Published on Oct 11, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत को यह भी उम्मीद करनी होगी कि चीन के साथ ऐसे प्रयास पर्याप्त या पूर्ण रूप से सफल नहीं होंगे.

मोदी-शी अनौपचारिक शिख़र वार्ता: संभल–संभल कर आगे बढ़ाने होंगे कदम!

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने दूसरे अनौपचारिक शिख़र सम्मेलन के लिए तमिलनाडु के महाबलीपुरम में मिले जहाँ 11 और 12 अक्टूबर को दोनों नेताओं की मुलाकात हुई. इस अनौपचारिक शिखर वार्ता की शुरुआत चीन के वुहान में अप्रैल 2018 में उस समय शुरू हुआ जब  सिक्किम के डोकलाम क्षेत्र में दोनों देशों की सेनाएं 73 दिन के लंबे गतिरोध का सामना कर रही थी. ऐसे में यह माना जाता है कि दोनों देशों के बीच तनाव  को कम करने के लिए वुहान समिट का आयोजन किया गया है. शी जिनपिंग की भारत यात्रा की घोषणा ऐसे समय में की गई थी जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और सेना प्रमुख़ जनरल क़मर जावेद बाजवा चीन में थे. शी जिनपिंग व्यापार,  बुनियादी ढांचे और क्षेत्रीय विदेश नीति के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए भारत का दौरा कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि एशिया के इस दो बड़े दिग्गजों की इस मुलाक़ात के क्या मायने है? और इससे इनके संबंधों में कितना सुधार देखने को मिलेगा?

यह असामान्य है कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने पहले की तरह, इस बार जिनपिंग की यात्रा से पहले खुद भारत की यात्रा कर, यहां की सुरक्षा व्यवस्था और शी की देखरेख के लिए की गई तैयारियों का जाएज़ा नहीं लिया और न ही इसके लिए अलग से भारत का दौरा किया.

इस अनौपचारिक शिखर वार्ता के बाद, दोनों देशों ने सीमाओं पर स्थिरता बनाए रखने और आतंकवाद के ख़ात्मे के लिए अपने बीच संचार को मज़बूत करने और विश्वास बहाली क़ायम करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है. भारतीय सुरक्षा विश्लेषकों ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा है कि यह असामान्य है कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने पहले की तरह, इस बार जिनपिंग की यात्रा से पहले खुद भारत की यात्रा कर, यहां की सुरक्षा व्यवस्था और शी की देखरेख के लिए की गई तैयारियों का जाएज़ा नहीं लिया और न ही इसके लिए अलग से भारत का दौरा किया. और इस बैठक में चीन के नेताओं में वांग भी शामिल हैं, जिन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर भारत का समर्थन किया है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कुछ प्रस्तावों को छोड़कर, कश्मीर मुद्दे को नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच हल किया जाना चाहिए. लेकिन इसके बाद शी की तरफ़ से जो  टिप्पणियां आईं  उससे लगा कि वह कश्मीर के हालात पर अपनी नज़र बनाए हुए हैंऔर हमेशा की तरह वो  अपने मूल फ़ायदे से जुड़े मुद्दों पर पाकिस्तान का समर्थन करेंगे. भारत और चीन के बीच यह दूसरा शिख़र सम्मेलन संविधान के अनुच्छेद 370 को प्रभावी ढंग से निरस्त करने के भारत के फैसले से उत्पन्न मतभेदों को कम करने के लिए हो रहा है, क्योंकि बीजिंग ने इस कदम का विरोध किया है, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के साथ सक्रिय रूप से सहयोग किया है.

धारा 370 हटाने के पीछे बीजेपी सरकार का एकमात्र मकसद यह है कि जम्मू और कश्मीर में प्रशासन व्यवस्था में सुधार आए और देश का संविधान लागू किया जा सके. इस तरह का   बदलाव किया जाना कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए, और वैसे भी यह भारत का घरेलू मामला है जिसका किसी भी तरह से न तो अंतरराष्ट्रीय सीमा और न ही देश की बाहरी सीमा पर कोई प्रभाव पड़ता है. इस दिशा में चीन द्वारा लिया गया यह निर्णय सही नहीं हैं और उसे इसपर दोबारा विचार करना चाहिए.

