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डिजिटल रुपए का निर्माण भारत के लिए एक ऐसा अवसर है, जिसके माध्यम से वो अपने नागरिकों का आर्थिक सशक्तिकरण कर सकता है.
पिछले महीने, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी पार्टी की सेंट्रल कमेटी के पॉलिटिकल ब्यूरो में एलान किया कि चीन को ‘ब्लॉकचेन’ को अपना बनाने का मौक़ा हाथों हाथ लेना चाहिए. शी जिनपिंग के इस एलान के बाद रातों रात ‘ब्लॉकचेन’ पूरी दुनिया में मशहूर हो गई. चीन के अकादमिकसंस्थानों में इस के बारे में शैक्षणिक कोर्स शुरू कर दिए गए. यही नहीं, ‘ब्लॉकचेन’ के सर्च के नतीजे चीन के मैसेजिंग ऐप वी चैट और बायडू पर छा गए. दुनिया भर में क्रिप्टोकरेंसी के समर्थकों ने चीन के राष्ट्रपति की इस घोषणा का ज़बरदस्त स्वागत किया. एक और डिजिटल करेंसी बिटकॉइन की क़ीमत में 40 प्रतिशत का उछाल आ गया. ये बिटकॉइन के एक दशक लंबे अस्तित्व के दौरान एक दिन में आया सब से बड़ा उछाल था.
चीन के लिए इस बात का क्या मतलब हो सकता है, इस बात का अंदाज़ा सब को है. लेकिन, ज़्यादातर जानकार मानते हैं कि, शी जिनपिंग का ये एलान, एक तरह से ‘डिजिटल रेनमिनबी’ के आग़ाज़ का रास्ता खोलेगा. रेनमिनबी, चीन की मुद्रा है. चीन की आधिकारिक डिजिटल करेंसी की दिशा में लंबे समय से काम चल रहा है. ख़ास तौर से जब से, फ़ेसबुक ने लिब्रा के नाम से क्रिप्टोकरेंसी लॉन्च करने का एलान किया है. इसकी क़ीमत स्थिर रहेगी. क्योंकि फ़ेसबुक की इस करेंसी को लिब्रा एसोसिएशन के रिज़र्व का समर्थन मिलेगा. हालांकि, जैसे ही फ़ेसबुक ने लिब्रा डिजिटल करेंसी को लॉन्च करने का श्वेत पत्र जारी किया. उस के बाद से दुनिया भर के राजनेताओं और बैंकरों ने फ़ेसबुक के इस क़दम की आलोचना की. अमेरिका में फ़ेसबुक की इस क्रिप्टोकरेंसी पर रोक लगा दी गई. ये कहा गया कि किसी निजी कंपनी की ये डिजिटल मुद्रा, देश की आधिकारिक मुद्रा की संप्रभुता में दखलंदाज़ी है. वहीं, दूसरी तरफ़, चीन बड़ी तेज़ी से क्रिप्टोग्राफ़ी का एक क़ानून पास करने की दिशा में बढ़ रहा है. ये क़ानून 1 जनवरी 2020 को लागू हो जाएगा.
अब जब कि चीन और पश्चिमी देशों के बीच एक नया डिजिटल करेंसी युद्ध छिड़ने वाला है, तो भारत को इस मामले में नए दृष्टिकोण को अपनाने की ज़रूरत है.
फ़ेसबुक के संस्थापक और सीईओ, मार्क ज़ुकरबर्ग ने हाल ही में अमेरिकी संसद में एक सुनवाई के दौरान लिब्रा के पक्ष में ज़ोर-शोर से तर्क दिए. ज़ुकरबर्ग का कहना था कि जिस तेज़ी से चीन डिजिटल करेंसी अपनाने की दिशा में बढ़ रहा है, उसकी चुनौती से निपटने के लिए अमेरिका के पास लिब्रा की शक़्ल में सब से अच्छा दांव है. क्योंकि, चीन की डिजिटल करेंसी से विश्व व्यापार में अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व घटेगा. ज़ुकरबर्ग ने अमेरिकी संसद में सुनवाई के दौरान, अमेरिकी सांसदों का ध्यान चीन की उस योजना की तरफ़ दिलाया कि चीन अपनी डिजिटल करेंसी को अलीबाबा, टेनसेंट और दूसरी विशाल तकनीकी कंपनियों की मदद से व्यापक स्तर पर लागू करने की तरफ़ बढ़ रहा है. ये उस के महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का अहम हिस्सा है. चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का मक़सद वैश्विक मामलों में चीन का प्रभुत्व बढ़ाने का है. बीआरआई के माध्यम से चीन पुराने सिल्क रूट के समुद्री और स्थलीय व्यापारिक मार्गों को पुनर्जीवित करने में जुटा हुआ है.
