Author : Hashim Wahdatyar

Published on Oct 16, 2020 Updated 0 Hours ago

अफ़ग़ानिस्तान में संघर्ष को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा अंतर-अफगान शांति वार्ता का स्वागत किया जा रहा है. हालांकि, सवाल यह है कि तालिबान इस सबके द्वारा शांति चाहता है या सत्ता? Excerpt

तालिबान शांति चाहता है या सत्ता?

“हम काबुल में मौजूद भ्रष्ट प्रशासन को नहीं पहचानते हैं. सत्ता पर काबिज़ इन लोगों को अफ़ग़ानों द्वारा नहीं चुना गया है और यह अफ़ग़ानिस्तान के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करते.” तालिबान के उपमुख्य वार्ताकार अब्बास स्तानिकज़ई का यह बयान, हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद, दिए गए एक साक्षात्कार में शामिल था.

संयुक्त राज्य अमेरिका और तालिबान ने तीन महीने पहले कतर में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए और अफ़ग़ानिस्तान में 19 साल तक चले युद्ध को समाप्त करते हुए अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद अलग-अलग राजनीतिक ताकतों के बीच बातचीत का रास्ता खोला. अमेरिकी विशेष दूत ज़ाल्मय खलीलज़ाद के साथ दो साल तक चली सुलह और समझौते संबंधी बातचीत के बाद, सभी ने एक रुख अपनाते हुए, अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी पर ज़ोर दिया. हालांकि, तालिबान ने दुनिया भर में अफ़ग़ाननागरिकों, धार्मिक विद्वानों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा की जा रही युद्ध विराम की अपील को खारिज करते हुए, अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता की मांग को लगातार ठुकराया है. तालिबान, अफगान सरकार को मान्यता नहीं देता है, और इसे “काबुल प्रशासन” कहता है, जो कि अमेरिका द्वारा स्थापित है. हालांकि, पिछले शनिवार को, दोहा में अंतर-अफगान शांति वार्ता हुई, जिसमें कतर में स्थित तालिबान के राजनीतिक नेताओं और काबुल के एक प्रतिनिधिमंडल जिसमें, राजनेता और अफगान सरकार के प्रतिनिधि शामिल थे, से मुलाकात की.

तालिबान ने दुनिया भर में अफ़ग़ाननागरिकों, धार्मिक विद्वानों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा की जा रही युद्ध विराम की अपील को खारिज करते हुए, अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता की मांग को लगातार ठुकराया है. तालिबान, अफगान सरकार को मान्यता नहीं देता है, और इसे “काबुल प्रशासन” कहता है, जो कि अमेरिका द्वारा स्थापित है. 

इस दौरान हुई बातचीत में चर्चा के लिए सामने आए कई मुद्दों के बीच, दोनों पक्षों ने इस बात पर चर्चा की कि अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक संघर्ष के मसले को कैसे हल किया जाए, भविष्य की सरकार किस तरह स्थापित की जाए और उसका क्या रूप हो सकता है. सभी पक्षों ने मीडिया को इस बात के संकेत दिए कि यह वार्ता अब तक बिना किसी रुकावट के अच्छी तरह से चल रही है. हालांकि, सभी पक्ष फिलहाल चर्चा के उन अधिक चुनौतीपूर्ण बिंदुओं तक नहीं पहुंचे हैं, जिसमें संघर्ष विराम का मुद्दा शामिल है, जो अफ़ग़ानों की पहली और सबसे महत्वपूर्ण मांग है. तालिबान ने विदेशी प्रतिनिधियों से बंद दरवाज़ों के पीछे हो रही इन वार्ताओं में शामिल नहीं होने के लिए कहा है. अफ़ग़ानिस्तान में संघर्ष को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा अंतर-अफगान शांति वार्ता का स्वागत किया जा रहा है. हालांकि, सवाल यह है कि तालिबान इस सबके द्वारा शांति चाहता है या सत्ता?

यह प्रक्रिया जारी रहने के दौरान दिए गए एक साक्षात्कार में, तालिबान के उप मुख्य वार्ताकार शेर मुहम्मद अब्बास स्तानिकज़ई ने कहा कि इस बातचीत के लिए केवल एक व्यक्ति काबुल प्रशासन (अफगान सरकार) का प्रतिनिधित्व करेगा और शेष अन्य अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद अलग-अलग राजनीतिक दलों से होंगे. इसके अलावा, स्थानीय अफगान मीडिया चैनल टोलो (TOLO) न्यूज़ ने खुलासा किया कि कतर में तालिबान के राजनीतिक नेता, मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर ने, अफ़ग़ानिस्तान की राष्ट्रीय सुलह परिषद के अध्यक्ष डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मिलने के लिए अपनी असहमति जताई, अगर बातचीत के दौरान अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मामलों के मंत्री उपस्थिति रहते हैं तो.

