में यह आखिरी कील की तरह साबित हुआ। रक्का में आईएसआईएस के खात्मे की रिपोर्टिंग कर रहे स्पेंसर कहते हैं, “आईएसआईएस की क्रूरता और इसकी पराजय ने उन लोगों का भ्रम तोड़ दिया है जो सुन्नी जिहाद को ले कर सहानुभूति रखते थे। खास कर इराक में। इसका यह मतलब भी हो सकता है कि जेहादी आंदोलन ने अपना चरम देख लिया है।”

सेंचुरी रिसर्च फाउंडेशन के सैम हेलर इस मामले पर ज्यादा आशंका रखते हैं। वे कहते हैं, “जिन सामाजिक गड़बड़ियों और असंतोष ने शुरुआत में इसे ताकत प्रदान की थी, उन्हीं के दम पर यह (आईएसआईएस) फिर से ताकतवर होगा। बाहरी झटकों के अभाव में इस बात की आशंका बहुत कम है कि यह गुट 2015 से पहले के अपने चरम रूप तक पहुंचने में कामयाब होगा। लेकिन जिस इलाके में इसकी खिलाफत कायम थी, उसमें गहरे बंटे सामाजिक परिदृष्य का यह एक हिस्सा बना रहेगा।”

आईएसआईएस के आतंकवाद को दुबारा ताकत देने वाले मुद्दों में सांप्रदायिक विभाजन सबसे ऊपर है। सुन्नी समुदाय के लोगों के इस बात को ले कर भारी खौफ है कि शिया वर्ग के लोग राजनीतिक और सैन्य शक्ति को अपने कब्जे में कर सकते हैं। सुलेमान का मानना है कि उसके सामने अब कोई विकल्प नहीं बचा है। सुन्नी होने के नाते उसे लगता है कि शिया उसे निशाना बना सकते हैं। इसके बावजूद उसे पोपुलर मोबलाइजेशन फोर्स या पीएमयू की आलोचना की कोई वजह नहीं आती। पीएमयू में शिया प्रभावी भूमिका में हैं और आईएसआईएस के सफाये में जिसकी सबसे अहम भूमिका रही है।

“वे (पीएमयू) इराक के लिए लड़े हैं। पहले हमें देखने दीजिए कि वे करते क्या हैं।”

सुलेमान का अंदाज बताता है कि शक्ति का संतुलन बदला है और उसे स्वीकार करने की कोशिश की जा रही है। पीएमयू में आसिब अहल अल हक जैसे कुछ शिया गुट जो पहले मेहदी आर्मी के अंग थे, उन पर आरोप लगा है कि वे 2006 के कट्टरपंथी संघर्ष के दौरान सुन्नियों पर हमले करने के दोषी हैं।


दुनिया का सबसे खौफनाक आतंकवादी संगठन परास्त हो चुका है। क्या यह जश्न का वक्त है? है तो, लेकिन पार्टी कौन दे.


सद्दाम के तख्तापलट के बाद, शिया आतंकवादी गुटों ने सुन्नियों से बदला लेने की तैयारी की ताकि वे तानाशाह शासक की ओर से किए गए अत्याचारों का बदला ले सकें। अब सुन्नियों को डर सता रहा है कि आईएसआईएस के अपराधों का उनसे बदला लिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो उससे फिर से आईएसआईएस या ऐसे किसी जिहादी गुट के पैदा होने के लिए अनुकूल माहौल तैयार हो जाएगा। सुन्नियों के गुरिल्ला ताकत के तौर पर फिर से खड़ा होने के लिए यह एक बहुत अहम तत्व होगा।

क्या ये आशंकाएं सच्चाई में तब्दील हो जाएंगी? यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि इराक में अल्पसंख्यक सुन्नी समुदाय के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।

शक्ति का बदलता संतुलन

बगदाद की एक चाय की दुकान पर, सुन्नी समुदाय का साजिद और शिया समुदाय का अली आपस में मजाकिया लहजे में बतिया रहे हैं कि इराक में शिया और सुन्नी समुदाय की शक्ति का संतुलन कैसे बदल गया है।

साजिद बताता है वे आपस में क्या मजाक करते हैं। वह कहता है, “कई बार अली मुझ पर हंसता है और कहता है कि अब तुम्हारे दिन पूरे हो गए हैं।” लेकिन सुन्नी समुदाय का हर व्यक्ति इसे मजाक के तौर पर नहीं लेगा और ना ही हर शिया के लिए यह मजाक की बात है।

जमीनी हकीकत यह है कि सुन्नी समुदाय के ज्यादातर लोगों को लगता है कि वे हाशिए पर धकेल दिए गए हैं और उन्हें दुसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। साजिद स्थिति को इस तरह पेश करता है, “पहले सुन्नी सत्ता में थे और अब शिया हैं।”

