Author : Manoj Joshi

Published on Sep 17, 2020 Updated 0 Hours ago

अमेरिका का नया रुख़ आसियान के लिए उत्साह बढ़ाने वाला है लेकिन उसे बीजिंग की ताक़त के बारे में अच्छी तरह पता है.

दक्षिणी चीन सागर में, चीनी अधिपत्य को चुनौती देता अमेरिका की कूटनीतिक चाल

अमेरिका ने बुधवार को चीन पर उस वक़्त दबाव बढ़ाया जब उसने दक्षिणी चीन सागर में कृत्रिम द्वीप बनाने में शामिल चीन के कई नागरिकों पर वीज़ा पाबंदी लगाई. इसके अलावा अमेरिका के वाणिज्य विभाग ने द्वीप निर्माण कार्यक्रम में लगी चाइना कम्युनिकेशन कंस्ट्रक्शन कंपनी (CCCC) समेत चीन की 24 सरकारी कंपनियों को अपनी एक प्रतिबंधित लिस्ट में डाल दिया जिसका ये मतलब है कि उन कंपनियों के साथ व्यावसायिक समझौतों के लिए लाइसेंस की ज़रूरत पड़ेगी. इन कंपनियों पर निशाना साधने का मतलब बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर निशाना साधना भी है क्योंकि इनमें से कई कंपनियां दुनिया भर में अलग-अलग परियोजनाओं पर काम कर रही हैं.

अमेरिका की हालिया कार्रवाई में से कुछ बेशक वहां होने वाले चुनाव की राजनीति से जुड़ी हैं लेकिन उसने चीन के ख़िलाफ़ आस-पास के देशों को भी कड़ा जवाब देने के लिए तैयार किया है.

पिछले महीने अपने रुख़ में नाटकीय बदलाव करते हुए अमेरिका ने औपचारिक रूप से दक्षिणी चीन सागर में चीन के रवैये का विरोध करने का एलान किया. अमेरिका की हालिया कार्रवाई में से कुछ बेशक वहां होने वाले चुनाव की राजनीति से जुड़ी हैं लेकिन उसने चीन के ख़िलाफ़ आस-पास के देशों को भी कड़ा जवाब देने के लिए तैयार किया है. पिछले हफ़्ते दक्षिणी चीन सागर के स्कारबोरो शोल में फिलीपींस के मछली मारने के उपकरणों को चीन के कोस्ट गार्ड द्वारा ज़ब्त करने के ख़िलाफ़ फिलीपींस ने बीजिंग में राजनयिक विरोध जताया. फिलीपींस के विदेश मामलों के विभाग ने मनीला में एक बयान में कहा कि उसने विवादित इलाक़े में गश्त कर रहे फिलीपींस के एक एयरक्राफ्ट को चुनौती देने पर भी आपत्ति जताई. इसके जवाब में चीन के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि उसका कोस्ट गार्ड दक्षिणी चीन  सागर में सिर्फ़ क़ानून को लागू कर रहा था. चीन के मुताबिक, “फिलीपींस ने चीन की मोर्चाबंदी वाले नानशा द्वीप और रीफ के नज़दीक हवाई क्षेत्र में अपने सैन्य विमान को भेजकर चीन की संप्रभुता और सुरक्षा का उल्लंघन किया.” चीन के प्रवक्ता ने फिलीपींस से “ग़ैर-क़ानूनी उकसावे को तुरंत रोकने” को कहा.

चीन के इस बयान ने फिलीपींस के रक्षा मंत्री डेल्फिन लोरेनज़ाना को भड़का दिया. ग़ुस्से में उन्होंने कहा कि वो इलाक़ा फिलीपींस के एक्सक्लूज़िव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) के भीतर है और “उनके ‘नाइन-डैश लाइन’ से घिरे इलाक़े के ऊपर उनके (चीन के) तथाकथित ऐतिहासिक अधिकार उनकी कल्पनाओं के अलावा कहीं नहीं हैं.” उन्होंने कहा कि उकसावे की सभी कार्रवाई चीन की तरफ़ से की जा रही है.

