-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
जब भारत चीन से बाहर जाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए पसंदीदा देश बनने की कोशिश कर रहा है, ऐसे समय अतीत में जाकर मैन्युफैक्चरिंग के संदर्भ में जगह बदलने को लेकर गुणों का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है.
पिछले दो साल में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच अगला वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बनने की रेस ने रफ़्तार पकड़ी है. मैन्युफैक्चरिंग की वजह से चीन ने जो विकास किया है, उससे प्रेरणा लेकर वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग के बड़े हिस्से को हथियाने का संघर्ष तेज़ हुआ है. इसकी वजह हाल में अमेरिका-चीन व्यापारिक तनाव और कोविड-19 महामारी के कारण सप्लाई चेन को जोख़िम से बचाने की ज़रूरत भी है.
जब अलग-अलग देश वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग की व्यवस्था को फिर से परिभाषित करने के लिए काम कर रहे हैं, उस वक़्त मैन्युफैक्चरिंग की दुनिया ख़ुद बदलाव के दौर से गुज़र रही है. इस बदलाव के पीछे दो महत्वपूर्ण रुझान हैं- रिलोकेशन और ऑटोमेशन.
जहां रिलोकेशन भौगोलिक परिवर्तन है, वहीं ऑटोमेशन के तहत मैन्युफैक्चरिंग की मूलभूत प्रक्रिया में गतिशील बदलाव है. इस लेख में भारत के वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग के केंद्र बनने की कोशिश की पृष्ठभूमि में उपरोक्त रुझानों के असर को क़रीब से समझा गया है.
आगे बढ़ने से पहले पीछे की तरफ़ रुख़ करना और भारत के विकास की कहानी में मैन्युफैक्चरिंग के रणनीतिक महत्व को समझना बुद्धिमानी होगी. भारत का 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का सपना उसकी मैन्युफैक्चरिंग के विकास से गहरे तौर पर जुड़ी हुई है. महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ पहल का मक़सद सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का हिस्सा 2022 तक मौजूदा 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करना है.
तालिका 1: देशों में औपचारिक रूप से कुशल श्रमिकों की तुलना | |
देश | औपचारिक रूप से कुशल श्रमिकों का अनुपात |
भारत | 4.6% |
चीन | 24% |
अमेरिका | 52% |
यूके | 68% |
जर्मनी | 75% |
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
घरेलू मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने की एक प्रमुख वजह नौकरियां पैदा करना और स्थानीय वैल्यू एडिशन है. भारतीय सरकार 2022 तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 10 करोड़ नये रोज़गार पैदा करने की योजना बना रही है. भारत में मैन्युफैक्चरिग जॉब का महत्व बढ़ रहा है क्योंकि दूसरे देशों के मुक़ाबले भारत में औपचारिक तौर पर कुशल कामगारों का अनुपात काफ़ी कम है.
घरेलू मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने की एक प्रमुख वजह नौकरियां पैदा करना और स्थानीय वैल्यू एडिशन है. भारतीय सरकार 2022 तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 10 करोड़ नये रोज़गार पैदा करने की योजना बना रही है
भारत में कामगारों के कौशल पर नज़दीकी नज़र डालने से पता चलता है कि श्रम बाज़ार में एक बड़ा हिस्सा उन लोगों का है जिन्हें लेवल 2 कौशल के तहत रखा गया है (मशीन और बिजली के उपकरण चलाने का कौशल रखने वाले). इसके बाद लेवल 1 कौशल (सामान्य और रोज़मर्रा के काम करने वाले) और लेवल 3 कौशल (लिखा-पढ़ी और कैलकुलेशन करने वाले और पत्र-व्यवहार में सक्षम) वाले हैं. लेवल 4 कौशल (फ़ैसला लेना और रचनात्मक काम) वाले बेहद कम हैं.
लेवल 2 कौशल वाले कामगार ज़्यादातर मैन्युफैक्चरिंग और कृषि के लिए उपयुक्त होते हैं लेकिन इस संबंध में ये ध्यान देना ज़रूरी है कि कृषि क्षेत्र में रोज़गार की गुंजाईश नहीं है. रोज़गार में कृषि क्षेत्र का योगदान 43% है जबकि GDP में सिर्फ़ 17%. इस वजह से रोज़गार बढ़ाने का दारोमदार उद्योग सेक्टर पर है.
तालिका 3: क्षेत्रवार जीडीपी और रोजगार योगदान | ||
क्षेत्र | सकल घरेलू उत्पाद | रोज़गार |
कृषि | 17% | 43.2% |
उद्योग | 29.6% | 24.8% |
सेवाएं | 54.3% | 31.9% |
स्रोत: स्टेट्समैन
भारत की ज़रूरत को देखते हुए हम दो चुनौतियों पर ध्यान देते हैं यानी जगह बदलने वाली कंपनियों के लिए दूसरे देशों से मुक़ाबला और ऑटोमेशन की वजह से मैन्युफैक्चरिंग में रोजग़ार के मौक़ों में कमी.
