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समुद्री सुरक्षा को व्यापक समुद्री शासन व्यवस्था से जोड़ने पर समुद्री क्षेत्र में वैश्विक सहयोग को बढ़ाने में सहायता मिलेगी.
ये लेख इंडो-पैसिफिक में टिकाऊ विकास श्रृंखला का हिस्सा है.
सदियों से महासागर- जो हमारे ग्रह के 70 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्से में है- खाद्य, ऊर्जा और आजीविका का एक बड़ा स्रोत रहे हैं और अभी भी हैं. आज महासागर का कोई भी हिस्सा मानवीय असर से अछूता नहीं है जो साफ़-तौर पर समुद्री शासन व्यवस्था में बढ़ोतरी की ज़रूरत पर ज़ोर देता है ताकि समुद्री क्षेत्र के ख़तरों का समाधान किया जा सके. इन ख़तरों में अवैध और बिना जानकारी के मछली पकड़ना, ग़ैर-टिकाऊ और विनाशकारी मछली पकड़ने का तरीक़ा, ठौर-ठिकाने का विनाश, आक्रामक प्रजातियों की शुरुआत, समुद्री शोरगुल, भूमि आधारित एवं जहाज़ आधारित स्रोतों से प्रदूषण, जहाज़ों की टक्कर (समुद्री जीवन और जहाज़ों के बीच टक्कर), तेल एवं गैस निकालना, और खनिजों का खनन शामिल हैं. इन ख़तरों की वजह से पानी के प्रवाह में परिवर्तन, महासागर में गरमाहट, महासागर का अम्लीकरण और ऑक्सीज़न स्तर में कमी आती है. इन सभी कारणों से समुद्री जीवन प्रभावित होता है और मानवीय गतिविधियों में काफ़ी बढ़ोतरी के कारण महासागरीय क्षेत्र को ख़तरा काफ़ी बढ़ गया है.
समुद्री सुरक्षा में सिर्फ़ समुद्रों से होने वाले आर्थिक फ़ायदों की वजह से भू-राजनीतिक अनिवार्यता शामिल नहीं है बल्कि विशाल पहलू शामिल हैं जो मानव प्रेरित हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप ख़राब सामाजिक-आर्थिक असर से संबंधित हैं.
समुद्री संचय का टिकाऊ उपयोग पृथ्वी के पानी को जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित मानवीय प्रदूषण और पर्यावरणीय दुर्दशा से बचाने के लिए एक ज़रूरी क़दम है. मछलियों के भंडार जैसे समुद्री संसाधन जहां तटीय इलाक़ों में रहने वाले लोगों के जीवन और आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं, वहीं समुद्री विस्तार कई तरह के अपरंपरागत सुरक्षा ख़तरों के लिए अवसर का निर्माण करता है जिसका ज़िक्र ऊपर भी किया गया है. समुद्री सुरक्षा में सिर्फ़ समुद्रों से होने वाले आर्थिक फ़ायदों की वजह से भू-राजनीतिक अनिवार्यता शामिल नहीं है बल्कि विशाल पहलू शामिल हैं जो मानव प्रेरित हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप ख़राब सामाजिक-आर्थिक असर से संबंधित हैं. समुद्री सुरक्षा के इस ख़ास पहलू की तरफ़ ध्यान देने वाली कार्य प्रणाली की स्थापना वास्तव में बताती है कि समुद्री सुरक्षा के मुद्दे को हर हाल में समुद्री शासन व्यवस्था से जोड़ देना चाहिए ताकि वैश्विक अभियान के लिए सोच-समझकर क़दम उठाया जा सके.
वैश्विक विरासत के रूप में महासागरों के लिए सभी देशों के सुविचारित और संगठित कोशिश की ज़रूरत है. संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में एसडीजी-14 विशेष रूप से टिकाऊ विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और टिकाऊ इस्तेमाल से जुड़ा हुआ है और इसलिए समुद्री शासन व्यवस्था की तरफ़ टिकाऊ कोशिशों के साथ सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. एसडीजी-14 के द्वारा समुद्रों के लिए अलग लक्ष्य की मान्यता 2030 एजेंडा और यूनिसेफ प्रक्रिया के बीच एक पुल की भी अनुमति देता है. एसडीजी 14 को कार्यवाही योग्य बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी हिस्सेदारों की भागीदारी मांगी है. इसके लिए 10 लक्ष्यों और 10 सूचकों की प्राप्ति के ज़रिए “इनोवेटिव नई साझेदारी” का इस्तेमाल किया गया है. इन लक्ष्यों में शामिल हैं सतत तरीक़े से मछली पकड़ना, पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा और जीर्णोद्धार, समुद्री प्रदूषण में कमी और सतत तरीक़े से मछली पकड़ने की आदत का इस्तेमाल करने पर आर्थिक लाभ में बढ़ोतरी.
