Author : Debosmita Sarkar

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jul 04, 2023 Updated 0 Hours ago

आने वाले दशकों में अपने अनुकूल डेमोग्राफिक बदलाव का फायदा लेने के लिए विकासशील और कम विकसित देशों (LDC) को बाल श्रम के मुद्दे का समाधान करने की जरूरत है.

ग्लोबल साउथ में बाल श्रम की कीमत

बाल श्रम ऐसा व्यापक मुद्दा बना हुआ है जो दुनिया भर को तकलीफ देता है, खास तौर पर विकासशील देशों को. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने बालश्रम की परिभाषा देते हुए कहा है कि ऐसा काम जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और नैतिक तौर पर बच्चों के लिए नुकसानदेह हो वो बाल श्रम है. ILO के मुताबिक बाल श्रम स्कूली शिक्षा हासिल करने का अवसर नहीं देकर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में रुकावट डालता है, बच्चों को मजबूर होकरपढ़ाई-लिखाई छोड़नी पड़ती है या फिर स्कूल जाने के साथ-साथ उन्हें जरूरत से ज्यादा काम का बोझ बर्दाश्त करना पड़ता है. जब बाल श्रम अपने सबसेखराब रूप में दिखता है तो इसमें गुलामी, परिवार से दूरी, खतरनाक हालात एवं बीमारी का सामना और अकेलेपन की स्थिति दिखती है

ये लेख बाल श्रम की मौजूदा व्यापकता और युवाओं के विकास एवं ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में आर्थिक तरक्की पर बाल श्रम के दीर्घकालीन असर की पड़ताल करता है.

ये लेख बाल श्रम की मौजूदा व्यापकता और युवाओं के विकास एवं ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में आर्थिक तरक्की पर बाल श्रम केदीर्घकालीन असर की पड़ताल करता है. लेख में किसी देश के रोजगार में बच्चों के आर्थिक असर की डेमोग्राफिक विंडो ऑफ ऑपर्च्यूनिटी (DWO यानी वो समय जब काम करने वाले लोगों की आबादी खास तौर पर महत्वपूर्ण होती है) से फायदा उठाने की क्षमता पर ध्यान दिया गया है, साथ हीइसमें ग्लोबल साउथ के विकास से जुड़े एजेंडे में टिकाऊ आर्थिक विकास को हासिल करने के लिए बाल श्रम को खत्म करने को महत्वपूर्ण बताया गयाहै

आज के समय में ग्लोबल साउथ कहां खड़ा है? 

साल 2000 से बाल श्रम को खत्म करने (सभी रूपों में) की तरफ विश्व की प्रगति में अच्छी रफ्तार देखी गई है. साल 2000 में 5 से 17 वर्ष की उम्र के245.5 मिलियन (16 प्रतिशत) बच्चों को खतरनाक और गैर-खतरनाक कामों में लगाया गया था. ये आंकड़ा 2016 में गिरकर 151.6 मिलियन (9.6 प्रतिशत) हो गया. लेकिन 2016 से 2020 के बीच कोई खास बदलाव दर्ज नहीं किया गया- बाल श्रम की दर 9.6 प्रतिशत ही बनी रही और 9 मिलियनअतिरिक्त बच्चे बाल श्रम के दायरे में गए (कुल संख्या के मामले में). इनमें से 79 मिलियन बच्चों को खतरनाक हालात का सामना करना पड़ाजिसकी वजह से उनका कल्याण और संपूर्ण विकास जोखिम में पड़ गया. वैसे तो आधिकारिक अनुमान उपलब्ध नहीं है लेकिन बाल श्रम को लेकरILO की रिपोर्ट- बाल श्रम: वैश्विक आकलन 2020, रुझान और आगे का रास्ता- बताती है कि कोविड-19 महामारी ने संभवत: 8.9 मिलियन और बच्चोंको असुरक्षित रोजगार की तरफ खदेड़ दिया है और ऐसे हालात से निपटने के लिए कोई संगठित कोशिश नहीं की गई. 

आंकड़ा 1: 2022 में दुनिया भर में बाल श्रम की घटनाओं का अनुमान

[caption id="attachment_124280" align="aligncenter" width="660"] Counting The Costs Child Labour In The Global South स्रोत: बाल श्रम: वैश्विक आकलन 2020, रुझान और आगे का रास्ता [/caption]

हालांकि ये आंकड़े क्षेत्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण असमानता को छिपाते हैं. सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीका (सब-सहारन अफ्रीका) में 24 प्रतिशत के साथ सबसे ज्यादा बाल श्रम की मौजूदगी है. ये उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के मुक़ाबले तीन गुना ज्यादा है जबकि दक्षिण एवंदक्षिण-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन की तुलना में चार गुना ज्यादा है, वहीं यूरोप और उत्तर अमेरिका के मुकाबले 10 गुना ज्यादा है. बालश्रम को खत्म करने में ग्लोबल साउथ की प्रगति को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं क्योंकि 2016 से 2020 के बीच काम करने वाले बच्चों की संख्या मेंबढ़ोतरी हुई है, वहीं विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बाल श्रम की घटनाओं में लगातार कमी रही है (हालांकि इसकी रफ्तार में कमी आई है). इसकेअलावा बिना पैसे का भुगतान किए बाल श्रम का हिस्सा कृषि क्षेत्र, परिवारों के अनौपचारिक काम और घरेलू देखभाल में काफी ज्यादा है. चूंकि ग्लोबलसाउथ की अर्थव्यवस्था में इन क्षेत्रों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, ऐसे में इन देशों के बच्चे बाल श्रम से जुड़े रोजगार को लेकर ज्यादा असुरक्षित बने हुए हैं

