Author : Harsh V. Pant

Published on May 13, 2020 Updated 0 Hours ago

गुट निरपेक्षता का एक दौर था. भारत उसका हिस्सा था. वो गुट निरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा रह चुका है. आज के भारत और उसकी अपेक्षाओं को अपने नेतृत्व से ज़्यादा बड़ी आकांक्षाएं हैं

गुटनिरपेक्ष आंदोलन के साथ मोदी की मुलाक़ात

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार गुट निरपेक्ष आंदोलन के वर्चुअल शिखर सम्मेलन को संबोधित किया. 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद ये पहली बार था जब नरेंद्र मोदी ने गुट निरपेक्ष सम्मेलन को संबोधित किया था. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कोविड-19 के रूप में मानवता पिछले कई दशकों के, ‘सबसे भयंकर संकट’ का सामना कर रही है. साथ ही उन्होंने वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए गुट निरपेक्ष आंदोलन की ज़रूरत को महत्वपूर्ण बताया. मोदी ने कहा कि, ‘गुट निरपेक्ष आंदोलन अक्सर दुनिया की नैतिक आवाज़ रहा है’ और अपनी इस भूमिका को बनाए रखने के लिए गुट निरपेक्ष आंदोलन को अपने दरवाज़े सबके लिए खुले रखने चाहिए. नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि कोविड-19 के संकट ने ये साबित कर दिया है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में कई ख़ामियां हैं. इसीलिए आज भूमंडलीकरण के एक नए रूप की ज़रूरत है. जो निष्पक्षता, बराबरी और मानवीयता के साथ साथ, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में ज़्यादा से ज़्यादा देशों के प्रतिनिधित्व पर आधारित हो. कोविड-19 के बाद की दुनिया में इस बात की संभावनाएं तलाशने की ज़रूरत है. पाकिस्तान की तरफ़ इशारा करते हुए मोदी ने आतंकवाद और फ़ेक न्यूज़ की चुनौतियों को जानलेवा वायरस की संज्ञा दी. ख़ासतौर से ऐसे समय में जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस के संकट से जूझ रही है.

जब से नए कोरोना वायरस की महामारी के प्रकोप का दायरा और इसकी व्यापकता दुनिया के सामने स्पष्ट हुई. तब से मोदी ने बड़ी ही सावधानी से भारत की एक ऐसे देश की छवि बनाने की कोशिश की है, जो वैश्विक संकट के विषयों पर ज़्यादा से ज़्यादा देशों से संवाद करने में सक्षम है

इससे पहले अपने कार्यकाल के दौरान हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन के 2016 और 2019 के दो शिखर सम्मेलनों से दूरी बना ली थी. और इसी कारण से इस वर्चुअल शिखर सम्मेलन के माध्यम से उन्होंने गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलन में पहली बार शिरकत की. मोदी के पहली बार नाम (Non Alignment Movement) के शिखर सम्मेलन में शामिल होने को लेकर लोगों के मन में कई जिज्ञासाएं उठी हैं. लोग ये सोच रहे हैं कि शायद भारत के प्रधानमंत्री ने पहली बार गुट निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता और भारत के लिए इसकी अहमियत को समझा है. हालांकि, नरेंद्र मोदी के गुट निरपेक्ष सम्मेलन को संबोधित करने का ये मतलब निकालना भयंकर भूल होगी. मौजूदा दौर में गुट निरपेक्ष आंदोलन की अप्रासंगिकता का मोदी के इस में दिलचस्पी लेने से कोई संबंध नहीं है. गुट निरपेक्ष देशों का समूह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़ी तेज़ी से अपनी अहमियत खोता जा रहा है. क्योंकि, जब गुट निरपेक्ष आंदोलन की पहली बार परिकल्पना की गई थी, तब से लेकर अब तक दुनिया बहुत बदल गई है. हो सकता है कि नरेंद्र मोदी ने विचारधारा के कारण पहले के गुट निरपेक्ष सम्मेलनों से दूरी बनाई हो, लेकिन, अगर हमें मोदी की कूटनीति के बारे में कुछ भी समझ है, तो उसके अनुसार मोदी क़ुदरती तौर पर व्यवहारिक राजनेता हैं. ख़ास तौर से जब बात विदेश नीति की आती हो तो.

