सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना का ऐलान किया है. जिसके तहत साल 2024 तक देश के सभी ग्रामीण घरों तक पाइप से पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. यद्यपि यह एक सरहनीय लक्ष्य है लेकिन ये साफ़ नहीं है कि आख़िर सरकार, मौजूदा हालात में इस बेहद मुश्किल लक्ष्य को किस तरीक़े से हासिल करने का इरादा रखती है.
भारत के चेन्नई जैसे कई शहरों में पानी की भयंकर कमी ने हमारे देश में जल संकट की तरफ़ एक बार फिर से लोगों का ध्यान खींचा है. हालांकि जानकार, पर्यावरणविद् और स्वयंसेवी संगठन काफ़ी वक़्त से भारत में आने वाले जल संकट के बारे में ज़ोर-शोर से बता रहे थे. लेकिन, उनकी चेतावनी को तब तक किसी ने तवज्जो नहीं दी, जब तक देश के बड़े शहरों के नलों का पानी सूख नहीं गया. हक़ीक़त ये है कि ख़ुद सरकार के संगठन नीति आयोग ने पिछले साल जून में आने वाले जल संकट के प्रति आगाह करने वाली एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसका नाम था — “कंपोज़िट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स (CWMI), अ नेशनल टूल फॉर वाटर मेज़रमेंट, मैनेजमेंट ऐंड इम्प्रूवमेंट.” इस रिपोर्ट में नीति आयोग ने माना था कि भारत अपने इतिहास के सबसे भयंकर जल संकट से जूझ रहा है. और देश के क़रीब 60 करोड़ लोगों (ये जनसंख्या लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई द्वीपों की कुल आबादी के बराबर है) यानी 45 फ़ीसद आबादी को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. इस रिपोर्ट में आगे आगाह किया गया था कि वर्ष 2020 तक देश के 21 अहम शहरों में भूगर्भ जल (जो कि भारत के कमोबेश सभी शहरों में पानी का अहम स्रोत है) ख़त्म हो जाएगा. वर्ष 2030 तक देश की 40 प्रतिशत आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा.[1] और 2050 तक जल संकट की वजह से देश की जीडीपी को 6 प्रतिशत का नुक़सान होगा. इस रिपोर्ट के जारी होने के ठीक एक साल बाद अब सरकार ने 2024 तक देश के सभी ग्रामीण घरों तक पाइप से पीने का साफ़ पानी पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना का एलान किया है. हालांकि, ये लक्ष्य तारीफ़ के क़ाबिल है. लेकिन, सरकार ने ये साफ़ नहीं किया है कि वो इस लक्ष्य को किस तरह हासिल करने वाली है.
भारत में पानी की समस्या से निपटने के लिए हमें पहले मौजूदा जल संकट की बुनियादी वजह को समझना होगा. मौजूदा जल संकट मॉनसून में देरी या बारिश की कमी नहीं है, जैसा कि भारत का मीडिया दावा कर रहा है. हक़ीक़त तो ये है कि बरसों से सरकार की अनदेखी, ग़लत आदतों को बढ़ावा देने और देश के जल संसाधनो के दुरुपयोग की वजह से मौजूदा जल संकट हमारे सामने खड़ा है.