सही मायने में देखा जाए तो,  दूसरा अनौपचारिक शिख़र सम्मेलन आदर्श रूप से वुहान समिट के आदर्श स्थिति पर आधारित किया जाना चाहिए था, जहां मोदी और शी ने इस बात पर सहमति व्यक्त की थी कि “दोनों देशों के बीच इस समग्र संबंध के संदर्भ में शांतिपूर्ण चर्चा के माध्यम से वे अपने  सभी मतभेदों को सुलझाने के लिए परिपक्वता और समझदारी दिखाएंगे. और एक-दूसरे की संवेदनाओं, चिंताओं और आकांक्षाओं का सम्मान करेंगे.” लेकिन यह स्पष्ट है कि बीजिंग को उस भावना का पालन करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के बाद दोनों देशों के संबंधों पर क्या कोई सकारात्मक असर देखने को मिलेगा? इस सवाल का हल ढूंढना थोड़ा कठिन होगा. क्योंकि प्रारम्भ से ही दोनों देशों के संबंध थोड़े जटिल रहे हैं. आज ये देश एशिया की दो महान ताक़तें बन चुके है. वैश्विक मंच पर ये देश अपने संबंधों को सकारात्मक आयाम देने के लिए तत्पर दिखते हैं. ऐसे में यह अनौपचारिक शिखर वार्ता काफी महत्वपूर्ण है और ऐसा नहीं लगता कि इस पूरी प्रक्रिया में पाकिस्तान की कोई बड़ी भूमिका इसे बेअसर कर पाएगी.

इस अनौपचारिक वार्ता के बहाने चीन इस जुगत में है कि वो किस तरह से भारत और अमेरिका के संबंधों को प्रभावित कर सके, जो उसे उसके क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभुत्व स्थापित क़ायम करने की कोशिशों में सबसे बड़ा बाधक साबित हो रहा है.  

यह कई अलग-अलग  सबूतों से साफ़ है कि भारत – चीन के साथ रिश्तों को मज़बूत करने कि दिशा में अब कई तरह के अनौपचारिक शिखर सम्मेलनों में जैसे रूस-भारत-चीन (आरआईसी), ब्राजील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे प्लेटफार्मों में भी शामिल हुआ है. इसके अलावा अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तर पर अपने राजनयिक और सामरिक भागीदारियो में अपना कदम भी बढ़ा रहा है. ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच क्वॉड इसका हालिया उदाहरण है.

इस अनौपचारिक वार्ता के बहाने चीन इस जुगत में है कि वो किस तरह से भारत और अमेरिका के संबंधों को प्रभावित कर सके, जो उसे उसके क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभुत्व स्थापित क़ायम करने की कोशिशों में सबसे बड़ा बाधक साबित हो रहा है.

भारत अपने सामरिक और व्यापारिक संबंधों को वैश्विक शक्तियों के साथ बढ़ाना चाहता है लेकिन चीन यह नहीं चाहता कि भारत–अमेरिका के साथ नज़दीकी बढ़ाएं जिससे कि वह भारत की सहायता से चीन को घेरने में सक्षम हो सके.

संभव है कि नई दिल्ली का रुख़ बदल रहा है. चीन द्वारा इस तरह के सख्त़ क़दमों के सामने, भारत क्वॉड, त्रिपक्षीय समूह जैसे जापान, भारत और अमेरिका (JAI) सहित अन्य मंचों में शामिल हो गया है. भारत जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों और भारत, इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच ट्रैक-II त्रिपक्षीय सहयोग को भी अपग्रेड कर सकता है.

ऐसे में भारत को इस बात के लिए भी तैयार रहना हो कि  चीन के साथ दोस्ती के ये  प्रयास हो सकता है पूरी तरह से न तो सफ़ल हों न ही पर्याप्त.

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