Author : Abhijit Singh

Published on May 02, 2018 Updated 0 Hours ago

क्या चीन हिंद महासागर में भारत की सामरिक लाभ की स्थिति को काफी नुकसान पहुंचा सकता है?

हिंद महासागर में चीन की नौसैनिक ताकत का प्रदर्शन?

चीन के राष्ट्रपति शी, नौसेना के पोत पर हरे रंग की सैन्य वर्दी पहने सै​निकों के बीच मौजूद हैं।

हाल ही में चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। चीन ने 48 नौसैनिक पोतों, 6 परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बियों, 76 लड़ाकू विमानों और विमानवाहक पोत लियाओनिंग को शामिल करते हुए एक नौसैनिक परेड का आयोजन किया और इसके जरिए उसकी पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) ने पश्चिमी प्रशांत में अपने विरोधियों को एक स्पष्ट संदेश भेजा। दक्षिणी चीन सागर में अमेरिकी युद्धक विमानवाहक पोत यूएसएस थियोडोर रूसवेल्ट द्वारा अपनी ताकत का प्रदर्शन किए जाने के कुछ ही दिन बाद, पीएलएएन द्वारा राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरपरस्ती में किए गए इस अभ्यास ने — अमेरिकी नौसेना को स्पष्ट चेतावनी दी।

सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि ऐसी खबरें हैं कि चीन पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से तैयार अपने नए विमानवाहक पोत टाइप 00वन ए (शानदोंग) के परीक्षण शुरु कर सकता है। भारत में बहुत लोग इस घटनाक्रम को हिंद महासागर में चीन की सामुद्रिक महत्वाकांक्षा की घोषणा के तौर पर देख रहे हैं। 70,000 टन भार, 24 जे⎯15 लड़ाकू विमान से लैस, एडवांस प्वाइंट डिफेंस वेपन्स (एचक्यू⎯10 बैटरीज़) और एक आधुनिक एस⎯बैंड राडार से युक्त 00वनए, आईएनएस विक्रमादित्य को कहीं पीछे छोड़ देता है, जो न सिर्फ आकार में उससे छोटा है, बल्कि उसके जितना सक्षम भी नहीं है। भारतीय नौसेना द्वारा स्वदेशी तकनीक से बने अपने विमानवाहक पोत का संचालन शुरु करने की संभावना के बीच क्षण भर में ही शानदोंग का जलावतण कर दिया जाएगा। भारतीय पर्यवेक्षकों को चिंता है कि अगर पीएलएएन ने सुदूर⎯पश्चिम में महत्वपूर्ण नौसैनिक बल तैनात करने का अपना घोषित लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रगति की, तो हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सामरिक लाभ की स्थिति को काफी नुकसान पहुंचेगा।

इसका आशय यह नहीं है कि चीन के विमानवाहक पोत जल्द ही किसी भी समय भारत के पड़ोस में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सकते हैं। हालांकि 00वनए पर तेजी से की जा रही सेंसर्स, हथियारों और उपकरणों की तैनाती महत्वपूर्ण चुनौतियां होंगी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण बात पोत के एयरविंग को फ्लीट ऑपरेशन्स के अनुकूल बनाने की जरूरत है।


हिंद महासागर⎯प्रशांत महासागर क्षेत्र में अभियानों का संचालन करने वाली प्रमुख ताकत बनने के लिएपीएलएएन के ऑपरेशन मैनेजर्स को फाइटर्स ऑपरेशन्स का तालमेल इलैक्ट्रॉनिक अटैक एयरक्रॉफ्टसमुद्र आधारित एंटी एयर डिफेंस और एंटी⎯सब्मरीन वॉरफेयर हेलीकॉप्टर्स के साथ बैठाने की जरूरत है। लेकिन संभव बनाने के लिए 00वनए को सबसे पहले अपने पूर्ण सहायक लड़ाकू विमान को सम्मिलित करने की जरूरत होगी।


पीएलएएन मैनजर्स के लिए दूसरी आवश्यकता ऑपरेन्स की दक्षता में सुधार लाना है। चीन के इंजीनियरों द्वारा कथित तौर पर ऐसे एकीकृत कमांड एंड कंट्रोल नेटवर्क्स पर काम किया जा रहा है, जो युद्ध में ज्यादा से ज्यादा महारत हासिल करने के लिए विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर एक साथ काम करने और विविध क्षमताओं का इस्तेमाल करने में समर्थ हो सके। चीन के लिए समस्या यह है कि लियाओनिंग और शानदोंग दोनों शॉर्ट टेक⎯ऑफ एंड बैरियर असिस्टेड लैंडिंग (एसटीओबीएआर)विमानवाहक पोत हैं, जो हैवी फिक्स्ड एयरबोर्न अर्ली वॉरनिंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट को ऑपरेट नहीं करते। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जे⎯15 का प्रदर्शन —  अब तक साबित नहीं हो सका है, जो युद्धपोत से संचालित किया जाने वाला पीएनएएन का इकलौता लड़ाकू विमान है। उसकी सीमित पेलोड और ईंधन क्षमता, उसके ताकत के प्रदर्शन की क्षमता के सीमित होने का संकेत देती है।

पायलटों का प्रशिक्षण एक अन्य बड़ा कारक है, जो हिंद महासागर में 00वनए की महत्वपूर्ण तैनाती में देरी कर सकता है। जहां एक ओर चीन लियाओनिंग का इस्तेमाल ट्रेनिंग ऑपरेशन्स में करता आया है,वहीं दूसरी ओर पीएलएएन के विमान चालकों द्वारा क्षितिज से परे लक्ष्य साधने, सहायक और समन्वित ऑपरेशन्स, तथा एकीकृत और साझा मिशन — जैसे ऑपरेशन्स का संचालन करने के लिए तकनी​की और रणनीतिक कौशल प्राप्त करना बाकी है।

