Published on Nov 29, 2018 Updated 0 Hours ago

भारतीय सेना में शामिल होने वाली नयी तोपें हैं के9-वज्र और एम-777। दोनों 155 एमएम की तोपें हैं। 52 कैलिबर वाली वज्र स्वचालित तोप है और 39 कैलिबर वाली एम-777 हल्के वजन वाली तोप है जिससे हेलीकॉप्टर को लैस किया जा सकता है।

तोपों के आधुनिकीकरण के फैसले से पाक सीमा पर बदलेंगे हालात

सेना में तोपों की हमेशा से एक खास भूमिका रही है। तोपों में दूर तक अचूक तरीके से हमला करने की क्षमता होती है और ये मजबूत बंकरों और शरणस्थलों को भी भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। कारगिल युद्ध के दौरान भी ये बात जाहिर हुई थी जब तोपों ने पहाड़ों की चोटियों पर बने दुश्मनों के बंकरों को ध्वस्त कर दिया था जिससे इंफैट्री को हमले करने में आसानी हुई। भारतीय सेना में लंबे समय से ज्यादा कैलिबर और रेंज वाले तोपों की कमी रही है जिसकी वजह से युद्धक्षेत्र की रणनीति बनाने की इसकी क्षमता सीमित हो गयी और इसे बड़े पैमाने पर नुकसान भी झेलना पड़ा।

वर्ष 1984 में बोफोर्स को शामिल करने के पहले भारतीय सेना के पास 130 एमएम की तोपें थीं जिसे 1960 और 70 के दशक में शामिल किया गया था। इसके अलावा घरेलू स्तर पर 1980 के दशक में विकसित और निर्मित 105 एमएम की तोप भी थी। 130 एमएम वाली तोप में पहाड़ियों पर मार करने की क्षमता नहीं थी जबकि 105 एमएम में दूर तक वार करने की क्षमता का अभाव था। दोनों तोपें सीमित श्रेणी के गोले ही दाग सकती थीं और उनकी मारक क्षमता भी कम थी। तोपों के आधुनिकीकरण पर रोक लगने का प्रमुख कारण बोफोर्स घोटाला था।

मनमोहन सिंह सरकार में रक्षा मंत्री के तौर पर एके एंटनी का कार्यकाल बोफोर्स के भूत से ग्रसित नजर आता था। वह इतने सशंकित रहते थे कि उन्होंने कई बार ‘अनुरोध पत्रों’ को जारी करने के तुरंत बाद रद्द कर दिया और एक मामले में तो परीक्षण शुरू हो जाने के बाद इसे खारिज किया गया। किसी सौदे में जब भी किसी ने रिश्वत का संदेह व्यक्त किया उस सौदे को ही रद्द कर दिया गया। इससे सर्वाधिक नुकसान उनके कार्यकाल में भारतीय सेना का हुआ जो बोफोर्स हासिल करने के उपरांत अपनी अपेक्षित क्षमताओं को आगे बढ़ाने से चूक गयी।

सेना में तोपों की खरीदारी के दौरान उसके कैलिबर को लेकर कोई सर्वसम्मति नहीं थी। तोप 39, 45 या 52 कैलिबर के हों, चर्चा इसी के इर्द गिर्द घूमती रहती थी।

तोप में बैरल की लंबाई का संकेतक होता है कैलिबर, जो यह उस तोप की मारक क्षमता को निर्धारित करने वाला एक प्रमुख कारक होता है। अंतत: अब तीस साल के बाद तोपों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। देवलाली में आयोजित एक समारोह में रक्षा मंत्री और सेनाध्यक्ष की मौजूदगी में भारतीय सेना में दो नयी तोपें शामिल कर ली गयीं।

भारतीय सेना में शामिल होने वाली नयी तोपें हैं के9-वज्र और एम-777। दोनों 155 एमएम की तोपें हैं। 52 कैलिबर वाली वज्र स्वचालित तोप है और 39 कैलिबर वाली एम-777 हल्के वजन वाली तोप है जिससे हेलीकॉप्टर को लैस किया जा सकता है। दोनों तोपें 30 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं। भारतीय सेना में 100 वज्र और 145 एम-777 तोपें शामिल की जा रही हैं।