अब जब कि चीन और पश्चिमी देशों के बीच एक नया डिजिटल करेंसी युद्ध छिड़ने वाला है, तो भारत को इस मामले में नए दृष्टिकोण को अपनाने की ज़रूरत है. भारत को चाहिए कि वो डिजिटल डॉलर और डिजिटल रेनमिनबी की चुनौती से निपटने के लिए तैयारी शुरू कर दे. भारत का रिज़र्व बैंक बिटकॉइन जैसी डिजिटल करेंसी को लेकर कई वजहों से आशंकित है. आरबीआई को डर है कि बिना किसी नियामक के चलने वाली ये डिजिटल मुद्राएं मनी लॉन्डरिंग और पूंजी को विदेशों में ले जाने का माध्यम बन सकती हैं. हालांकि, रिज़र्व बैंक की ये आशंकाएं वाजिब हैं. लेकिन, सरकार की डिजिटल करेंसी को देश के बैंकिंग सिस्टम से अलग रखने की कोशिश और डिजिटल करेंसी रखने वालों को सख़्त सज़ा देने के प्रयासों ने इस दिशा में किसी नए प्रयोग की संभावनाओं पर विराम लगा रखा है. अपने ख़िलाफ़ ऐसे सख़्त माहौल और नियम क़ायदों को देखते हुए भारत में क्रिप्टो करेंसी का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को अपना कारोबार दूसरे देशों में ले जाने पर मजबूर कर दिया है. वहीं, दूसरी तरफ़ चीन अपनी बौद्धिक संपदा को मज़बूत कर रहा है. आज की तारीख़ में चीन की सरकार, डिजिटल रेनमिनबी में 71 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखती है.
इस साल रिलायंस जियो ने अपने नेटवर्क में 20 करोड़ नए इंटरनेट ग्राहक जोड़े हैं. ऐसे में भारत का विश्व का दूसरा बड़ा डिजिटल राष्ट्र बनना तय है. लेकिन, भारत के पास नई डिजिटल करेंसी की चुनौती से निपटने की कोई रणनीतिक योजना नहीं है. एक तरफ़, भीम यूपीआई के माध्यम से लेन देन ने पिछले महीने एक अरब का आंकड़ा पार कर लिया और सरकार का ये प्रयास बेहद कामयाब रहा है. लेकिन, तकनीक के नज़रिए से देखें, तो भीम यूपीआई, केवल पैसे के लेन देन का तरीक़ा है. जिसके माध्यम से आईएमपीएस के मौजूदा नेटवर्क का लाभ उठाते हुए बैंकों के बीच पैसे की आवाजाही होती है. आज भारत को इस बात की ज़रूरत है कि बैंकिंग व्यवस्था में नया आयाम जोड़ा जाए. ताकि, बैंक अपने सदियों पुराने कामकाज में कुछ नयापन ले आएं. इससे एक नई वित्तीय क्रांति का आग़ाज़ होगा. इस का एक फ़ायदा ये भी होगा कि नए ज़माने की तकनीकी कंपनियां वित्तीय सेवाएं देने के काम में भागीदार बनेंगी और देश के हर नागरिक को इन सुविधाओं का लाभ मिलेगा. जिस तरह आज चीन अपनी डिजिटल करेंसी को बढ़ावा दे रहा है, वैसे ही आज भारत को भी डिजिटल रुपए की ज़रूरत है.