इमाम हुसैन की हत्या का शोक मनाने के लिए काले कपड़े पहने अली कहता है कि वह धार्मिक जरूर है लेकिन कट्टरपंथी नहीं। वह कहता है, “सद्दाम, अल कायदा और आईएसआईएस सभी सुन्नी थे। लेकिन सभी सुन्नी ऐसे नहीं होते।” अली दिल से एक राष्ट्रवादी है और सोचता है कि साजिद को वैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़े जैसी स्थिति सद्दाम, अल कायदा या आईएसआईएस के काल में शिया लोगों की होती थी। साजिद और अली दोनों मानते हैं कि बेहतर यही होगा कि दोनों समुदाय के बीच आपसी सहमति बन जाए और अमेरिका या ईरान को इसमें दखल देने का मौका नहीं मिले।

इस इलाके में तेहरान अपनी ताकत खूब जोर-शोर से दिखा रहा है। पिछले छह महीनों के दौरान मैंने सीरिया और इराक का दौरा किया है और इस दौरान ईरान के बढ़ते वर्चस्व को देखा है। यह राह चलते भी आसानी से दिखाई दे जाता है। इराक में हर शिया घर से इमाम अली और उनके बेटे इमाम हुसैन के चित्र लगे झंडे दिखाई दे जाते हैं। उत्साहित हो कर इन पीएमयू ने पड़ोस के सुन्नी इलाकों में भी शिया इमामों और धर्मगुरुओं की तस्वीरें लगा दी हैं। पीएमयू के लड़ाके सुन्नी बहुल इलाकों में ‘या अली’ के नारे लगाते हैं और कुछ तो आईएसआईएस पर जीत का शियाओं की सुन्नियों पर जीत के तौर पर जश्न मना कर उन्हें ललकारते भी हैं। शहर के अंदर की सड़कों और अहम इमारतों पर अयातुल्ला खुमैनी और खमेनी के पोस्टर दिखाई देते हैं। हालांकि ईरान इस बात का भी खास तौर पर ध्यान रखता है कि उसके प्रभाव का प्रदर्शन बहुत अधिक नहीं हो। ऐसा लगता है कि ईरान नहीं चाहता कि पीएमयू में जो राष्ट्रवादी लोग हैं, उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचे, इसलिए बहुत संभल कर चल रहा है। तेहरान समझता है कि शिया शक्ति का उदय ईरान का उदय है और इस जीत का ज्यादा प्रचार करने से उसी का नुकसान होगा। इराक की सत्ता के हिस्सेदारों पर इसकी पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है।

पिछले दशक के दौरान ईरान ने शिया लड़ाकों के बहुत से समूहों की मदद की है, जिनमें कई आत्मघाती समूह भी शामिल हैं, जिन पर सुन्नियों की हत्या का आरोप है। ईरान ने बदर संगठन को भी प्रायोजित किया है, जिसका नेतृत्व हादी अल अमेरी करते हैं। ये वही व्यक्ति हैं जो आने वाले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए प्रबल दावेदार होंगे। इराक के पूर्व प्रधानमंत्री नौरी अल मलीकी के बारे में माना जाता है कि वे ईरान के निर्देश पर ही चलते हैं और विभाजनकारी नीतियों वाले हैं। साजिद और अली दोनों को मंजूर हो ऐसा एक ही उम्मीदवार है और वह है मौजूदा प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी जिनके बारे में माना जा रहा है कि वे सुन्नी समुदाय के साथ संपर्क बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं। देश के सुन्नी समुदाय के साथ ही खाड़ी में भी सही संदेश देने के लिए अबादी ने हाल ही में सऊदी अरब की यात्रा की थी।


पिछले दशक के दौरान ईरान ने बहुत से शिया गुटों की आर्थिक मदद की है, जिनमें ऐसे आत्मघाती गुट भी शामिल हैं, जिन पर सुन्नियों की हत्या के आरोप हैं।


अली और साजिद का अबादी को समर्थन इस उम्मीद पर टिका हुआ है कि वे शिया और सुन्नी समुदायों को एकजुट कर इराक को विकास के सच्चे पथ पर ले कर चल सकेंगे। अली कहता है कि अबादी की समस्या यह है कि वे अमेरिका से कुछ ज्यादा ही करीबी बना रहे हैं। उधर, चाय की चुस्की लेता अली चेताता है, “अगर अबादी को अमेरिका का गुर्गा मान लिया गया तो फिर वह अपनी विश्वसनीयता पूरी तरह खो देंगे।”

स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक हितों के दलदल में अबादी की स्थिति बहुत आसान नहीं है। इराक में पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि उनके लिए एक तरफ ईरान और दूसरी तरफ अमेरिका और सऊदी अरब की चिंताओं के बीच संतुलन बनाना पड़ रहा है। ईरान चाहत है कि पीएमयू की ताकत बनी रहे तो दूसरी ओर अमेरिका और सऊदी अरब उनकी ताकत से चिंतित हैं।