इसी तरह जुलाई में मलेशिया ने चीन के दावे का आमने-सामने मुक़ाबला किया. 29 जुलाई 2020 को संयुक्त राष्ट्र को एक राजनयिक चिट्ठी के ज़रिए मलेशिया ने “समुद्री क्षेत्र जो ‘नाइन-डेश लाइन’ से घिरे हैं, उन पर चीन के ऐतिहासिक अधिकार या दूसरे संप्रभु अधिकार के दावों” को खारिज कर दिया. मलेशिया ने बिना किसी लाग-लपेट के घोषित किया कि दक्षिणी चीन सागर में चीन के दावों का “अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के तहत कोई आधार नहीं है.” पिछले साल मलेशिया की तेल और गैस कंपनी पेट्रोनास की खुदाई के काम को रोकने की कोशिश के अलावा महाद्वीपीय चट्टान के मुद्दे पर भी मलेशिया और चीन की भिड़ंत हुई थी. दिसंबर 2019 में मलेशिया ने संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून समझौता (UNCLOS) के तहत अपने महाद्वीपीय चट्टान को 200 नॉटिकल मील तक बढ़ाने के लिए आवेदन दिया था.

29 जुलाई 2020 को संयुक्त राष्ट्र को एक राजनयिक चिट्ठी के ज़रिए मलेशिया ने “समुद्री क्षेत्र जो ‘नाइन-डेश लाइन’ से घिरे हैं, उन पर चीन के ऐतिहासिक अधिकार या दूसरे संप्रभु अधिकार के दावों” को खारिज कर दिया.

इससे पहले 2009 में उसने वियतनाम के साथ साझा निवेदन किया था. उस वक़्त चीन ने ऐतराज़ जताया था और मलेशिया के आवेदन देने के दिन 12 दिसंबर 2019 को उसने फिर आपत्ति जताई. चीन ने अपनी राजनयिक चिट्ठी में दक्षिणी चीन सागर के सभी द्वीपों पर संप्रभुता का दावा किया. चीन ने कहा कि मलेशिया के आवेदन ने “चीन की संप्रभुता का गंभीर उल्लंघन किया है.” चीन के मुताबिक़ पूरे इलाक़े, EEZ के साथ-साथ महाद्वीपीय चट्टान पर चीन का ऐतिहासिक अधिकार है और इसलिए मलेशिया के आवेदन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए. चीन ने 2012 में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण स्कारबोरो शोल पर कब्ज़ा किया था और फिलीपींस इस मामले को UNCLOS के तहत न्यायिक पंचाट में लेकर गया. 2016 में चीन ये केस हार गया जब ट्राइब्यूनल ने ये फ़ैसला दिया कि स्कारबोरो शोल साफ़ तौर पर फिलीपींस के एक्सक्लूज़िव इकोनॉमिक ज़ोन के भीतर आता है. ट्राइब्यूनल ने ये भी फ़ैसला दिया कि दक्षिणी चीन सागर में तथाकथित रीफ, चट्टानी अंश और ऊंचाई वाला हिस्सा जिसे स्प्रैटली द्वीप कहते हैं वो UNCLOS की परिभाषा के मुताबिक़ असली द्वीप नहीं है और इसलिए उसके पानी के इर्द-गिर्द किसी EEZ का दावा नहीं किया जा सकता.

इससे भी महत्वपूर्ण ये है कि ट्राइब्यूनल ने फ़ैसला दिया कि दक्षिणी चीन सागर के पानी और संसाधनों पर चीन का संपूर्ण नियंत्रण नहीं रहा है और इसलिए उसकी तरफ़ से एकतरफ़ा खींचे गए ‘नाइन-डैश लाइन’ के ज़रिए उसके ऐतिहासिक अधिकार के दावों का कोई क़ानूनी आधार नहीं है. लेकिन चीन ने इस फ़ैसले को मानने के बदले कृत्रिम द्वीप बनाने के बाद सैन्य सुविधाओं की स्थापना की जिनमें ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल की तैनाती शामिल है. चीन इस बात पर अड़ा हुआ है कि दक्षिणी चीन सागर के सभी द्वीपों पर उसकी संप्रभुता है. चीन के इस रवैया का कई देशों ने विरोध किया जिनमें फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और इंडोनेशिया शामिल हैं. इन देशों ने भी दक्षिणी चीन सागर के कई द्वीपों पर अपना दावा कर रखा है. अमेरिका के एक पूर्व राजनयिक चास फ्रीमैन के मुताबिक़, “द्वीपों” का एक जटिल इतिहास है और वर्तमान में स्प्रैटली के जिन 44 द्वीपों पर किसी देश का कब्ज़ा है, उनमें से 25 पर वियतनाम, आठ पर फिलीपींस, सात पर चीन, तीन पर मलेशिया और एक पर ताइवान का नियंत्रण है.