तालिबान का कहना है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी बलों के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय बलों से तब तक लड़ता रहेगा जब तक कि अफ़ग़ानिस्तान पर विदेशी ताकतों का कब्ज़ा ‘पूरी तरह’ ख़त्म नहीं हो जाता. यही वजह है कि अमेरिका द्वारा अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों की समूची वापसी के लिए सहमत होने और इस सप्ताह दोहा में अंतर-अफगान शांति वार्ता की शुरुआत के बावजूद, तालिबान ने अफगान बलों से लड़ना जारी रखा है. अमेरिका के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, तालिबान और अमेरिका के बीच अघोषित रूप से युद्धविराम जारी है, लेकिन अफगान सरकार के साथ इस तरह का कोई समझौता नहीं किया गया है. यह स्थिति इस बात के संकेत देती है कि तालिबान सत्ता पाने की मंशा रखता है.

तालिबान का कहना है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी बलों के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय बलों से तब तक लड़ता रहेगा जब तक कि अफ़ग़ानिस्तान पर विदेशी ताकतों का कब्ज़ा ‘पूरी तरह’ ख़त्म नहीं हो जाता. 

तालिबान नेताओं ने अपने लड़ाकों को भी यह संकेत दिया है कि तालिबान के नेता अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक अमीरात (तालिबान का आधिकारिक नाम) को वापस लाने का लक्ष्य रखते हैं. मीडिया को लीक हुई एक वीडियो रिकॉर्डिंग में, मुल्ला फ़ज़ल मज़लूम, जो कतर में मौजूद तालिबान के राजनीतिक नेता हैं,  ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य के नेता तालिबान से ही होंगे. मुल्ला फ़ज़ल ने अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमावर्ती क्षेत्र में तालिबान के कमांडरों के साथ अपनी बैठक के दौरान यह बात कही थी. उन्होंने कहा कि संगठन देश में शरिया कानून लाएगा और इस बात पर ज़ोर दिया कि यह तालिबान के लिए पत्थर की रेखा के समान है. मुल्ला फ़ज़ल उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के उप रक्षा मंत्री और समूह के शीर्ष कमांडर थे. वह तालिबान के पूर्व नेता मुल्ला उमर के सहयोगी भी थे. मुल्ला फ़ज़ल ने कहा कि अमेरिका की वापसी के बाद, यह तालिबान के नेताओं पर निर्भर करेगा कि तालिबान के अलावा कौन तालिबान के भविष्य के प्रशासन के साथ जुड़ सकता है या काम कर सकता है.

मौलवी कबीर तालिबान के नेतृत्व के एक और वरिष्ठ सदस्य हैं. वह तालिबान के उप-मंत्री परिषद और अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख थे. उन्होंने कहा कि तालिबान की सफलता इस बात पर टिकी है कि अफ़ग़ानिस्तान की वर्तमान सरकार को बदला जाए. यदि व्यवस्था (सरकार) बहाल हुई और तालिबान को अफगान की मौजूदा सरकार के साथ बैठना पड़ा, तो स्थिति पहले से भी बदतर हो जाएगी. यानी यह स्थिति तालिबान को स्वीकार्य नहीं होगी. तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला हैबतुल्ला ने अपने अनुयायियों को अमेरिका-तालिबान शांति समझौते के बारे में भी संबोधित किया है. उन्होंने कहा है कि इस्लामी अमीरात के मुजाहिदीन को अपने महान लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपने रैंक को बेहतर ढंग से व्यवस्थित करना चाहिए और ताक़तवर बनाना चाहिए, ताकि वो अपने महान लक्ष्य यानी कब्ज़ा हटने के बाद, इस्लामी शासन स्थापित करने की दिशा में काम कर सकें. उन्होंने अपने बयान में ज़ोर देकर कहा है कि आमिर यानी मुल्ला हैबतुल्ली के रहते, कानूनी रूप से अफ़ग़ानिस्तान में कोई और शासक नहीं हो सकता.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी यह स्वीकार किया है, कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद, तालिबान संभवतः अफगान सरकार को हटाकर अपनी सत्ता स्थापित कर सकता है. डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान, कतर में हुए अमेरिका-तालिबान समझौते के एक हफ्ते के बाद आया. 

