Published on Jan 15, 2019 Updated 3 Days ago
रायसीना संवाद | भारत के साथ सामरिक साझेदारी सुदृढ़ करेगा ऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री सुश्री मारिस पायने ने रायसीना डायलॉग में यह बात रेखांकित की कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अनिश्चितता के साथ-साथ बढ़ती प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर यह साफ प्रतीत होता है कि अब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने का समय नहीं रह गया है। इसके साथ ही उन्‍होंने इस क्षेत्र में एक सामरिक आधार-स्‍तंभ के रूप में भारत की भूमिका का समर्थन करते हुए भारत के साथ सुदृढ़ सामरिक साझेदारी सुनिश्चित करने का आह्वान किया है।

चौथे रायसीना डायलॉग के दौरान मंत्रिस्तरीय भाषण देते हुए विदेश मंत्री पायने ने क हा कि प्रतिस्पर्धा तेज होने के साथ ही ऑस्ट्रेलिया और भारत ने एक खुले, समावेशी एवं समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र का शांतिपूर्ण विकास सुनिश्चित करने की अपनी दिलचस्‍पी साझा की है।

उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया का यह स्‍पष्‍ट मानना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला, समृद्ध और स्थिर बनाए रखने के लिए आपस में मिलकर काम करना सभी देशों की जिम्मेदारी है। उन्‍होंने कहा कि इसके साथ ही उन अंतरराष्ट्रीय नियमों की रक्षा करना भी सभी देशों की जिम्मेदारी है जो स्थिरता के पक्षधर हैं और वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए आपसी सहयोग सुनिश्चित करते हैं।

सुश्री पायने ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया ऐसे सुदृढ़ क्षेत्रीय संस्थान और मानदंड बनाने को इच्‍छुक है जो क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में मददगार साबित होते हैं। उन्होंने गैर वाजिब भारी दबाव का सामना करने के उद्देश्‍य से क्षेत्रीय देशों के बीच खुलेपन और लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिए इस क्षेत्र के अन्य साझेदारों का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि आशावान भविष्य का निर्माण करने का दृढ़संकल्प महज एक ऑस्ट्रेलियाई दृष्टिकोण नहीं है, बल्कि भारत भी इसका एक मजबूत पक्षधर है।

उन्‍होंने कहा, “ऑस्ट्रेलिया के लिए भारत के साथ अपनी सफल साझेदारी को और सुदृढ़ करना विशेष मायने रखता है। आपस में मिलकर हम हिंद महासागर में अपने साझा हितों का पूरा ख्‍याल रख सकते हैं। हालांकि, हमें ऐसा केवल स्वयं के लिए ही नहीं, बल्कि समीपवर्ती हिंद महासागर क्षेत्र और उससे आगे अवस्थित अपने सभी मित्रों और साझेदारों के लिए भी करना चाहिए। यही नहीं, यह काम कुछ इस तरह से किया जाना चाहिए जो सभी देशों के लिए सही मायने में खुला और मुफ्त अथवा फ्री हो।”

उन्‍होंने द्विपक्षीय ‘ऑस्‍इंडेक्‍स’ समुद्री अभ्यास के बढ़ते महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा नीति का आधार स्‍तंभ होगा।

उन्होंने ‘चतुर्भुज या चतुष्‍कोणीय गठबंधन की पहल’ का भी उल्लेख किया। इसके साथ ही उन्‍होंने यह बात रेखांकित की कि ऑस्ट्रेलिया भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति की रक्षा के लिए बहुपक्षीय व्‍यवस्‍थाओं का समर्थन करेगा।

सुश्री पायने ने ‘हिंद महासागर क्षेत्रीय व्‍यवस्‍था’ के निर्माण की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

विदेश मंत्री पायने ने यह भी कहा कि ऑस्ट्रेलिया प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ क्षेत्रीय संबंध बनाने और समुद्री सहयोग बेहतर करने में अपनी भूमिका निभा रहा है।

इस उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए विदेश मंत्री ने घोषणा की कि ऑस्ट्रेलिया एक नई ‘दक्षिण एशिया क्षेत्रीय अवसंरचना कनेक्टिविटी पहल’ यानी ‘सारिक’ के जरिए दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय आर्थिक कनेक्टिविटी के निर्माण के लिए आवश्‍यक सहयोग देगा।

इस पहल की रूपरेखा पेश करते हुए उन्होंने कहा कि यह चार वर्षों तक चलने वाला 25 मिलियन डॉलर का कार्यक्रम है, जिसका शुभारंभ इसी वर्ष होगा और जिसके तहत बुनियादी ढांचागत सुविधाओं की गुणवत्ता बेहतर करने एवं विशेषकर परिवहन व ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश करने पर फोकस किया जाएगा।