22 अक्तूबर को सऊदी अरब-इराक संयोजन समति की बैठक में शामिल होते हुए अमेरिकी विदेश सचिव रेक्स टिलरसन ने कहा, “इराक में मौजूद विदेशी लड़ाकों को घर लौटना होगा ताकि नियंत्रण फिर से इराकी लोगों के हाथ में आ सके। ”

टिलरसन की इस टिप्पणी में अमेरिका और सऊदी अरब की चिंता साफ दिखाई देती है कि आईएसआईएस के खात्मे के बाद ईरान का दखल ना बढ़ जाए। ईरान और सऊदी अरब क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी हैं और सीरियाई और यमनी लड़ाई में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। दोनों इस्लामी जगत में वर्चस्व की लड़ाई में लगातार जुटे हुए हैं।

टिलरसन की मांग पर ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। जरीफ ने ट्वीट कर कहा, “जो इराकी अपने घर को बचाने के लिए आईएसआईएस के खिलाफ खड़े हुए थे, वे किस देश को लौट जाएं? अमेरिकी विदेश नीति पेट्रोडॉलर से संचालित हो रही है।”

ईरानियन रिवोल्यूशनरी गार्ड की कुद्स फोर्स सीधे ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी को रिपोर्ट करती है और इस बल के नेतृत्वकर्ता कसीम सुलेमानी को संघर्ष के दिनों में कई बार इराक में देखा गया था। कुद्स ने पीएमयू को प्रशिक्षण दिया है और इसके सैनिक खुद भी वहां दिखाई दिए थे। पीएमयू के ज्यादातर लड़ाके इराक के हैं और उन्हें आर्थिक मदद ईरान से मिलती है। आर्थिक सहायता के बावजूद ईरान इन पीएमयू को अपने फैसले स्वतः लेने की छूट देता है, क्योंकि इसे पता है कि शिया पीएमयू की निष्ठा हमेशा उसके प्रति बनी रहेगी। यहां यह ध्यान दिलाना भी जरूरी है कि इराक के अंदर और बाहर दोनों ही जगह अपने लिए स्वीकार्यता तलाश रहे पीएमयू अब राजनीतिक रूप से सही मानी जाने वाली लाइन पर ही चल रहे हैं। उनकी कोशिश है कि अब उनकी पहचान एक राष्ट्रवादी ताकत के तौर पर हो जिसने इराक को आईएसआईएस के जबड़े से बाहर निकाला है।

पीएमयू के इराक में प्रवक्ता हुसैन अल असादी ने मुझे मेरे हाल के बगदार दौरे के दौरान अरबी अनुवादक के जरिए कहा कि सुन्नी भी इराकी ही हैं और उन्हें डरने की कोई जरूरत नहीं। उन्होंने कहा, “हमसे सिर्फ दाएश (आईएसआईएस का अरबी नाम) को डरना चाहिए। ईसाई, सुन्नी और शिया सभी बराबर के इराकी हैं उन्हें हमसे डरने की कोई वजह नहीं।”

ऐसी चिंता बेवजह नहीं है लेकिन ये पूरी सच्चाई नहीं बता रहे। हजारों इराकी लड़कों को जानलेवा युद्ध शक्ति बनने की वजह उनकी कट्टर पहचान बनी है।

पीएमयू इराक में सबसे ताकतवर सैन्य इकाई हैं। ये अमेरिका की ओर से प्रशिक्षित आतंकवाद विरोधी इकाई से भी ज्यादा सक्षम हो गई हैं। ये अभी आने वाले समय में कायम रहने वाली हैं और जब भी इनके सामने समस्या आएगी, यह ईरान से ही संपर्क करेंगे। शिया गुटों का अमेरिका के साथ ज्यादा करीबी रखने का सवाल ही नहीं है। दरअसल केंद्रीय सरकार के लिए आने वाले चुनाव के नजदीक आने के साथ ही पीएमयू के गुटों सहित मौजूदा और संभावित उम्मीदवारों में ईरान के समर्थन को हासिल करने की जरूरत और बढ़ेगी ही।

इस मामले में ईरान का दखल भी आने वाले समय में बना रहने वाला है। पीएमयू का समर्थन कर इसने अपनी जगह पक्की कर ली है। पीएमयू ईराक और सीरिया में ना सिर्फ आईएसआईएस बल्कि दूसरे विरोधी खेमों के लिए भी एक ताकतवर चुनौती बन कर उभरे हैं। आखिरकार इसने तेहरान से ले कर लेबनान तक के इलाके में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने के इसके सपने को पूरा करने में मदद की है। यह कामयाबी एक तरह से ईरान की ओर से वहाबी सुन्नी जिहादियों को एक तोहफा है। सुन्नियों को इस स्थिति में निशाना बनाना एक तरह से फारस की शक्ति बनने के मौके को गंवाना होगा।

इराक में शक्ति हासिल करने का अगला संघर्ष अब चुनाव से पहले ईरान और अमेरिका की ओर से खड़े किए गए शिया उम्मीदवारों के बीच शुरू होगा।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.