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इस बात पर सोच विचार करना चाहिए कि क्या वो ‘मुफ़्त सेवा’ के लिए लंबे वक़्त तक अपनी निजता और आख़िर में स्वायत्तता का हनन होते रहने देने को राज़ी हैं?
इस डिजिटल युग में एक कहावत बार-बार दोहराई जाती है:अगर कोई चीज़ मुफ़्त है, तो समझिए कि आप ही उत्पाद हैं. दुनिया की विशाल तकनीकी कंपनियां मसलन, फ़ेसबुक और गूगल पर लंबे समय से जनता और सरकारों की भौंहें तनी हुई हैं. इस की वजह इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की निजता और विज्ञापन से जुड़ी नीतियां हैं. हालांकि, केवल ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां ही मुफ़्त ऑनलाइन सेवा के नाम पर अपना कारोबार नहीं चमका रही हैं. ख़बर ये है कि चीन की सरकार मुफ़्त में उपलब्ध ऐप, जैसे वीचैट का इस्तेमाल ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने के लिए कर रही है. और इस बेज़ा इस्तेमाल को चीन ने अपने साइबर सुरक्षा और डेटा क़ानूनों के ज़रिए संस्थागत बना दिया है, ताकि लोगों की निगरानी कर सके. भारत के निजी डेटा संरक्षण बिल का संशोधित ड्राफ़्ट 11 दिसंबर को सार्वजनिक किया गया था. ये प्रस्तावित क़ानून ख़ामियों से भरपूर है और, डिजिटल युग की इन चुनौतियों का बेहद कमज़ोर समाधान सुझाने वाला है. इस प्रस्तावित क़ानून ने भी भारतीय यूज़र्स को मंझधार में ही छोड़ दिया है.
भारत की ऐप आधारित अर्थव्यवस्था में चीन के ऐप्लिकेशन्स का बोलबाला है. 2017 में गूगल ऐप में दर्ज, भारत में 100 सब से ज़्यादा इस्तेमाल होने वाले ऐप्स में से केवल 18 चीन के थे. मगर, अगले एक साल में, यानी 2018 में भारत के टॉप रेटेड 100 ऐप्स में चीन के ऐप की संख्या 44 तक पहुंच गई थी. इन में से ज़्यादातर चीनी ऐप मुफ़्त हैं. जैसे कि टिकटॉक, या पीयूबीजी (PUBG) और क्लैश ऑफ़ किंग्स जैसे गेमिंग ऐप. इन के अलावा क्लब फैक्ट्री जैसे ई-रिटेल के ऐप भी काफ़ी लोकप्रिय हैं.
भारत में मशहूर चीन के ऐप
ऐप | मूल कंपनी | वर्ग | डाउनलोड की संख्या (5 दिसंबर, 2019 तक) |
टिक टोक (+ टिकटोक लाइट) | बाइटडांस | लघु वीडियो | 13.6 मिलियन (+255,874) |
PUBG मोबाइल | Tencent | खेल | 22.9 मिलियन |
क्लब फैक्टरी | क्लब फैक्टरी | ई-कॉमर्स | 1.3 मिलियन |
गोत्र संघर्ष | Supercell /Tencent (बहुसंख्यक हिस्सेदारी) | खेल | 50.6 मिलियन |
Likee | YY इंक | लघु वीडियो | 4.1 मिलियन है |
इसे शेयर करें | शेयरइट टेक्नो. कं. लि. | फ़ाइल साझा करना | 12.7 मिलियन |
Camera360 | पिनग्यो इंक | चित्र संपादन | 4.9 मिलियन |
नमस्कार | बाइटडांस | सामाजिक | 1.1 मिलियन |
यूसी ब्राउज़र | अलीबाबा समूह | ब्राउज़र | 20.6 मिलियन |
Xenia | बीजिंग Anqi Zhilian प्रौद्योगिकी कंपनी लिमिटेड | फ़ाइल साझा करना | 2.2 मिलियन |
ब्यूटीप्लस | मीतू इंक। | फ़ोटो एडिटिंग | 4.2 मिलियन |
मैं करता हूं | अलीबाबा | खेल | 3.8 मिलियन |
Tencent | संदेश | 5.7 मिलियन | |
CamScanner | INTSIG सूचना कंपनी लिमिटेड | स्कैनर | 2.2 मिलियन |
टर्बो वीपीएन | इनोवेटिव कनेक्टिंग | वीपीएन | 3.3 मिलियन |
सारणी-1 भारत में लोकप्रिय और 10 लाख से ज़्यादा डाउनलोड किए गए चीन के ऐप.