उन्‍होंने यह कहते हुए अपना भाषण समाप्‍त किया कि भारत और ऑस्ट्रेलिया को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के एक ऐसे ‘आशावान स्‍वरूप’ का निर्माण करना चाहिए जो ‘खुला, समृद्ध, स्थिर और सुरक्षित हो।’

यदि यूरोपीय संघ यह चाहता है कि वह दूसरों पर असर डाले, न कि स्‍वयं वह वैश्विक घटनाक्रमों से प्रभावित हो, तो विश्‍व स्‍तर पर यूरोपीय संघ की भूमिका को अवश्‍य ही बदलना होगा।

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पायने के भाषण के बाद स्पेन के माननीय विदेश एवं सहयोग मंत्री जोसेफ बोरेल ने मंत्रिस्‍तरीय भाषण दिया। आप्रवासन से जुड़े संकट का उल्‍लेख करते हुए मंत्री बोरेल ने कहा कि यूरोप में व्‍याप्‍त भय ने लोकलुभावनवाद के लिए परिस्थितियां उत्‍पन्‍न कर दी हैं।

उन्होंने कहा कि आप्रवासन एक चुनौती है क्योंकि यह किसी भी व्‍यक्ति‍ की पहचान को सवालों के घेरे में ला देता है। इसे नए संस्थानों द्वारा हल नहीं किया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि यूरोपीय देशों की सामाजिक संरचनाएं कुछ इस तरह की हैं कि लोग ‘बड़े पैमाने पर जन पलायन’ की धारणा को स्‍वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्‍होंने यह माना कि यह ‘हकीकत कम, धारणा अधिक’ है।

 उन्‍होंने कहा कि यह हो रहा है। इसके साथ ही यूरोप जनसंख्या की दृष्टि से कमजोर पड़ रहा है। लोकलुभावन पार्टियां भय पैदा करने के लिए इस विरोधाभासी स्थिति का इस्तेमाल करती हैं।

उन्‍होंने कहा कि यूरोप का आविष्कार वैश्वीकरण से पहले रोम की संधि के साथ हुआ था। यूरोप के भीतर मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए इसका सृजन किया गया था। उन्‍होंने विस्‍तार से बताया कि आज समस्या यूरोपीय देशों के बाह्य संबंधों से जुड़ी हुई है जो विश्‍व युद्ध के बाद की वास्तविकताओं से पूरी तरह अलग है।

मंत्री बोरेल ने कहा, “ब्रेक्जिट और बहुपक्षीय दुनिया से अमेरिका के पीछे हट जाने के कारण शेष विश्‍व के साथ यूरोपीय संघ के प्रयोजन पर पुनर्विचार करना अब अपरिहार्य हो गया है।” उन्‍होंने यह माना कि दुनिया में यूरोपीय संघ की भूमिका को लेकर अब भी अनिश्चितता है। उन्‍होंने कहा कि “अब तक यूरोपीय संघ ने हार्ड पावर (अन्य देशों को प्रभावित करने के लिए सैन्य एवं आर्थिक साधनों का इस्‍तेमाल) का उपयोग करने की क्षमता के बिना एक सॉफ्ट पावर (अन्य देशों को प्रभावित करने के लिए कूटनीति और तर्क का इस्‍तेमाल) के रूप में काम किया है।”

उन्‍होंने कहा कि यदि हम दूसरों पर असर डालना चाहते हैं और उभरती वैश्विक वास्तविकताओं से प्रभावित नहीं होना चाहते हैं, तो दुनिया में हमारी भूमिका को बदलने की आवश्यकता है। मंत्री बोरेल का यह मानना है कि यूरोपीय संघ को चीन और भारत जैसी नई ताकतों के साथ अपनी भूमिका पर नए सिरे से गौर करने की आवश्यकता है, जिनकी भूमिका विश्‍व युद्ध के बाद की व्‍यवस्‍था के निर्माण में न के बराबर थी।

उन्‍होंने कहा, “यूरोपीय संघ की ताकत इस तथ्‍य में अंतर्निहित है कि हम अपनी क्षमताओं और संसाधनों को एकजुट करने में सक्षम हैं। हालांकि, इस दिशा में एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण बात यह है कि हमें संप्रभुता को साझा करना होगा।” उन्‍होंने कहा कि समस्या यूरोपीय लोग नहीं हैं, बल्कि यूरोपीय सरकारें हैं जिन्‍हें सत्ता गंवाने का भय सता रहा है।

यह विश्वास व्यक्त करते हुए कि यूरोपीय संघ सफल हो सकता है, उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ को यह सीखना है: वह सदैव एक ‘सॉफ्ट पावर’ ही बना नहीं रह सकता है, उसे अपनी ताकत का उपयोग करने की क्षमता और इच्छाशक्ति की तलाश करनी ही होगी। उन्‍होंने कहा, “यह निश्चित तौर पर यूरोप के लोगों की अगली पीढ़ी की परिकल्‍पना होनी चाहिए।”

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