जब से नए कोरोना वायरस की महामारी के प्रकोप का दायरा और इसकी व्यापकता दुनिया के सामने स्पष्ट हुई. तब से मोदी ने बड़ी ही सावधानी से भारत की एक ऐसे देश की छवि बनाने की कोशिश की है, जो वैश्विक संकट के विषयों पर ज़्यादा से ज़्यादा देशों से संवाद करने में सक्षम है. इसके लिए मोदी ने सबसे पहले जिस मंच का इस्तेमाल किया था वो था सार्क. जबकि पिछले छह वर्षों में मोदी ने सार्क को हाशिए पर धकेल देने की कोशिश की है. अब मोदी ने सार्क के मंच का इस्तेमाल करके अपने पड़ोसी देशों से कोविड-19 पर संवाद स्थापित करने की कोशिश की, तो इसका ये मतलब नहीं होता कि मोदी या उनकी सरकार ने सार्क की उपयोगिता या अनुपयोगिता को लेकर अपनी सोच में कोई परिवर्तन किया है.

एक भयंकर विश्वव्यापी संगठन के समय में मोदी ने भारत के पास उपलब्ध हर संसाधन और मंच का इस्तेमाल किया है, ताकि वो दुनिया को ये संदेश दे सकें कि इस महामारी के दौरान, दुनिया के तमाम देश सिर्फ़ अपने घरेलू संकट से न जूझें. बल्कि वो इस संकट से मिल जुलकर निपटने का प्रयास करें. मोदी के इस प्रयास में एक और कोशिश छुपी हुई है. उनका प्रयास ये है कि जिस समय चीन और अमेरिका आपसी संघर्ष में उलझे हैं और उनकी कमज़ोरियां दुनिया के सामने उजागर हो गई हैं. जिसके कारण इस संकट के समय एक वैश्विक नेतृत्व का अभाव है, उस स्थान को भरने की कोशिश भारत करे. भारत ने दिखाया है कि सीमित क्षमताओं वाला एक देश भी विश्व नेता के तौर पर उभर सकता है. भारत अपने जैसे विचार रखने वाले देशों के साथ मिलकर मानवता की चिंताओं को सबके सामने रख सकता है. साथ ही साथ वो दुनिया के छोटे देशों के साथ मिलकर उनके लिए इस संघर्ष से निपटने की क्षमताएं बनाने का काम कर सकता है.

कोविड-19 की महामारी के दौरान भारत की कूटनीति बेहद सक्रिय भूमिका निभा रही है. उसका प्रयास है कि इस मुद्दे पर परिचर्चा उसकी भागीदारी के बिना न हो. इसीलिए गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) और सार्क जैसे मंचों का उपयोग भी मोदी ने ठीक उसी तरह किया है. जैसे उन्होंने G-20 जैसे समूहों का इस्तेमाल किया है. गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोदी ने वैश्विक सहयोग बढ़ाने में भारत की भूमिका का ज़ोर देकर बखान किया. उन्होंने बताया कि भारत ने 123 देशों को ज़रूरी सामान, दवाएं और उपकरण मुहैया कराए हैं क्षेत्रीय स्तर पर भारत पहला देश था, जिसने दक्षिण एशिया में कोविड-19 की महामारी से निपटने के लिए एक करोड़ डॉलर के फंड की स्थापना का प्रस्ताव दिया था.