भारत में पानी की समस्या से निपटने के लिए हमें पहले मौजूदा जल संकट की बुनियादी वजह को समझना होगा. मौजूदा जल संकट मॉनसून में देरी या बारिश की कमी नहीं है, जैसा कि भारत का मीडिया दावा कर रहा है. हक़ीक़त तो ये है कि बरसों से सरकार की अनदेखी, ग़लत आदतों को बढ़ावा देने और देश के जल संसाधनो के दुरुपयोग की वजह से मौजूदा जल संकट हमारे सामने खड़ा है. हमें ये भी समझना होगा कि धरती के जलवायु परिवर्तन से हमारे देश को आने वाले दशकों में पानी के और बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, दुनिया के औद्योगिकरण से पहले के धरती के औसत तापमान में केवल 2 प्रतिशत के इज़ाफ़े से पानी की मांग और आपूर्ति में बहुत फ़ासला पैदा हो जाएगा. इससे भारत की ख़ाद्य सुरक्षा को बड़ा ख़तरा हो सकता है. हालांकि भारत में हाल के दशकों में हर क्षेत्र में पानी की मांग को बढ़ते देखा जा रहा है. फिर चाहे वो खेती हो, कारखाने हों या फिर घरेलू इस्तेमाल. आज हमारे देश में ताज़े पानी का 90 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई के काम के लिए निकाला जाता है. इसीलिए अगर हमें अपने देश में जल प्रबंधन को लेकर किसी योजना पर गंभीर रूप से काम करना है, तो सबसे पहले खेती में इस्तेमाल होने वाले पानी के प्रबंधन पर ग़ौर करना होगा. दुनिया भर में भारत में सबसे ज़्यादा भूगर्भ जल सिंचाई के लिए निकाला जाता है. चीन और अमेरिका जैसे देश हमसे पीछे हैं. (सारणी 1 देखें). इस सारणी से साफ़ है कि चीन, (6.9 करोड़ हेक्टेयर सिंचाई योग्य ज़मीन) जहां सिंचाई के लिए भारत से (6.7 करोड़ हेक्टेयर सिंचाई योग्य ज़मीन) ज़्यादा ज़मीन है, वहां भी खेती के लिए भूगर्भ जल का दोहन कम होता है. यानी हम पानी को बहुत बर्बाद करते हैं और इसका बेवजह इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ये लंबे वक़्त तक नहीं चलने वाला है.
सारणी 1 — खेती के लिए सबसे ज़्यादा भूगर्भ जल निकालने वाले देश:
देश |
खेती में इस्तेमाल होने वाला पानी (billion m3) |
कुल पानी निकासी
(billion m3)
|
खेती में इस्तेमाल पानी का हिस्सा (%) |
सिंचाई योग्य ज़मीन
(m ha)
|
भारत |
688 |
761 |
90 |
67 |
चीन |
358 |
554 |
65 |
69 |
अमेरिका |
175 |
486 |
40 |
26 |
पाकिस्तान |
172 |
184 |
94 |
20 |
इंडोनेशिया |
93 |
113 |
82 |
7 |
स्रोत: विश्व बैंक (2018)
पिछले कई वर्षों में भारत ने सिंचाई के लिए पानी के स्रोत में कई बदलाव होते देखे हैं. सिंचाई योग्य कुल ज़मीन में नहर से सिंचाई वाले इलाक़े की हिस्सेदारी लगातार घटती जा रही है. आज की तारीख़ में भूगर्भ जल से सिंचाई की जाने वाली ज़मीन की हिस्सेदारी बढ़ कर कुल ज़मीन के आधे हिस्से से भी ज़्यादा हो गई है. देश के उत्तरी-पश्चिमी इलाक़ों में भू-गर्भ जल संसाधन का यही दुरुपयोग देश में जल संकट का सबसे बड़ा कारण है. इसके अलावा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बहुत ज़्यादा सिंचाई मांगने वाली फ़सलों जैसे धान और गन्ने की बड़े पैमाने पर बुवाई होती है. हमारे देश में खाया जाने वाला सबसे प्रमुख अनाज चावल है. एक किलो चावल उगाने में 3500 लीटर पानी लगता है.
चावल की खेती के लिए पंजाब पूरी तरह से भू-गर्भ जल पर निर्भर है. हालांकि ज़मीन से उत्पादकता के मामले में तो पंजाब का प्रदर्शन बहुत अच्छा है. लेकिन, पानी के बेहतर इस्तेमाल के मामले में ये पूर्वोत्तर के राज्यों से बहुत पीछे है.