पिछले महीने एक नाटकीय कार्रवाई के तहत अमेरिका ने औपचारिक रूप से दक्षिणी चीन सागर में चीन के तकरीबन सभी दावों को खारिज कर दिया. पहले जहां अमेरिका इस विवाद को लेकर तटस्थ रवैया अपनाता था, वहीं अब एक प्रेस बयान के ज़रिए अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने एलान किया कि ज़्यादातर दक्षिणी चीन सागर के तट से दूर संसाधनों पर चीन का दावा “पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी है, साथ ही उन पर कब्ज़े के लिए डराने-धमकाने का उसका अभियान भी.” पॉम्पियो ने कहा कि चीन ने “दक्षिणी चीन सागर में 2009 में ‘नाइन-डैश लाइन’ का एलान करने के बाद इस पर दावे को लेकर कोई स्पष्ट क़ानूनी अधिकार पेश नहीं किया है.” पॉम्पियो ने UNCLOS के तहत न्यायिक पंचाट के फ़ैसले का ज़िक्र किया और कहा कि अमेरिका “ट्राइब्यूनल के फ़ैसले के मुताबिक़ दक्षिणी चीन सागर में चीन के समुद्री दावे पर अपना रुख़ बना रहा था.”

चीन इस बात पर अड़ा हुआ है कि दक्षिणी चीन सागर के सभी द्वीपों पर उसकी संप्रभुता है. चीन के इस रवैया का कई देशों ने विरोध किया जिनमें फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और इंडोनेशिया शामिल हैं.

हाल के महीनों में अमेरिका ने दक्षिणी चीन सागर में अपनी काफ़ी फ़ौज तैनात की है जिनमें कई एयरक्राफ्ट कैरियर भी शामिल हैं. अमेरिका इस इलाक़े के देशों को संकेत दे रहा है कि वो उनके हितों की रक्षा के लिए दृढ़ है. अमेरिका के रुख़ को लेकर शक की वजह से इस इलाक़े के देश चीन की कार्रवाई को नज़रअंदाज़ करते रहे हैं. मिसाल के तौर पर, फिलीपींस ने कभी भी चीन पर दबाव नहीं डाला कि वो न्यायिक पंचाट के फ़ैसले को लागू करे. इसके बदले राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने कई बार चीन का दौरा किया और अपने देश में चीन की मदद और निवेश के रूप में अरबों डॉलर हासिल किए.

दूसरी तरफ़ जून में मौजूदा तनाव ने दुतेर्ते को राज़ी किया कि वो अमेरिका के साथ 1998 में हुए विज़िटिंग फोर्सेज़ एग्रीमेंट (VFA) को ख़त्म करने की कोशिशों को निलंबित करें. इस समझौते की बदौलत दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण सैन्य अभ्यास होते हैं. फिलीपींस और अमेरिका अभी भी 1951 की सैन्य रक्षा संधि (MDT) मानने के लिए बाध्य हैं जिसमें VFA और बढ़े हुए रक्षा सहयोग समझौता के द्वारा बदलाव किया गया था. 2019 में अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने MDT के तहत चीन के ख़िलाफ़ फिलीपींस की रक्षा के अमेरिकी वादे को पूरा करने को दोहराया.

तब भी इलाक़े के देशों जैसे फिलीपींस के रवैये में एक निश्चित अस्पष्टता है जैसा कि 12 जुलाई को न्यायिक पंचाट के फ़ैसले की सालगिरह पर फिलीपींस और चीन के बीच झगड़े में देखने को मिला. फिलीपींस के विदेश मंत्री टियोडोरो लॉक्सिन ने फ़ैसले को अपने देश के समर्थन को दोहराया और कहा कि “बिना किसी मेल-जोल या बदलाव की संभावना के” इसे लागू किया जाना चाहिए. लेकिन अगले हफ़्ते लॉक्सिन और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच टेलीकॉन्फ्रेंस के बाद दोनों पक्ष इस बात के लिए सहमत हुए कि “दोस्ताना माहौल में विवाद के मुद्दों और समुद्री सहयोग को बढ़ावा देते रहेंगे.” वांग ने कहा कि चीन और इलाक़े के दूसरे देशों के बीच स्थिर संबंध हैं लेकिन अमेरिका अपनी भूराजनीतिक ज़रूरतों की वजह से संबंधों में टकराव लाने की कोशिश कर रहा है.