वज्र दक्षिण कोरिया के के9-थंडर की प्रतिकृति है और इसका उत्पादन एल एंड टी डिफेंस कर रहा है। दक्षिण कोरिया से 10 तोपें खरीदी गयी हैं और शेष का उत्पादन पुणे के पास कंपनी के संयंत्र में किया जा रहा है। इसी तरह 25 एम-777 को अर्द्धनिर्मित रूप में आयात किया जायेगा और शेष 120 का उत्पादन महेन्द्रा डिफेंस करेगा।

वज्र का इस्तेमाल मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों के लिए निर्धारित है और ये स्ट्राइक कोर का हिस्सा बनेगा। स्वचालित होने की वजह से बख्तरबंद वाहनों के साथ भी इसका इस्तेमाल हो सकता है जिससे सेना को जरूरी मारक क्षमता हासिल होगी। लंबे समय से इन वाहनों को उनकी गति से तालमेल बिठाने वाली तोपों का इंतजार था। इस तरह के पहले भी कई प्रयास किये गये थे जैसे अर्जुन टैंक की चेसिस पर 130 एमएम की बैरल जोड़ने का लेकिन, इन्हें मामूली कामयाबी ही मिल पाई थी।

एम-777 पहाड़ी इलाकों के लिए आदर्श है। हल्के वजन, बेहतर उपयोग क्षमता और हेलीकॉप्टर में ढोने लायक होने की वजह से इनकी तैनाती तेज गति से हो सकती है। इन्हें अग्रिम ठिकानों में भी तैनात किया जा सकता है जिससे तोपों का वार करने का दायरा बढ़ेगा। इस प्रकार ये उस क्षेत्र में सेना की मारक क्षमता को बढ़ायेंगे जहां तैनाती बढ़ाये जाने की स्थिति में सैनिकों को तोपों का पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पाता और उन्हें रक्षात्मक भूमिका अख्तियार करनी पड़ती है।

तोपों के आधुनिकीकरण के अन्य कार्यक्रमों की भी तैयारी चल रही है। पिछले सप्ताह आयुध कारखानों से 200 विन्टेज 130-एमएम तोपों को 155-एमएम/45 कैलिबर में अपग्रेड करने का करार किया गया। ये तोपें 15 आर्टिलरी रेजीमेंट्स में तैनात की जायेंगी। अपग्रेड करने का ये काम 2022 तक पूरा होगा। इस पूरी कार्ययोजना में बैरल बदलने, निशाना लगाने एवं लोड करने की प्रणाली अटैच करने के साथ-साथ गोला दागने की गति और अचूक मारक क्षमता में बढ़ोतरी शामिल है।

एक तोप को अपग्रेड करने का खर्च 70 लाख रूपये है जो नयी तोप की कीमत का पांचवा हिस्सा है। एक बार अपग्रेड होने के बाद तोप की रेंज 29 किलोमीटर से बढ़कर 39 किलोमीटर हो जायेगी। इन तोपों की मारक क्षमता भी 300 फीसदी बढ़ जायेगी क्योंकि नये गोले में 8 किलोग्राम टीएनटी होगा जो पहले 3.4 किलोग्राम था। इन्हें मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों में तैनात किया जा सकता है।

इसके साथ ही बोफोर्स के भारतीय संस्करण धनुष तोपों का परीक्षण कार्य भी मूल निर्माता एबी बोफोर्स के साथ तकनीकी हस्तांतरण करार के तहत जारी है। ये भी 155 एमएम/45 कैलिबर क्षमता वाली तोपें हैं। अगर ये परीक्षण कामयाब रहता है और इसमें कोई बड़ी कमी नहीं पाई जाती तो 300 तोपों की आपूर्ति का आदेश जारी किया जायेगा।