डेक क्रू की ट्रेनिंग में भी काफी समय लग सकता है। विमानवाहक पोत के ऑपरेशन्स में — मुश्किल परिस्थितियों में विमान में दोबारा ईंधन और हथियार भरने जैसे विमानन के परम्परागत कामों के लिए घंटों लम्बे सटीक प्रशिक्षण की जरूरत है। पीएलएएन के युद्धपोत की कमांड टीम्स भी कड़े अनुशासन और संरचना वाली चीन की वायुसेना के साथ तालमेल बैठाने की जद्दोजहद कर रही हैं। चीन के योजनाकार बखूबी जानते हैं कि शानदोंग की वायुसैनिक कार्रवाइयों में पिछले सप्ताह — दक्षिण चीन सागर में लियाओनिंग द्वारा किए गए लड़ाकू विमान के संचालन के मुकाबले ज्यादा बेहतर तालमेल की जरूरत है।

 चीन के नौसैनिक योजनाकारों के लिए लॉजिस्टिक्स एक अन्य समस्या है। जहां एक ओर पीएलएएन के पास एक सांकेतिक लॉजिस्टिकल बेड़ा मौजूदा है, लेकिन उसका अर्ध⎯सैन्य पनडुब्बियों का बेड़ा सीमित सैन्य उपयोग वाला है और वह मोटे तौर पर दक्षिण चीन सागर तक ही सीमित है। स्पष्ट रूप से, लियाओनिंग द्वारा अपने सफर को पश्चिमी प्रशांत तक सीमित रखते हुए, चीनी तट से सुदूर समुद्री यात्रा किया जाना अभी बाकी है। इसकी वजह से चीन के सुरक्षा संगठन को नौसैनिक लॉजिस्टिकल सहायता पूर्वी एशिया से परे सुनिश्चित कराने के बारे में नए सिरे से विचार करना पड़ा है।


निश्चित तौर परजिबूती में मौजूद चीन का लॉजिस्टिकल हब एक महत्वपूर्ण प्रगति है। चीन कथित तौर पर यहां एक सुविधा विकसित करना और यहां तक कि एक साझा लॉजिस्टिक सपोर्ट फोर्स तैयार करना चाहता है। चीन ने पिछले साल अपनी सामुद्रिक लाइफलाइन्स और विदेशों में अपने बढ़ते हितों की रक्षा के लिए जिबूती और पाकिस्तान के मकरान तट पर निर्मित ग्वादर बंदरगाह में मरीन्स तैनात करने की योजना की घोषणा की थी।


और इसके बावजूद, अगर चीन दक्षिण एशिया के सत्ता के ताने⎯बाने को प्रभावित करना चाहता है, तो उसे लगातार भारत की सामुद्रिक परिधि के इर्द⎯गिर्द अपने विमानवाहक पोत तैनात करने की जरूरत होगी। इसके लिए उसे मध्य और पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में सप्लाई, भंडारण और मरम्मत के केंद्रों तक पहुंच बनाने की जरूरत होगी, जिसे हासिल करने में पीएलएएन अब तक नाकाम रही है।

यदि ऐसा है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि पीएलएएन के यद्धपोतों का इस्तेमाल निकट भविष्य में, हिंद महासागर में शांति के संकेत देने और सॉफ्ट पावर के प्रदर्शन में ज्यादा किया जाएगा। यह भारत के लिए अपने आप में चिंताजनक हो सकता है, लेकिन इससे हिंद महासागर में भारत की ऑपरेशनल और राजनीतिक फायदे की स्थिति कमजोर होने की संभावना नहीं है। चीन बखूबी जानता है कि पहुंच कायम करने से संबंधित उसके समझौते और वाणिज्यिक सुविधाएं उसे भारत के साथ बड़े पैमाने पर नौसैनिक संघर्ष की स्थिति में साजो⎯सामान संबंधी सहायता उपलब्ध कराने में समर्थ नहीं कर सकेंगे। लेकिन अगर चीन हिंद महासागर में सैन्य लॉजिस्टिक्स संबंधी बुनियादी सुविधाओं की श्रृंखला तैयार भी कर ले, तो भी इस बात की पूरी संभावना है कि उसकी ये सुविधाएं भारतीय लड़ाकू विमानों और मिसाइलों की जद में ही होंगी।


अगर चीन हिंद महासागर में सैन्य लॉजिस्टिक्स संबंधी बुनियादी सुविधाओं की श्रृंखला तैयार भी कर लेतो भी इस बात की पूरी संभावना है कि उसकी ये सुविधाएं भारतीय लड़ाकू विमानों और मिसाइलों की जद में ही होंगी।


चीन के पहले विशाल विमानवाहक पोत के उसकी नौसेना में शामिल होने के कगार पर होने की प्रतीकात्मकता के बावजूद, पीएलएएन भारत के समुद्री पड़ोस पर नियंत्रण जमाने नहीं जा रही है। चीन की नौसेना भले ही हिंद महासागर क्षेत्र में पहुंच चुकी हो, लेकिन भारत का प्रभाव क्षेत्र समझे जाने वाले इस स्थान पर अपनी वास्तविक युद्ध शक्ति का प्रदर्शन करने में उसे अभी और समय लगेगा।

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