इस बीच चीन ने इलाक़े में अपनी कूटनीति बढ़ा दी है और 10 आसियान देशों के राजनयिकों को दक्षिणी चीन सागर में बढ़ते तनाव को लेकर बातचीत के लिए बुलाया है. इस महीने की शुरुआत में हुई बैठक में चीन ने “गैर-क्षेत्रीय देशों” (अमेरिका) की गतिविधियों को लेकर चिंता जताई और आचार संहिता (CoC) को लेकर बातचीत शुरू करने को कहा जिसे “गैर-क्षेत्रीय देश” पटरी से उतार रहे हैं.

आसियान और चीन दो दशक से ज़्यादा समय से CoC को लेकर चर्चा कर रहे हैं लेकिन चीन के रुख़ की वजह से अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं. दोनों पक्षों ने 2002 में दक्षिणी चीन सागर में आचार घोषणा-पत्र को मंज़ूर भी किया था जिसे 2011 में औपचारिक तौर पर मंज़ूरी मिली. लेकिन ये घोषणा-पत्र किसी भी पक्ष पर बाध्य नहीं था. अब दोनों पक्षों के पास CoC के लिए एक ही मसौदा है और अगले साल तक इसे पूरा करने को उन्होंने कहा है. लेकिन अमेरिका के दबाव डालने की वजह से चीन अपनी चाल पर फिर से विचार कर रहा है.

इस महीने की शुरुआत में हुई बैठक में चीन ने “गैर-क्षेत्रीय देशों” (अमेरिका) की गतिविधियों को लेकर चिंता जताई और आचार संहिता (CoC) को लेकर बातचीत शुरू करने को कहा जिसे “गैर-क्षेत्रीय देश” पटरी से उतार रहे हैं.

महत्वपूर्ण बात ये है कि चीन के दबाव में आसियान ने औपचारिक तौर पर न्यायिक पंचाट के फ़ैसले की मदद नहीं ली है और CoC पर बातचीत के दौरान फ़ैसले को लेकर बचता रहता है. हालांकि CoC किसी भी सूरत में विवादों का हल नहीं करेगा बल्कि इसका लक्ष्य सिर्फ़ हालात को बेकाबू होने से बचाना है. ये साफ़ नहीं है कि CoC को लागू करने का तरीक़ा क्या होगा और ये लागू होगा भी या नहीं और चीन इसे मानेगा भी या नहीं क्योंकि चीन की ये पुरानी आदत रही है कि वो गोलपोस्ट को बदलता रहता है.

समीक्षकों ने महसूस किया है कि जहां आसियान या उसके सदस्य देश चीन के साथ न्यायिक पंचाट के फ़ैसले का सीधे तौर पर ज़िक्र नहीं करते लेकिन उन्होंने महासचिव के साथ राजनयिक चिट्ठियों के इस्तेमाल की रणनीति अपनाई है जिसमें वो सदस्य देशों को चिट्ठी बांटने का अनुरोध करते हैं. इन चिट्ठियों में ख़ास तौर पर UNCLOS और न्यायिक पंचाट के फ़ैसले का ज़िक्र होता है. उनका इरादा साफ़ है. वो संकेत देना चाहते हैं कि जो भी व्यावहारिक राजनीतिक रुख़ वो अपनाएं लेकिन वो अपने क़ानूनी दावे से पीछे हटने वाले नहीं हैं.

अमेरिका का नया रुख़ आसियान के लिए उत्साह बढ़ाने वाला है लेकिन उसे बीजिंग की ताक़त के बारे में अच्छी तरह पता है. इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे देश इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि उन्हें बीच का रास्ता अपनाना चाहिए. इस बीच सिंगापुर के बिलाहारी कौसिकन जैसे प्रमुख विश्लेषक कहते हैं कि आसियान को इसे अमेरिका और चीन के बीच पसंद के तौर पर नहीं देखना चाहिए बल्कि इसे “हितों के अस्थिर और परिवर्तनशील रूप” में देखना चाहिए जिसके प्रबंधन की ज़रूरत है.

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