मोदी का ये क़दम उन लोगों के लिए झटके जैसा हो सकता है, जो ये मानते हैं कि वैचारिक तौर पर किसी बीजेपी सरकार को गुट निरपेक्ष आंदोलन से कोई संबंध नहीं रखना चाहिए. और ये उन लोगों के लिए भी सदमे जैसा है, जो ये मानते हैं कि मोदी ने गुट निरपेक्ष आंदोलन से इसलिए किनारा कर लिया क्योंकि उनके पंडित नेहरू से वैचारिक मतभेद थे. लेकिन, साफ़ है कि मोदी के लिए कोई भी और हर मंच उपयोगी है, जो एक भयंकर वैश्विक संकट के समय भारत की नेतृत्व क्षमता को दुनिया के सामने स्थापित कर सके. इसीलिए वो व्यवहारिक तौर पर हर मंच का उपयोग इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कर रहे हैं.

इस समय भारत को ज़रूरत इस बात की है कि वो अपने जैसे ख़यालात रखने वाले देशों से साझेदारी विकसित करे, ताकि अपनी क्षमताओं का विकास कर सके. अपनी सुरक्षा को लेकर भारत के तर्क और इसकी नेतृत्व क्षमता का मतलब ये होता है कि भारत को विश्व स्तर पर हमेशा अपनी आवाज़ मज़बूती से रखने की क्षमता बनाए रखने की ज़रूरत होगी

इसका ये अर्थ बिल्कुल नहीं है कि गुट निरपेक्ष आंदोलन, भारत की विदेश नीति में दोबारा शामिल हो गया है. जिसकी ख़्वाहिश भारत के कुछ वैचारिक समूहों को बेसब्री से है. सच तो ये है कि भारत जैसे देश के लिए इस तरह की बहस में पड़ना बचकानी हरकत होगी. अपनी सुरक्षा को लेकर भारत की मौजूदा स्थिति दुविधा वाली है. ऐसे में भारत इस समय गुट निरपेक्ष रहने का जोखिम मोल नहीं ले सकता. इसकी वजह साफ है. इस समय भारत को ज़रूरत इस बात की है कि वो अपने जैसे ख़यालात रखने वाले देशों से साझेदारी विकसित करे, ताकि अपनी क्षमताओं का विकास कर सके. अपनी सुरक्षा को लेकर भारत के तर्क और इसकी नेतृत्व क्षमता का मतलब ये होता है कि भारत को विश्व स्तर पर हमेशा अपनी आवाज़ मज़बूती से रखने की क्षमता बनाए रखने की ज़रूरत होगी. और, अमेरिका से बढ़ती नज़दीकी के बावजूद भारत ने दिखाया है कि जब भी बात अपने अहम हितों की आएगी तो भारत, अमेरिका के सामने भी सीना तान कर खड़ा होगा.

गुट निरपेक्षता का एक दौर था. भारत उसका हिस्सा था. वो गुट निरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा रह चुका है. आज के भारत और उसकी अपेक्षाओं को अपने नेतृत्व से ज़्यादा बड़ी आकांक्षाएं हैं. नरेंद्र मोदी अपने ख़ास अंदाज़ में उन अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास कर रहे हैं. आप, गुट निरपेक्ष सम्मेलन को संबोधित करने के मोदी के फ़ैसले से ज़्यादा उत्साहित न हों. वो पहले ही इस आंदोलन को भारतीय कूटनीति से अलग करके दफ़ना चुके हैं. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं आमतौर पर ऐसे अचानक ख़त्म नहीं होते. अपने कटे-फटे रूप में गुट निरपेक्ष आंदोलन आगे भी विश्व मंच पर कभी कभार दिखता रहेगा. अगर मोदी, देश की फौरी कूटनीतिक ज़रूरत के हिसाब से इस मंच का इस्तेमाल करते हैं, तो इससे उन्हें कुछ गंवाना नहीं पड़ेगा. लेकिन, अगर कोई ये सोच रहा है कि अब विश्व राजनीति में अप्रासंगिक हो चुकी किसी विचारधारा को नरेंद्र मोदी गले लगाने जा रहे हैं, तो ये सोचना बहुत बड़ी भूल होगी.

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