पहले के दौर में रिज़र्व बैंक ने वित्तीय सेवाओं में नए प्रयोग को बढ़ावा दिया है. इसी वजह से पेमेंट के नए गेटवे, डिजिटल वॉलेट, पेमेंट बैंक बाज़ार में आए. और आख़िर में सरकार ने भीम यूपीआई को बाज़ार में उतारा. जिस की वजह से करोड़ों लोग अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से जुड़ सके. वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में नए नए खिलाड़ियों के उतरने की वजह से, नई कंपनियों का उदय हुआ और दूसरी कंपनियां भी डिजिटल लेन देन के लिए प्रोत्साहित हो सकीं. अगर सरकार डिजिटल रुपए को लॉन्च करती है, तो इससे वित्तीय सेवाओं में आया क्रमश: सुधार एक नए चरण में प्रवेश करेगा. साथ ही इसकी मदद से एकीकृत बैंकिंग इंटरफ़ेस का भी जन्म होगा. डिजिटल रुपए की मदद से आने वाली इस नई वित्तीय क्रांति में इस बात की अपार संभावनाएं हैं कि वो आई फ़ोन लॉन्च होने के पहले के मोबाइल फ़ोन वाली वित्तीय तकनीक को एक नए दौर और नई ऊंचाई तक पहुंचा दे.
आज भारत को इस बात की ज़रूरत है कि बैंकिंग व्यवस्था में नया आयाम जोड़ा जाए. ताकि, बैंक अपने सदियों पुराने कामकाज में कुछ नयापन ले आएं. इससे एक नई वित्तीय क्रांति का आग़ाज़ होगा.
लेकिन. डिजिटल रुपए की अहमियत समझने से पहले हमें मौजूदा करेंसी के डिजिटलीकरण और डिजिटल करेंसी के बीच फ़र्क़ को समझना होगा. मौजूदा वास्तविक मुद्रा के डिजिटलीकरण की शुरुआत, इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सिस्टम और इंटरबैंक इंटरनेट सिस्टम की आमद के साथ हुई थी. इन की मदद से कारोबारी बैंक ज़्यादा कार्यकुशलता से काम कर सकते थे. और वो ख़ुद से ही क़र्ज़ के प्रसार का काम कर सकते थे. इससेवित्तीय सिस्टम में धन की सप्लाई बढ़ी. इसकी तुलना में ब्लॉकचेन तकनीक की मदद से डिजिटल करेंसी, देश की बुनियादी मुद्रा पर असर डालेगी. इसका फ़ायदा ये होगा कि देश का केंद्रीय बैंक, मुद्रा निर्माण और आपूर्ति के लिए मौजूदा बैंकिंग व्यवस्था के भरोसे नहीं रहेगा. बल्कि वो डिजिटल करेंसी का निर्माण कर के इसे सीधे इस के उपभोक्ता तक पहुंचा सकेगा.