ये लेख बाल श्रम की मौजूदा व्यापकता और युवाओं के विकास एवं ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में आर्थिक तरक्की पर बाल श्रम के दीर्घकालीन असर की पड़ताल करता है.

श्रम और आर्थिक विकास: एक दुष्चक्र 

वैसे तो बाल श्रम समाज के लिए नुकसानदायक है लेकिन अलग-अलग कारणों से परिवारों और कंपनियों को इसे बनाये रखने का प्रोत्साहन मिलता है. गरीबी, आमदनी की मजबूरी, शिक्षा तक सीमित पहुंच और कम अपेक्षित लाभ जैसे कारण गरीब परिवारों को इस बात के लिए मजबूर करते हैं कि वोअपने बच्चों को काम करने के लिए भेजे. जोखिमों को लेकर असुरक्षा और खराब क्वालिटी के वित्तीय बाजार भी बाल श्रम के प्रचलन में योगदान देते हैं. इसके अलावा जो कंपनियां ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा कमाना चाहती हैं, वो भी कम मजदूरी देकर लंबे समय तक काम कराने के लिए बाल मजदूरों कोरोजगार देती हैं. इससे उनकी उत्पादन की लागत कम होती है. सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीका या दक्षिण एशिया या दक्षिण-पूर्व एशियाजैसे क्षेत्रों में बच्चों का शोषण कृत्रिम रूप से श्रम की लागत कम करता है. इससे वैश्विक बाजारों में एक अनुचित फायदे की स्थिति बनती है और इन क्षेत्रोंमें विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलता है. इससे अक्सर कंपनियों को इस बात के लिए बढ़ावा मिलता है कि वो अर्थव्यवस्था के औपचारिक सुरक्षा जालके बाहर कम समय के काम के लिए बच्चों का शोषण करें

लेकिन समस्या दोनों तरफ से हैं- बाल श्रम की व्यापकता सीधे तौर पर अल्पकाल और दीर्घकाल में आर्थिक विकास में बाधा डालती है. अकुशल श्रम केलिए बाजार मजदूरी को दबाकर और हुनर केंद्रित तकनीकों की तरफ बदलाव को हतोत्साहित करके बाल श्रम आमदनी के मौजूदा कम स्तर की ओर लेजाता है. इसके अलावा बाल श्रम गरीबी के चक्र, खास तौर पर ग्रामीण परिवारों में, को बनाए रखता है. बाल श्रम ग्लोबल साउथ में दीर्घकालीनआर्थिक विकास के कम स्तर में योगदान करने वाला महत्वपूर्ण कारण हो सकता है. बाल श्रम अक्सर बच्चों से उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई और हुनरसीखने का अवसर छीनता है, साथ ही लंबे समय में उनकी आर्थिक उत्पादकता और रोजगार के अवसरों को सीमित करता है

ग्लोबल साउथ में बाल मजदूर के तौर पर रोजगार के लिए असुरक्षित बच्चों के मामले में इस बात की आशंका ज्यादा होती है कि उनके पास उत्पादन केहुनर की कमी होगी और इसलिए भविष्य में वो कम मजदूरी कमा पाएंगे. दुनिया भर में बाल श्रम में शामिल बच्चों में से एक-तिहाई से ज्यादा के लिएस्कूली शिक्षा की आवश्यकताओं और कामकाजी जीवन के बीच संतुलन एक चिंता बनी हुई है. अगर उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएतब भी ये बच्चे अक्सर पढ़ाई-लिखाई के मामले में अपने साथियों के मुकाबले जूझते रहते हैं और इस तरह वो करियर की प्रगति के मामले में भी पिछड़जाते हैं. यूरोप और उत्तर अमेरिका में जहां स्कूल की पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करने वाले बच्चों की संख्या बेहद कम है, वहीं पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व एशिया(37.2 प्रतिशत), मध्य एवं दक्षिण एशिया (35.3 प्रतिशत) और अफ्रीका (28.1 प्रतिशत) में ये संख्या बहुत ज्यादा है

बाल श्रम की व्यापकता तकनीकी क्षमता हासिल करने और उच्च शिक्षा की तरफ बदलाव में भी रुकावट डालती है और इस तरह टिकाऊ आर्थिकविकास की संभावना में अड़चन डालती है. बाल श्रम की वजह से शारीरिक चोट, यौन उत्पीड़न, भावनात्मक दुर्व्यवहार और उपेक्षा जैसी स्थिति भी बनतीहै. इस तरह किसी देश की युवा आबादी के मानवीय पूंजी विकास में अड़चन आती है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं, जैसे कि सांस कीबीमारी और कैंसर, खड़ी होती हैं जो लोगों की आर्थिक और सामाजिक भलाई पर और ज्यादा असर डालती हैं

सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ग्लोबल साउथ में बाल श्रम को रोकने के लिए एक व्यापक रणनीति के तहत बच्चों को काम करने से रोकना चाहिए, उन्हें बाहर निकालना चाहिए और उनका पुनर्वास करना चाहिए.