इस सारणी से स्पष्ट है कि भारत, चीन के ऐप्स और उन से जुड़ी हुई सेवाओं का बहुत बड़ा बाज़ार है. ऐप्स की मार्केटिंग के अलावा चीन की तकनीकी कंपनियों ने भारतीय तकनीकी स्टार्ट अप कंपनियों में भी भारी मात्रा में निवेश किया है. केवल 2018 में ही चीन के पूंजीपतियों ने भारतीय स्टार्ट अप कंपनियों में क़रीब 5.6 अरब डॉलर का निवेश किया था.
चीन के ऐप कई बार भारत सरकार की निगरानी के दायरे में आए हैं. ख़ास तौर से 2017 में चीन के साथ डोकलाम में सीमा विवाद के दौरान और फिर 2019 के आम चुनावों के दौरान. दिसंबर 2017 में भारत के रक्षा मंत्रालय ने सैन्य बलों को निर्देश दिया था कि वो अपने यहां से 42 चीनी ऐप्स को अनइस्टॉल कर दें. क्योंकि ऐसी ‘भरोसेमंद ख़बरें’ हैं कि चीन के इन ऐप में ख़ुफ़ियागीरी करने वाले स्पाइवेयर या वायरस डले हुए हैं. अप्रैल 2019 में, चीन की तकनीकी कंपनी बाइटडांस उस वक़्त विवादों में आ गई थी, जब उस पर इल्ज़ाम लगे थे कि वो अपने ऐप्स में ग़लत जानकारियां रखती है. साथ ही साथ बाइटडांस पर ये आरोप भी लगा था कि उस के ऐप्स को बच्चों का यौन शोषण करने वाले बेतहाशा इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन, कंपनी ने तमाम आरोपों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की.
चीन के सोशल मीडिया और वीडियो शेयरिंग ऐप्स पर लगातार ये आरोप लगते रहे हैं कि वो अपने प्लेटफॉर्म पर मौजूद जानकारी पर निगरानी नहीं रखते. इस वजह से इन प्लेटफॉर्म का बेज़ा इस्तेमाल होता रहा है. लेकिन, इस के अलावा भी चीन के ऐप का बाज़र जवाबदेही और निजता के कई मसलों की वजह से घेरे में है.
नवंबर 2019 में चीन से दो बड़ी और अभूतपूर्व जानकारियां लीक हुई थीं. इन से पता चला था कि चीन, अपने शिन्जियांग सूबे के वीगर मुसलमानों को बड़ी संख्या में नज़रबंद कर के रख रहा है. और उन को ‘फिर से तालीम देने’ के नाम पर सताया जा रहा है. इन दस्तावेज़ों से पता चला था कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने, वीगर मुसलमानों की शिनाख़्त करने और उन्हें निशाना बनाने के लिए, दो लोकप्रिय ऐप्स ज़पया और वीचैट (चीन में वेइचिन) की मदद ली थी.