इसके अलावा एडवांस्ड टॉड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) की परीक्षण की प्रक्रिया भी अलग अलग चरणों में है। यह 155-एमएम/52 कैलिबर की दूसरी तोप है जिसे निजी क्षेत्र के सहयोग से डीआरडीओ संयुक्त रूप से विकसित कर रहा है। इस कार्य में जो निजी कंपनिया शामिल हैं उनमें भारत फोर्ज, टाटा पावर स्ट्रेटेजिक इंजीनियरिंग डिवीजन और महेन्द्रा डिफेंस नैवल सिस्टम्स प्रमुख हैं। इस तोप ने संबंधित कैलिबर कैटिगरी में शुरूआती परीक्षणों के दौरान 48.074 किलोमीटर का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। इस रिकॉर्ड को हाल ही में अमेरिका में विकसित तोप ने तोड़ा है। संभावना है कि ऐसी 40 तोपों की आपूर्ति का आदेश जारी किया जायेगा।

माउंटेड गन सिस्टम का परीक्षण व्यावसायिक परीक्षणों में सबसे नया है जिसे जबलपुर की गन कैरेज फैक्ट्री ने तैयार किया है। चेन्नई में अप्रैल में आयोजित डिफेंस एक्सपो में इसे सबसे पहले प्रदर्शित किया गया था। यह प्रणाली भी 155-एमएम/52 कैलिबर की है जिसे कई पहियों वाले ट्रक के ऊपरी हिस्से में अटैच किया जाता है। इसे तेजी से तैनात करके फायरिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका रेंज 40 किलोमीटर का है।

भारतीय सेना और भी कितनी श्रेणियों की तोप प्रणाली खरीदने वाली है इसकी पुष्टि अभी नहीं हो पाई है। अगर देश के अंदर इनका इस्तेमाल नहीं हो तो इनका निर्यात भी किया जा सकता है जिससे भारत के सैन्य निर्यात की संभावनाएं और बेहतर होंगी।

अपर्याप्त क्षमता वाली तोपों की वजह से दशकों से पिछड़ रही भारतीय सेना के लिए उत्साह का दौर है। जिन तोपों का परीक्षण जारी है, जिनकी खरीद हो गयी है या जिन्हें विकसित किया जा रहा है वो ‘मेक इन इंडिया’ या ‘मेड इन इंडिया’ श्रेणी के दायरे में हैं। निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोलने की वजह से तोपों की गुणवत्ता में सुधार आया है और ऐसा ही अब दूसरे उपकरणों के मामले में नजर आ सकता है।

डीआरडीओ पर दबाव के कारण उन्हें मजबूर होकर बेहतर तकनीक के लिए निजी क्षेत्र के सहयोग के साथ काम करने के लिए तैयार होना पड़ा। ये नीति कारगर रही है हांलाकि परीक्षणों के दौरान गलतियां भी हुई हैं और नाकामियां भी हाथ लगी हैं। इनका समाधान किया जायेगा और भारतीय सेना को नयी तोपें हासिल होंगी जिसका इंतजार ये दशकों से कर रही थीं।

भारतीय सेना लंबी दूरी वाली तोप, आधुनिक रॉकेट प्रणाली एवं बेहतर लक्ष्य बेधन क्षमता हासिल हो जाने के साथ साथ यूएवी और ड्रोन सहित निगरानी प्रणाली मिल जाने पर कुछ वर्षों के अंदर युद्धक्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाने में कामयाब होगी।

लंबी दूरी की मिसाइलें सामरिक कमांड के अंतर्गत ही रहेंगी। इससे पाकिस्तान की ओर से होने वाले युद्धविराम उल्लंघनों की जवाबी प्रतिक्रिया में बदलाव आ सकता है। वार करने का दायरा बढ़ने और एकीकृत लक्ष्यबेध क्षमता बढ़ने से भारतीय सेना की दूरवर्ती पाकिस्तानी चौकियों और आतंकवादी शिविरों को निशाना बनाने की क्षमता बढ़ेगी। बेहतर गोला बारूद और मारक क्षमता से नुकसान भी और विनाशकारी होगा।

अंतत: युद्ध जीताने वाली टुकड़ी के आधुनिक होने से सेना की आक्रमण क्षमता को बेहतर सहयोग मिल पायेगा। इससे एलओसी पर सेना का संतुलन बेहतर होगा और अगर पाकिस्तान कोई शरारत करता है तो उसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ेगा। भारतीय सेना में इन तोपों के शामिल होने के बाद पाकिस्तान को मजबूरन हथियारों की दौड़ में शामिल होना पड़ेगा जिसका खर्च उठाना उसके बूते की बात नहीं।

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