2019 में चीन से कंपनियों के पलायन के पहले दौर में भारत वैश्विक निवेशकों को लुभाने में नाकाम रहा. जापान के वित्तीय समूह नोमुरा के एक अध्ययन से पता चलता है कि अप्रैल 2018 और अगस्त 2019 के बीच चीन से अपना उत्पादन बाहर ले जाने वाली 56 कंपनियों में से 26 ने वियतनाम को अपने नये ठिकाने के तौर पर चुना जबकि भारत सिर्फ तीन कंपनियां आईं. भारत से बेहतर ताइवान और थाईलैंड ने किया जहां क्रमश: 11 और 8 कंपनियां गईं.
अपने पक्ष में जनसंख्या और कम श्रम लागत के बावजूद भारत मौजूदा लागत अक्षमता जैसे कि कॉरपोरेट टैक्स रेट, ज़मीन और श्रम क़ानून, बुनियादी सुविधाओं इत्यादि की वजह से निवेशकों को लुभाने में कामयाब नहीं हो पाया है.
चीन से कंपनियों के बाहर जाने के दूसरे दौर में इंडोनेशिया ने बाज़ी मारी जहां 27 अमेरिकी कारखाने उत्पादन के लिए पहुंचे जबकि भारत अभी भी अमेरिकी और जापानी निवेशकों को लुभाने की कोशिश में ज़ोर लगा रहा है जब वो चीन से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. अपने पक्ष में जनसंख्या और कम श्रम लागत के बावजूद भारत मौजूदा लागत अक्षमता जैसे कि कॉरपोरेट टैक्स रेट, ज़मीन और श्रम क़ानून, बुनियादी सुविधाओं इत्यादि की वजह से निवेशकों को लुभाने में कामयाब नहीं हो पाया है.
चित्र 1 : चीन की जीडीपी वृद्धि की कहानी
चित्र 2 : शीर्ष 5 देशों का विनिर्माण उत्पादन
पहले मैन्युफैक्चरिंग रुझान यानी रिलोकेशन के मामले में जहां भारत को अंदरुनी चुनौतियों से पार पाना है वहीं दूसरे देशों के साथ मुक़ाबला भी करना है. दूसरे मैन्युफैक्चरिंग रुझान यानी ऑटोमेशन से जुड़ी चुनौतियों के मामले में भारत काफ़ी पीछे है.
मैन्युफैक्चरिंग के सहारे चीन की ताक़त में बढ़ोतरी पांच दशक से भी ज़्यादा एक लंबा और कठिन सफ़र रहा है. इस दौरान चीन ने मैन्युफैक्चरिंग के ज़रिए रोज़गार बढ़ाकर सफलतापूर्वक लाखों लोगों को ग़रीबी रेखा से बाहर निकाला. ऑटोमेशन में मौजूदा बढ़ोतरी- कोविड-19 के कारण इस रुझान में और मज़बूती आई है- की इस वजह से परंपरागत मैन्युफैकक्चरिंग के रोज़गार को खपाने की मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की क्षमता में ज़बरदस्त रूप से कमी आएगी. इसकी वजह से इस सेक्टर में निवेश लुभाने के एक बड़े कारण पर असर पड़ेगा.
मैन्युफैक्चरिंग उद्योग की सोच का पता लगाने के लिए हुई एक स्टडी बताती है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में कंपनियां और ज़्यादा ऑटोमेशन करना चाहती हैं. जब उद्योग- ख़ास तौर पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग- प्रवासी मज़दूरों की गैर-मौजूदगी और सोशल डिस्टेंसिंग के मामले में चुनौती का सामना कर रही हैं, उत्पादनकर्ता अपने कारखानों को ऑटोमेट करने के विकल्प पर विचार कर रहे हैं.
मैन्युफैक्चरिंग के सहारे चीन की ताक़त में बढ़ोतरी पांच दशक से भी ज़्यादा एक लंबा और कठिन सफ़र रहा है. इस दौरान चीन ने मैन्युफैक्चरिंग के ज़रिए रोज़गार बढ़ाकर सफलतापूर्वक लाखों लोगों को ग़रीबी रेखा से बाहर निकाला
“बदलता कारोबार और नियोक्ता और कारोबारी संगठनों के लिए अवसर” के मुताबिक़ भारत में 51.8% गतिविधियों को ऑटोमेट किया जा सकता है. रिपोर्ट बताती है, “कम स्किल वाली नौकरियों और सामान्य संयोजन के काम में रोबोटिक ऑटोमेशन का बड़ा असर है.”
बेहद संरचनात्मक और पूर्वानुमान की जाने वाली शारीरिक गतिविधियों जैसे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ऑटोमेशन के नौकरियों पर असर डालने की संभावना है.
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि जब भारत चीन से बाहर जाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए पसंदीदा देश बनने की कोशिश कर रहा है, ऐसे समय अतीत में जाकर मैन्युफैक्चरिंग के संदर्भ में जगह बदलने को लेकर गुणों का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है. भारत को उन सेक्टर पर ध्यान देना चाहिए जहां तीन बातें महत्वपूर्ण हैं मसलन, जो ऑटोमेशन से अभी भी काफ़ी दूर है, जहां उच्च कौशल वाले कामगारों की ज़रूरत कम है और सरकार का प्रोत्साहन भुगतान अपेक्षाकृत कम है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Nikhil Kaura is Chief Manager strategy and corporate affairs at Samsung South West Asia HQ. He has over nine years of experience across quantitative research ...
Read More +Noor Khan is Deputy General Manager in the strategy and corporate affairs department at Samsung South West Asia HQ. He is an engineering graduate from ...
Read More +