देश की प्रमुख फ़सलों — गेहूं, चावल और गन्ने की खेती में बहुत पानी लगता है. हमारे देश से सबसे ज़्यादा चावल का निर्यात होता है. हर एक किलो चावल के उत्पादन में 3500 लीटर पानी लगता है. पंजाब, चावल का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादकर राज्य है. चावल की खेती के लिए पंजाब पूरी तरह से भू-गर्भ जल पर निर्भर है. हालांकि ज़मीन से उत्पादकता के मामले में तो पंजाब का प्रदर्शन बहुत अच्छा है. लेकिन, पानी के बेहतर इस्तेमाल के मामले में ये पूर्वोत्तर के राज्यों से बहुत पीछे है. पंजाब, एक किलो चावल के उत्पादन के लिए बिहार और पश्चिम बंगाल के मुक़ाबले दो से तीन गुना ज़्यादा पानी इस्तेमाल करता है. पंजाब में बिजली सस्ती है और सरकार, किसानों की फ़सल को ख़रीदने की भी अच्छी नीतियों पर अमल करती है. ऐसे में पंजाब के किसानों के लिए चावल की खेती बहुत फ़ायदेमंद हो जाती है. वहीं, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा के किसानों को ऐसी सुविधाएं नहीं मिलतीं. दुर्भाग्य से पानी की किल्लत वाला हमारा देश चावल का बहुत बड़ा निर्यातक है. इसका मतलब ये हुआ कि हम चावल की शक्ल में असल में दूसरे देशों को अपना बहुमूल्य लाखों लीटर पानी निर्यात कर रहे हैं. यही कहानी गन्ने की फ़सल की है, जो बहुत अधिक पानी मांगती है महाराष्ट्र के किसान बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती करते हैं. और इसकी सिंचाई के लिए भूगर्भ जल का इस्तेमाल करते हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि उनका गन्ना राज्य की चीनी मिलें ख़रीद लेंगी. वहीं, बिहार जहां गन्ने की खेती के लिए सबसे मुफ़ीद माहौल है, वहां देश के कुल गन्ने का केवल 4 फ़ीसद उत्पादन होता है. इसीलिए राज्य सरकारों को चाहिए कि वो कम पानी की खपत वाली फ़सलों जैसे दलहन, ज्वार-बाजरा और तिलहन की खेती को बढ़ावा दें. ख़ास तौर से उन इलाक़ों में जहां भू-गर्भ जल का स्तर लगातार गिर रहा है. चावल की खेती तो उन्हीं इलाक़ों में होनी चाहिए, जहां पानी भरपूर तादाद में उपलब्ध हो. खेती के लिए फ़सलों के ग़लत चुनाव के अलावा खेती में पानी का सही इस्तेमाल भी नहीं होता. भारत में खेतो में पानी भर कर फ़सलों की सिंचाई का तरीक़ा बहुत आम है. इस तरीक़े से सिंचाई में बहुत पानी बर्बाद होता है.
अगर हम अपने देश में क़यामत के दिन यानी उस रोज़ को आने से रोकना चाहते हैं, जब देश में खाना और पानी दोनों ख़त्म हो जाएं, तो हमारे देश में जल संरक्षण के क़दम लागू करने की सख़्त ज़रूरत है.
इसलिए अगर हम अपने देश में क़यामत के दिन यानी उस रोज़ को आने से रोकना चाहते हैं, जब देश में खाना और पानी दोनों ख़त्म हो जाएं, तो हमारे देश में जल संरक्षण के क़दम लागू करने की सख़्त ज़रूरत है. सबसे पहले तो पानी की भारी कमी झेलने वाले उत्तरी-पश्चिमी और मध्य भारत में ज़्यादा सिंचाई मांगने वाली फ़सलों जैसे चावल और गन्ने की खेती बंद होनी चाहिए. किसान दूसरी फ़सलें उगाएं, इसके लिए उन्हें तरह-तरह के प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए. ताकि वो ज्वार-बाजरा जैसी फ़सलें उगाएं, जो कम सिंचाई मांगती हैं और जिन पर जलवायु परिवर्तन का असर भी नहीं होता. इसके अलावा सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन जैसे तरीक़ों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिसमें फ़सलों पर पानी का छिड़काव होता है, न कि खेतों को पानी से लबालब भर दिया जाता है. ड्रिप इरीगेशन को सरकारी सहयोग से तेज़ी से बढ़ावा दिया जाना चाहिए. तीसरा क़दम ये हो सकता है कि ज़मीन के नीचे सिंचाई करने, बुवाई के नए तरीक़ों और खेती के नए तौर-तरीक़ों जैसे प्रिसिज़न फार्मिंग को भी बढ़ावा दिए जाने की ज़रूरत है. इससे पानी का खेती में इस्तेमाल कम होगा.
पर, क्या कोई सुन रहा है?
संदर्भ
[i] https://niti.gov.in/content/composite-water-management-index-june-2018-0
श्रेया भरद्वाज ORF नई दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं.
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