अमेरिकी डॉलर लंबे समय से विश्व व्यापार की प्रमुख मुद्रा बना हुआ है. इसे दुनिया की रिज़र्व करेंसी कहा जाता है. लंबे समय से अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बिना चुनौती और रोक-टोक के बना हुआ है. इस का एक नतीजा ये हुआ है कि डॉलर की दादागीरी का फ़ायदा उठा कर अमेरिका अक्सर दूसरे देशों पर आर्थिक पाबंदियां लगाता रहा है. हाल ही में अमेरिका के साथ हुए व्यापार युद्ध ने चीन को ज़बरदस्त झटका दिया है. मगर इस ने चीन की आंकें भी खोल दी हैं. इसीलिए अब चीन अपनी डिजिटल मुद्रा को बढ़ावा देकर एक नए और उन्नत वैश्विक वित्तीय सिस्टम की स्थापना में जुट गया है. अब भारत के लिए ख़तरा ये है कि वो पश्चिमी देशों और चीन के बीच इस नए डिजिटल करेंसी के जंग में फंस सकता है. क्यों कि इस दौरान अमेरिका और चीन, नए ज़माने के वित्तीय उत्पाद बाज़ार में उतार कर अपना अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आज भारत की एक संप्रभु डिजिटल करेंसी का होना केवल वित्तीय सिस्टम में नयापन लाने की ज़रूरत भर नहीं रह गई है. आज इसकी ज़रूरत इसलिए भी है कि चीन और अमेरिका के बीच डिजिटल छद्म युद्ध के दौरान भारत अपने हितों की बख़ूबी रक्षा कर सके. ये चुनौती भारत को एक मौक़ा भी प्रदान करती है. क्योंकि अगले एक दशक में भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के मुहाने पर खड़ा है. अगर भारत अपनी आधिकारिक डिजिटल करेंसी शुरू करता है, तो इसके माध्यम से वो विश्व व्यापार में डिजिटल रुपए का प्रभुत्व स्थापित कर सकता है. वो अपने रणनीतिक साझीदारों के साथ इस मुद्रा में लेन देन करने में सक्षम होगा. इस का सब से बड़ा फ़ायदा ये होगा कि डॉलर पर भारत की निर्भरता घटेगी. भारत को ये मान कर चलना चाहिए कि अगर वो आर्थिक और वित्तीय प्रभुत्व की ओर अग्रसर होगा, तो उसे अमेरिका और चीन के विरोघ का सामना करना होगा. भारत को ऐसे हालात के लिए रणनीतिक रूप से तैयार होना चाहिए.
अगर भारत अपनी आधिकारिक डिजिटल करेंसी शुरू करता है, तो इसके माध्यम से वो विश्व व्यापार में डिजिटल रुपए का प्रभुत्व स्थापित कर सकता है. वो अपने रणनीतिक साझीदारों के साथ इस मुद्रा में लेन देन करने में सक्षम होगा.
इस वक़्त डिजिटल पेमेंट करने पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. लेकिन, अगर डिजिटल रुपया बाज़ार में आता है, तो ये परिचर्चा ही ख़त्म हो जाएगी. क्योंकि डिजिटल रुपए के सिस्टम में लेन देने और वित्तीय समझौते शामिल होंगे. इस के अलावा, डिजिटल रुपए की मदद से कैशबैक, पैसे भेजने, क़र्ज़ देने, बीमा, शेयर ख़रीदने और दूसरे वित्तीय लेन देन आसान होंगे. क्योंकि स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट की मदद से ये सभी वित्तीय कार्य करना आसान हो जाएगा. डिजिटल रुपए की मदद से कोर बैंकिंग सिस्टम में बिल्कुल नई तरह की क्रांति आ जाएगी. क्योंकि ऐसे ही प्रयोगों की वजह से भारत की इन्फ़ोसिस और टीसीएस जैसी कंपनियां दुनिया की सब से बड़ी सॉफ्टवेयर आउटसोर्सिंग कंपनियां बनीं. आज वित्तीय लेन देन में सक्रिय तकनीकी कंपनियों के पैरों में नियम क़ायदों की बेड़ियां बंधी हैं. क्योंकि, उन्हें कुछ मामूली और दिखावटी बदलाव के साथ वही बैंकिंग उत्पाद इस्तेमाल करने की आज़ादी है, जो पहले से मौजूद हैं. फिर, इस के लिए ग्राहक जुटाने में उन्हें भारी क़ीमत भी अदा करनी होती है. मौजूदा वित्तीय उत्पाद जैसे वॉलेट, अलग अलग काम करते हैं. लेकिन, डिजिटल रुपया बाज़ार में आएगा, तो इसे इस्तेमाल करने की आज़ादी सब को होगी. इसकी मदद से हर बड़ी तकनीकी कंपनी, एक वित्तीय लेन देन वाली कंपनी में तब्दील हो सकेगी. इस के लिए उसे न तो किसी बैंक से इजाज़त लेनी होगी, न ही किसी बैंक के सहारे की ज़रूरत होगी. इससे हमारे देश की वित्तीय व्यवस्था में इंक़लाबी नयापन आएगा. मौजूदा
बैंकिंग मॉडल बदल जाएंगे. कंपनियों के लिए उन ग्राहकों को लुभाना आसान होगा, जिन की पहुंच बैंकिंग सिस्टम तक नहीं है. साथ ही तकनीकी कंपनियां, डिजिटल रुपए की मदद से उन लोगों को भी वित्तीय सेवाएं दे सकेंगी, जो अभी सरकारी बैंकों की कृपा पर निर्भर हैं.