केवल तालिबान के नेता ही इस तरह के संकेत नहीं दे रहे हैं, बल्कि अमेरिका के पास भी यह खुफिया जानकारी मौजूद है कि संगठन का इरादा अमेरिका-तालिबान समझौते की शर्तों का पालन करने का नहीं है. अंतरराष्ट्रीय समाचार नेटवर्क एनबीसी न्यूज़ (NBC News) के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी यह स्वीकार किया है, कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद, तालिबान संभवतः अफगान सरकार को हटाकर अपनी सत्ता स्थापित कर सकता है. डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान, कतर में हुए अमेरिका-तालिबान समझौते के एक हफ्ते के बाद आया.

अमेरिका के साथ शांति समझौता, और अंतर-अफगान शांति वार्ता के बीच, तालिबान लगातार अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी पर ज़ोर देता रहा है, जिसके बाद अंतर-अफगान शांति वार्ता में सहमती के ज़रिए एक समावेशी इस्लामी सरकार बनाने की दिशा में काम किया जाएगा. ध्यान रहे कि साल 1996 में जब तालिबान ने काबुल पर हमला किया था, तब भी संगठन ने इसी तरह का बयान दिया था कि वे अंतर-अफगान वार्ता में शामिल होंगे और अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामी सरकार बनाने को लेकर चर्चा करेंगे.

तो आखिर तालिबान अफगान सरकार की तुलना में अफगान राजनीतिक नेताओं से बात करना क्यों पसंद करता है?

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी ने दो साल पहले तालिबान के सामने बिना शर्त शांति वार्ता की पेशकश की थी, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी का मुद्दा भी शामिल था. इसके जवाब में,  तालिबान ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और दावा किया कि जब तक अमेरिका अपनी वापसी के कार्यक्रम की घोषणा नहीं करता, तब तक संगठन, अफगान सरकार के साथ किसी भी तरह की शांति वार्ता में भाग नहीं लेगा.

तालिबान ने अब इस बात को समझ लिया है कि इन नेताओं के पास अब अपनी मांगों को मनवाने के लिए सशक्त बल नहीं हैं, इसलिए इन राजनीतिक नेताओं के साथ बातचीत में शामिल होकर इसे अंतर-अफगान वार्ता का नाम दिया जा सकता है, और इनमें से कुछ नेताओं को भविष्य के तालिबानी प्रशासन में नियुक्त किया जा सकता है. 

तालिबान ने कई बार अफ़ग़ानिस्तान के अलग-अलग समूहों से जुड़े राजनेताओं से मुलाकात की है,  जिसमें मॉस्को में बुलाई गई शांति वार्ता, पिछले साल क़तर में हुई वार्ता और इस हफ्ते एक बार फिर कतर में हुई बातचीत शामिल है. इन वार्ताओं में तालिबान के निष्कासित नेताओं से मिलने वालों में, अफगान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई और उत्तरी गठबंधन के जाने-माने नेता शामिल थे जैसे- युनुस क़ानूनी (पूर्व उपराष्ट्रपति), अत्ता मोहम्मद नूर और इस्माइल खान. इन राजनीतिक नेताओं ने कई सालों तक तालिबान का मुकाबला किया है और उसके साथ लड़ाई लड़ी है. पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने भी अमेरिका के मज़बूत समर्थन के साथ, एक दशक से भी अधिक समय तक तालिबान के साथ संघर्ष किया है.

लेकिन तालिबान ने अब इस बात को समझ लिया है कि इन नेताओं के पास अब अपनी मांगों को मनवाने के लिए सशक्त बल नहीं हैं, इसलिए इन राजनीतिक नेताओं के साथ बातचीत में शामिल होकर इसे अंतर-अफगान वार्ता का नाम दिया जा सकता है, और इनमें से कुछ नेताओं को भविष्य के तालिबानी प्रशासन में नियुक्त किया जा सकता है. कतर में मौजूद, तालिबान के राजनीतिक नेता अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद, मिलजुल कर सरकार बनाने के मुद्दे पर, अफगान सरकार के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान के भीतर मौजूद तालिबान का सैन्य संगठन और सैन्य दस्ते, युद्ध चाहते हैं, और देश को पूरी तरह से अपने कब्ज़े में लेना चाहते हैं. ऐसे में तालिबान के लिए यह ज़रूरी है कि वो संघर्ष विराम की घोषणा कर अफगान नागरिकों का विश्वास हासिल करे, नहीं तो, व्यापक रूप से यही माना जाता है कि संगठन एक ऐसी शांति प्रक्रिया चाहता है, जो उसके इस्लामी अमीरात को दोबारा स्थापित कर सके.

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