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चीन-म्यांमार रेलवे का मामला, जो देखने में दो देशों के बीच परिवहन नेटवर्क की सीधी-सादी पहल जैसा दिखाई दे रहा है, इसके भारत के लिए दीर्घकालिक और महत्वपूर्ण सामरिक परिणाम हो सकते हैं।
हाल की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चीन और म्यांमार, चीन-म्यांमार सीमा से सटे के म्यांमार के म्यूज और माण्डले क्षेत्र के बीच रेलवे लाइन बिछाने की संभावनाओं के बारे में पता लगाने के लिए अध्ययन कराने पर विचार कर रहे हैं। रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि चीन भी अपने यून्नान प्रांत की राजधानी कुनमिंग को चीन-म्यांमार सीमा से सटे रूइली क्षेत्र के साथ जोड़ने के लिए उनके बीच रेलवे लाइन बिछाने की प्रक्रिया में है। मीडिया की रिपोर्ट्स में यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है कि ये दोनों रेलवे लाइनें आपस में जुड़ी होंगी या उन्हें अलग-अलग ऑपरेट किया जाएगा। हालांकि इनके एक बार चालू होते ही, इन दोनों रेलवे लाइनों से चीन और म्यांमार के बीच होने वाली आर्थिक गतिविधियों को बहुत प्रोत्साहन मिलेगा और इन दोनों देशों का मौजूदा आपसी व्यापार और भी मजबूत हो जाएगा।
इस लेखक ने 2017 में चीन-म्यांमार सीमा पर स्थित चीन के सीमावर्ती शहर रूइली की यात्रा के दौरान रूइली और म्यूज के बीच फलते-फूलते सीमा व्यापार का जायजा लिया था। रेलवे नेटवर्क बिछाने की संभावनाओं का पता लगाने का अध्ययन कराना, म्यांमार में चीन की मौजूदा ढांचागत परियोजनाओं की सूची का अगला क्रम है।
पिछले कुछ वर्षों से चीन एक बार फिर से सक्रिय होता दिखाई दे रहा है और उसने म्यांमार में अपना खोया आधार धीरे-धीरे फिर से पाना शुरू कर दिया है। हैरानी की बात यह है कि म्यांमार में नागरिक सरकार के गठन के बाद से दोनों देशों के द्विपक्षीय आर्थिक संबंध और भी गहरे हो गये हैं तथा पहले से ज्यादा संस्थागत रूप ले चुके हैं। म्यांमार औपचारिक रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल हो चुका है तथा चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे को आकार देने की दिशा में दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं।
चीन-म्यांमार रेलवे का मामला, जो देखने में दो देशों के बीच परिवहन नेटवर्क की सीधी-सादी पहल जैसा दिखाई दे रहा है, इसके भारत के लिए दीर्घकालिक और महत्वपूर्ण सामरिक परिणाम हो सकते हैं। सुरक्षा के दृष्टिकोण से, म्यांमार से सटी भारत की सीमा ने ऐतिहासिक रूप से गंभीर सुरक्षा चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। उदाहरण के लिए, बी. रमन की काओबॉयज ऑफ आर एंड ए डब्ल्यू डाउन मेमरी लेन शीर्षक वाली पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि 1962 के युद्ध से पहले चीनी सैनिकों ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को धमकाने के लिए म्यांमार के रास्ते का इस्तेमाल किया था। रमन ने आगे लिखा है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले चीनी सेना ने भारत के पूर्वोत्तर हिस्से को चुनौती देने के लिए अपने सैनिकों और अपने साजोसामान की आवाजाही के लिए उत्तरी म्यांमार के स्थानीय खच्चरवानों का इस्तेमाल किया था।
लेखक सुबीर भौमिक ने अपनी पुस्तक इंसर्जेंट क्रॉसफायर नॉर्थईस्ट इंडिया में लिखा है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड के विद्रोही 1960 के दशक में म्यांमार के मार्ग का इस्तेमाल करते हुए चीन पहुंचे थे। दरअसल, मीडिया में ऐसी खबरों की भरमार है, जिनमें कहा गया है कि यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा-इंडीपेंडेंट) का मिलिट्री चीफ परेश बरुआ संभवत: रूइली में रहता है।
इन तथ्यों को देखते हुए, चीन-म्यांमार सीमा के दोनों ओर प्रस्तावित रेलवे परियोजनाओं के प्रति भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठानों को संदेह होना लाजिमी है। भारत के पड़ोस की भूराजनीति की जटिल और विकसित होती प्रकृति को देखते हुए, यह मानना पूरी तरह गलत न होगा कि भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ने की स्थिति में, चीन अपने सैनिकों को भारत की सरहद तक पहुंचाने के लिए इन रेलवे लाइनों का इस्तेमाल करने के बारे में सोच सकता है। या फिर, मामूली संघर्ष या कूटनीतिक विवाद के समय, चीन अपनी ताकत दिखाने के लिए यून्नान प्रांत में मौजूद सैनिकों को जमा कर सकता है और भारत में अपने भेदिये भेज सकता है। इन तथ्यों को देखते हुए, भारत के लिए आवश्यक हो जाता है कि वह इस मोर्चे पर हो रही घटनाओं पर पैनी नजर रखे।
कूटनीतिक स्तर पर, भारत के लिए महत्वपूर्ण होगा कि वह चीन और म्यांमार दोनों के समक्ष अपनी चिंताएं प्रकट करे तथा इन परियोजनाओं के पीछे उनके इरादों के बारे में स्पष्टीकारण मांगे। इस परियोजनाओं से जुड़ी सुरक्षा चिंताओं के बारे में म्यांमार से आश्वासन मांगना भी भारत के लिए महत्वपूर्ण होगा।
भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों के बीच मौजूदा सुधार को देखते हुए, चीन के लिए शायद अच्छा यही होगा कि वह इन परियोजनाओं के बारे में अपने इरादे खुद ही स्पष्ट कर दे और प्रस्तावित रेलवे परियोजना के बारे में भारत की अगर कोई सुरक्षा संबंधी चिंता हो, तो उसे दूर करे। भारत के पड़ोस में अतीत में इसी तरह की आर्थिक परियोजनाओं, खासतौर पर — पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरने वाला चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) तथा श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह — के कारण दोनों देशों में कई तरह की गलतफहमियां हो गई थीं तथा पहले से ही जटिल सुरक्षा चिंताएं और भी ज्यादा जटिल हो गई थीं।
हालांकि यह परियोजना अपनी शुरूआती अवस्था में है, भारत के लिए महत्वपूर्ण यही होगा कि वह जवाबी रणनीति तैयार करे। सबसे पहले, भारत के लिए यही मुनासिब होगा कि वह भारत-म्यांमार सीमा से उत्पन्न होने वाले किसी भी चीनी खतरे से प्रभावी रूप से निपटने के लिए अपनी सुरक्षा तैयारियों को पुख्ता करे।
दूसरा, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में ढांचागत परियोजनाओं के काम में तेजी लानी होगी, ताकि किसी भी तरह की आकस्मिक स्थिति होने पर भारत अपने सैनिकों को तेजी से इकट्ठा कर सके। तीसरा,अंतरिक्ष संबंधी उपकरणों या उपग्रहों की तैनाती सहित सभी गतिविधियों पर नजर रखना, ताकि भारत बेखबर न बना रहे। चौथा और सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि भारत को म्यांमार में अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाना होगा तथा म्यांमार के बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाने के काम में जोश से जुटना होगा।
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