अब जब कि रिज़र्व बैंक और भारत सरकार, वित्तीय व्यवस्था में आ रहे इस बदलाव की तरफ़ ध्यान दे रहे हैं, तो उन के पास डिजिटल रुपए को लागू करने के दो मॉडल मौजूद हैं. एक है निजी क्षेत्र की क्रिप्टोकरेंसी लिब्रा या फिर किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा समर्थित डिजिटल रेनमिनबी. हालांकि, डिजिटल करेंसी के इन दोनों ही मॉडलों के अपने अपने नफ़ा और और नुक़सान हैं. लेकिन, भारत के लिए सब से अच्छा विकल्प होगा कि वो इन दोनों की ख़ूबियों का मेल कराने वाले अपने मॉडल को विकसित करे. इस में सरकार के साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी हो. इसका फ़ायदा ये होगा कि इस में निजी और सरकारी क्षेत्र की टेलीकॉम, रिटेल, तकनीकी और वित्तीय सेवाओं को साथ आ कर और मिल जुल कर काम करने का मौक़ा होगा. ये सभी मिल कर भारत की डिजिटल मुद्रा यानी डिजिटल रुपए का निर्माण रिज़र्व बैंक की निगरानी और निर्देशन में करेंगे. और चूंकि इस बात की संभावना है कि भारत की ये डिजिटल मुद्रा एक रणनीतिक पहल होगी, तो इस पर नियंत्रण के लिए एक स्वतंत्र संस्था के गठन की ज़रूरत होगी. जैसे कि नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया. ताकि, तकनीक का ऐसा नेटवर्क विकसित किया जा सके, जिस की मदद से देश भर में डिजिटल रुपए का प्रचार प्रसार बिना किसी भेदभाव के हो सके. देश की निजी तकनीकी कंपनियों को इस डिजिटल रुपए के अपने अपने संस्करण विकसित करने की भी आवश्यकता होगी.
अब जब कि रिज़र्व बैंक डिजिटल रुपए पर विचार कर रहा है, तो आरबीआई को ये समझना होगा कि डिजिटल रुपए से केंद्रीय बैंक ही मज़बूत होगा. डिजिटल करेंसी से रिज़र्व बैंक को मौद्रिक नीति पर नियंत्रण करने का मौक़ा मिलेगा. इसकी मदद से आरबीआई, निवेशकों के हितों की सुरक्षा कर सकेगा. सीधे रिज़र्व बैंक के प्रभाव और दख़ल से डिजिटल मुद्रा का निर्माण होगा और आर्थिक व्यवस्था में इसकी आमद-ओ-रफ़्त पर भी उसका नियंत्रण होगा. इससे अपनी नीतियों के निर्माण और उन्हें असरदार तरीक़े से लागू करने में आज जिस तरह रिज़र्व बैंक, कारोबारी बैंकों पर निर्भर है, वो निर्भरता ख़त्म होगी. क्योंकि आज कारोबारी बैंक रिज़र्व बैंक के बनाए नियमों को तभी लागू करते हैं, जब उन्हें उसकी उपयोगिता लगती है. इससे भी अहम बात ये है कि डिजिटल करेंसी होने पर केंद्रीय बैंक के लिए देश भर में क़र्ज़ के लेन देन पर निगरानी करना आसान होगा. इससे रिज़र्व बैंक को घोटाले और फ़र्ज़ीवाड़े रोकने में मदद मिलेगी. साथ ही निवेशकों का पैसा तुरंत सुरक्षित किया जा सकेगा. ये आज के हालात से बिल्कुल उलट होगा, जब रिज़र्व बैंक अपनी निगरानी वाले संस्थानों का हिसाब किताब देखता है. इस के लिए उसे बाहरी और अंदरूनी ऑडिट पर निर्भर रहना पड़ता है. जो कई बार ग़लत तरीक़े से होते हैं और पेश किए जाते हैं. इनका नतीजा घोटालों के तौर पर सामने आता है.