चीन की कामयाब स्टार्ट अप कंपनी मेगवी पिछले साल की शुरुआत में तब सुर्ख़ियों में आई थी, जब अमेरिका के वाणिज्य विभाग ने इस कंपनी को ब्लैक लिस्ट कर दिया था. अमेरिका का आरोप था कि इस कंपनी की चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक फेस++ को चीन की सरकार इस्तेमाल कर रही है, ताकि वीगर मुसलमानों पर ज़ुल्म ढा सके. फेस++ के ग्राहकों में लोकप्रिय फोटो एडिटिंग ऐप कैमरा 360 और मीतू के ब्यूटी प्लस भी हैं, जो भारत में बहुत लोकप्रिय हैं.
वेइचिन और ज़पया दोनों ही ऐप में ऐसे प्रावधान हैं जो पूर्वोक्त आधार पर लोगों की निजी जानकारियां, सरकार को देने को बाध्य करते हैं.
चीन की बड़ी तकनीकी कंपनियां कॉरपोरेट जवाबदेही और पारदर्शिता के मामले में भी बेहद कमज़ोर हैं. वीचैट की मालिक कंपनी टेनसेंट और बायडू ने हाल के दिनों में इन पैमानों पर कुछ सुधार किया है. वो भी चीन की सरकार के पर्सनल इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी स्पेसिफ़िकेशन (2018) के नियमों के जारी होने के बाद. लेकिन, इन नियमों से ख़ुद चीन की सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र की रक्षा के अलावा आम जन की सुरक्षा, आम लोगों की सेहत और महत्वपूर्ण सार्वजनिक हितों के नाम पर लोगों की निगरानी के अधिकार मिलते हैं. वेइचिन और ज़पया दोनों ही ऐप में ऐसे प्रावधान हैं जो पूर्वोक्त आधार पर लोगों की निजी जानकारियां, सरकार को देने को बाध्य करते हैं.
निजी जानकारी से जुड़े चीन के नियम या स्पेसिफ़िकेशन, मल्टी लेवल प्रोटेक्शन स्कीम (MLPS 2.0) को अगर हम मिलाकर देखें, तो ये नियम क़ायदे काफ़ी हद तक भारत के निजी आंकड़ों के संरक्षण के विधेयक से कई मामलों में मिलते हैं. इन दोनों ही क़ानूनों में निजी जानकारियों से जुड़े आंकड़े रखने वालों को इस बात के लिए बाध्य किया जाता है कि वो ये आंकड़े किन परिस्थितियों में सरकार से साझा करें. दोनों ही देशों के क़ानून डेटा के निरीक्षण करने वाली संस्थाओं का नियमन करते हैं. और कई मामलों में आंकड़ों के सीमा पार आदान-प्रदान पर तरह-तरह की पाबंदियां लगाते हैं.
ऐसे में भारत के बाज़ार में सक्रिय तमाम चीनी ऐप्स के यूज़र्स के लिए इन नियमों और पाबंदियों का क्या मतलब है? पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल का जो सब से नया ड्राफ़्ट जारी किया गया है, उस ने आंकड़ों को भारत में सहेजने के नियम, पुराने ड्राफ्ट के मुक़ाबले काफ़ी हद तक आसान कर दिए हैं. (बिल का चैप्टर-7). प्रस्तावित विधेयक में प्रावधान है कि ‘संवेदनशील’ निजी डेटा भारत में ही रखा जाना चाहिए. लेकिन, इसे यूज़र की सहमति से दूसरे देश में भी स्टोर किया जा सकता है. वहीं यूज़र्स के ‘बेहद महत्वपूर्ण’ डेटा को भारत में ही प्रोसेस किया जाना होगा. हालांकि, इसे भारत में सहेजने की बाध्यता नए विधेयक में ख़त्म कर दी गई है. चीन की तकनीकी कंपनियां जैसे कि, अलीबाबा और टेनसेंट ने पहले ही भारत में अपने डेटा सेंटर खोल दिए हैं. वहीं, बाइटडांस जैसी दूसरी कंपनियां भी ऐसा करने की योजनाओं पर काम कर रही हैं.