ये ग्लोबल साउथ के लिए गंभीर आर्थिक परिणाम की तरह हैं क्योंकि उसकी अपेक्षाकृत युवा आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शोषण की आशंका सेअसुरक्षित बना हुआ है. बचपन के शुरुआती चरण में विकास में रुकावट डालकर बाल श्रम ग्लोबल साउथ की अर्थव्यवस्थाओं की उस संभावना पर सीधाअसर डालता है जिसके जरिए वो अपनी डेमोग्राफिक विंडो ऑफ ऑपर्च्यूनिटी का फायदा उठाना चाहते हैं. दूसरों पर कम निर्भर और उत्पादन में शामिलकाम-काजी आबादी किसी देश के आर्थिक विकास को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकती है. इसलिए जनसंख्या में बदलाव के इस दौर कोविंडो ऑफअपॉर्चुनिटी के नाम से जाना जाता है. एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के ज्यादातर देश इस दौर से गुजर रहे हैं जबकि अफ्रीका के ज्यादातर देशइस स्थिति से पहले के चरण में हैं. ये दौर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को इस बात की अनुमति देता है कि वो टिकाऊ आर्थिक विकास की ओर ले जानेके लिए अपनी जनसंख्या का इस्तेमाल करें. लेकिन पहले की रिसर्च संकेत देती हैं कि आर्थिक विकास के लिए जनसंख्या से जुड़े इस फायदे को उठानेकी किसी देश की संभावना मूलभूत कारणों जैसे कि मानवीय एवं शारीरिक पूंजी के स्तर, श्रम बाजार की संरचना और वित्तीय बनावट पर ज्यादा निर्भरकरती है. बाल श्रम कम स्तर की मानवीय पूंजी के निर्माण में योगदान देता है, युवाओं के विकास में रुकावट डालता है और इस तरह ग्लोबल साउथ मेंकामकाजी आबादी की उत्पादन क्षमता पर असर डालता है

इसलिए, चूंकि विकासशील और कम विकसित देश (LDC) आने वाले दशकों में अपनी जनसंख्या से जुड़े फायदे का इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहेहैं, ऐसे में उनके लिए ये महत्वपूर्ण हो जाता है कि रोजगार में बच्चों के मुद्दे का समाधान करें और SDG (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल) 8 यानीसम्मानजनक काम और आर्थिक विकास के साथ प्रगति को प्राथमिकता दें. मुख्य रूप से SDG 8 के तहत टारगेट 8.7 का लक्ष्य हैबाल श्रम के सबसेखराब तरीकों को खत्म करने के लिए तुरंत और असरदार कदम उठाना और 2025 तक सभी रूपों में बाल श्रम को खत्म करना”. इसे हासिल करने केलिए व्यापक स्तर पर नीतिगत कदमों को आगे ले जाने की जरूरत है. डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर या कर्ज और बीमा तक पहुंच के जरिए सामाजिक सुरक्षाको प्रोत्साहन पारिवारिक आमदनी में सीधे तौर पर बढ़ोतरी करके बाल श्रम की सप्लाई कम कर सकते हैं. वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकरण काइस्तेमाल बाल श्रम को कम-से-कम करने के लिए किया जा सकता है. इसके लिए विकास सहयोग से जुड़े कार्यक्रमों या एलायंस 8.7 जैसी साझेदारी, जो सार्वजनिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए निवेश करती है, का उपयोग किया जा सकता है. साथ ही बाल श्रम को खत्म करने के मामले में प्रगति कोसुनिश्चित करने के उद्देश्य से सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों की पहचान के लिए जानकारी साझा करने वाले प्लैटफॉर्म को देने के लिए और सभी उपयुक्त हिस्सेदारों केबीच भागीदारी का अवसर तैयार करने के लिए भी एलायंस 8.7 जैसी साझेदारी अच्छी है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ग्लोबल साउथ में बाल श्रम कोरोकने के लिए एक व्यापक रणनीति के तहत बच्चों को काम करने से रोकना चाहिए, उन्हें बाहर निकालना चाहिए और उनका पुनर्वास करना चाहिए. इसतीन तरफा दृष्टिकोण को अपनाकर ग्लोबल साउथ के देश बाल श्रम के व्यापक मुद्दे का समाधान करने में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल कर सकते हैं औरटिकाऊ आर्थिक विकास के लिए खुद को सक्षम बना सकते हैं.


देबोस्मिता सरकार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में जूनियर फेलो हैं.

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