अब जब कि रिज़र्व बैंक डिजिटल रुपए पर विचार कर रहा है, तो आरबीआई को ये समझना होगा कि डिजिटल रुपए से केंद्रीय बैंक ही मज़बूत होगा.
ये बातें बहुत अहम हैं, क्योंकि आज देश की बैंकिंग व्यवस्था में लोगों का भरोसा घटता ही जा रहा है. अपनी एक हालिया रिपोर्ट में, वित्तीय सेवाओं की कंपनी मैकिन्सी ने पाया कि दुनिया भर के बैंक आने वाले वक़्त में आर्थिक तौर पर सेवाएं देने में सक्षम नहीं रह पाएंगे. क्योंकि उनके बिज़नेस मॉडल में कई ख़ामिया हैं. इन बैंकों में फ़ौरन सुधार लाने की सख़्त ज़रूरत महसूस की जा रही है. हाल ही में भारत में सामने आए नॉन बैंकिंग फिनांशियल कंपनियों के संकट की वजह से देश की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हो गई है. पीएमसी बैंक घोटाले की वजह से निवेशकों का पैसा फंस गया है. वो अपनी जमा रक़म निकाल नहीं पा रहे हैं. क्योंकि, पीएमसी के खाते में नॉन परफ़ॉर्मिंग एसेट की मात्रा ज़्यादा हो गई है. इन मिसालों से साफ़ है कि हमारा मौजूदा बैंकिंग मॉडल कितना कमज़ोर है. और हमारी मौद्रिक नीति कितनी बेअसर है.
तीन साल पहले हुई नोटबंदी के बाद आज देश की वित्तीय व्यवस्था में नक़दी की मात्रा बीस फ़ीसद ज़्यादा हो गई है. जबकि नोटबंदी को इसी काले धन के प्रवाह को रोकने की नीयत से लागू किया गया था. ताकि, हमारे देश में कैशलेस अर्थव्यवस्था विकसित हो सके. अब डिजिटल रुपए की शक़्ल में हमारे पास एक और अवसर है कि हम ये लक्ष्य हासिल कर सकें. अपने मौजूदा स्वरूप में डिजिटल लेन देन, नक़द लेन देन का मुक़ाबला नहीं कर पा रहा है. क्योंकि भले ही डिजिटल पेमेंट करना आसान हो गया है. लेकिन, नक़दी के माध्यम से आप बिल्कुल ही गोपनीय लेन देन कर सकते हैं, जिसका कोई हिसाब नहीं होता. ऐसी स्थिति में डिजिटल रुपए की मदद से लेन देन की एक इंक़लाबी व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है. जिस में अगर कोई व्यक्ति या संस्था निजी तौर पर लेन देन करना चाहती है, तो उसे लेन देन की रक़म पर टैक्स दे कर इसकी छूट दी जा सकेगी. इससे असल नक़दी के स्थान पर डिजिटल नक़दी वाली व्यवस्था विकसित हो सकेगी. अपने मौजूदा स्वरूप में लिब्रा या डिजिटल रेनमिनबी ये लक्ष्य हासिल करने में नाकाम हो जाएंगे. डिजिटल रुपए का निर्माण भारत के लिए एक ऐसा अवसर है, जिसके माध्यम से वो अपने नागरिकों का आर्थिक सशक्तिकरण कर सकता है. देश की तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था में डिजिटल करेंसी, आम नागरिकों को इसे मुक्त हस्त से इस्तेमाल करने की ताक़त देगी. उन्हें पुरानी पड़ चुकी बैंकिंग व्यवस्था से निजात मिलेगी. अब समय आ गया है जब भारत को डिजिटल करेंसी को राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के अहम उपकरण के तौर पर विकसित करना चाहिए.
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