कैम्ब्रिज एनालिटिका के विवाद के बाद हुए सर्वे में पाया गया था कि ज़्यादातर यूज़र्स उस ऐप को इस्तेमाल करते रहना चाहेंगे, अगर वो मुफ़्त में उपलब्ध हो. वो अपनी निजता की रक्षा के लिए थोड़े से पैसे भी देने को तैयार नहीं थे.
इसीलिए, प्रस्तावित निजी डेटा संरक्षण बिल का चैप्टर-7 भारतीय यूज़र्स के डेटा को भारतीय क़ानूनों के दायरे में लाने में मददगार बनाया गया है. हालांकि, इस मामले में भारतीय क़ानून को अभी बहुत सी कमियां दूर करने की ज़रूरत है. जहां तक पीडीपी बिल में निजी डेटा को नियंत्रित करने वाली कंपनियों का सवाल है, तो इनकी बाध्यताएं, नए क़ानून में स्पष्ट कर दी गई हैं. इस बिल में आंकड़ों को हमेशा के लिए मिटाने के अधिकार यानी राइट टू बी फॉरगॉटेन का भी ज़िक्र है. लेकिन, इस बिल में राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून-व्यवस्था के नाम पर जो कई रियायतें दी गई हैं, उन की कड़ी आलोचना हो रही है. क्योंकि ये बिल सरकारी एजेंसियों को अपने दायरे से पूरी तरह से आज़ाद रखने वाला है. कुल मिलाकर हर निजी और बेहद महत्वपूर्ण डेटा को सरकारी एजेंसियां देख सकती हैं. इस के लिए उनके पास कई वजहें होंगी मसलन, सर्वव्यापी मगर अस्पष्ट परिभाषाएं, जैसे, ‘भारत की संप्रभुता और एकता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी ताक़तों से भारत के दोस्ताना ताल्लुक़ात और सार्वजनिक व्यवस्था.’ इन के आधार पर सरकारी एजेंसियों के पास ऐप के मालिकों से हर तरह के आंकड़े लेने का अधिकार होगा.
कुल मिलाकर, भारत के ऐप यूजर्स की स्थिति त्रिशंकु जैसी हो गई है. उस का निजी डेटा कहीं भी जाएगा, वो सरकार की सर्वशक्तिमान निगाहों से बच नहीं पाएगा.
भारत के ऐप बाज़ार में चीन के दबदबे की सब से बड़ी वजह ये है कि भारत के यूज़र्स किसी ऐप को इस्तेमाल करने की क़ीमत नहीं चुकाना चाहते. वो सब कुछ मुफ़्त में चाहते हैं. हालांकि, ये समस्या कोई भारत के लिए अनोखी नहीं है. कैम्ब्रिज एनालिटिका के विवाद के बाद हुए सर्वे में पाया गया था कि ज़्यादातर यूज़र्स उस ऐप को इस्तेमाल करते रहना चाहेंगे, अगर वो मुफ़्त में उपलब्ध हो. वो अपनी निजता की रक्षा के लिए थोड़े से पैसे भी देने को तैयार नहीं थे. इस के अलावा निजता के विरोधाभास हमें ये एहसास दिलाते हैं कि लोग सुविधा के लिए निजता के अधिकार को छोड़ने के लिए तैयार होते हैं. आम तौर पर यूज़र्स अपने निजी डेटा की सुरक्षा को बहुत ज़्यादा अहमियत देने को तैयार नहीं दिखते हैं.
इसी वजह से ये महत्वपूर्ण हो जाता है कि ऐप के यूज़र्स को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि उन का डेटा कहां जा रहा है. उन्हें इस बात पर सोच विचार करना चाहिए कि क्या वो ‘मुफ़्त सेवा’ के लिए लंबे वक़्त तक अपनी निजता और आख़िर में स्वायत्तता का हनन होते रहने देने को राज़ी हैं?
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Trisha Ray is an associate director and resident fellow at the Atlantic Council’s GeoTech Center. Her research interests lie in geopolitical and security trends in ...
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