अलग-अलग देशों को समुद्री सुरक्षा को बेहतर बनाने की कोशिश के विस्तार के तौर पर नीली अर्थव्यवस्था के विकास और साधन हासिल करने के लिए निवेश करने में प्रोत्साहित करना चाहिए.
समुद्री सुरक्षा और समुद्री शासन व्यवस्था में संबंध इस तथ्य से पैदा होते हैं कि अलग-अलग देशों के द्वारा प्रभावशाली समुद्री सुरक्षा के उपायों को अपनाना सीधे तौर पर समुद्री शासन व्यवस्था की स्थापना से जुड़ा हुआ है. ये इसके बदले विकासात्मक सहयोग और समुद्री संसाधनों के टिकाऊ उपयोग को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है. इस काम में आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए साझेदारी, सामाजिक जागरुकता को बढ़ाना, कार्यवाही योग्य उद्देश्यों की समय-समय पर निगरानी, नीतिगत स्तर की चर्चा को बढ़ाना और उचित हिस्सेदारों की भागीदारी एवं समुद्री शासन व्यवस्था को लेकर सूचना और सर्वश्रेष्ठ व्यवहार को साझा करके हस्तक्षेप होना चाहिए. इसके अतिरिक्त ये नीली अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है जो न सिर्फ़ समुद्र के तटीय क्षेत्रों से संबंधित है बल्कि वहां रहने वाले लोगों और संसाधनों से भी. इसलिए अलग-अलग देशों को समुद्री सुरक्षा को बेहतर बनाने की कोशिश के विस्तार के तौर पर नीली अर्थव्यवस्था के विकास और साधन हासिल करने के लिए निवेश करने में प्रोत्साहित करना चाहिए. हालांकि सबसे पहली और ज़रूरी चीज़ है ये मानना कि समुद्री सुरक्षा के उपायों में कमी या अपर्याप्त समुद्री सुरक्षा सभी देशों और सभी लोगों को प्रभावित करती है.
एसडीजी 14 के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) का काम महत्वपूर्ण है क्योंकि दूसरे पहलुओं समेत आईएमओ अंतर्राष्ट्रीय नौपरिवहन (जहाज निर्माण, डिज़ाइन, उपकरण, संचालन, कार्मिक आवश्यकता और नियंत्रण) की सुरक्षा को बेहतर करने और जहाज़ों के आवागमन से प्रदूषण को रोकने के लिए जवाबदेह है- ये दोनों काम एसडीजी 14 के लिए महत्वपूर्ण हैं. चूंकि वैश्विक वाणिज्य का बड़ा हिस्सा समुद्री रास्तों के इस्तेमाल पर निर्भर है, इसलिए आईएमओ समुद्री जहाज़ के आवागमन के दौरान समुद्री पर्यावरण को नुक़सान से बचाने और ऊर्जा सक्षम बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. समुद्री जीवों की सुरक्षा के लिए आईएमओ को सौंपे गए अधिकारों में जहाज़ों से शोर में कमी, जहाज़ों से नुक़सानदेह कूड़े एवं गंदगी को समुद्र में बहाने पर पूरी तरह प्रतिबंध और जहाज़ों एवं समुद्री जीवों के बीच टक्कर से परहेज के लिए उपायों को अपनाना शामिल हैं. इस व्यापक पहल के अलावा तटीय प्रबंधन भी मछली पकड़ने के तौर-तरीक़ों के प्रबंधन और नियमन के लिए एक अकाट्य तत्व है. एसडीजी 14 समुद्री शासन व्यवस्था और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए रीढ़ की हड्डी है क्योंकि सभी एसडीजी लक्ष्यों का 38 प्रतिशत प्राप्त करना महासागरीय निरंतरता पर निर्भर है. परंपरागत के साथ-साथ अपरंपरागत सुरक्षा ख़तरों को कम करने में एसडीजी 14 का महत्व अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं किया जा सकता है.
एसडीजी 14 समुद्री शासन व्यवस्था और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए रीढ़ की हड्डी है क्योंकि सभी एसडीजी लक्ष्यों का 38 प्रतिशत प्राप्त करना महासागरीय निरंतरता पर निर्भर है. परंपरागत के साथ-साथ अपरंपरागत सुरक्षा ख़तरों को कम करने में एसडीजी 14 का महत्व अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं किया जा सकता है.
लेकिन इसके साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सभी तरीक़ों- समुद्री शासन व्यवस्था इसका कोई अपवाद नहीं है- के लिए एक मुख्य चुनौती प्रवर्तन है. यही वजह है कि राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के आगे समुद्री क्षेत्र की शासन व्यवस्था ज़्यादा मुश्किल हो जाती है. इसके अतिरिक्त अंतर क्षेत्रीय दृष्टिकोणों जैसे कि पारिस्थितिकी तंत्र के दृष्टिकोण को सूचित करने में पर्याप्त वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक साधनों की कमी मुद्दों में राहत देने के संबंध में चुनौती का निर्माण करती है. इस प्रकार समुद्री सुरक्षा को बेहतर बनाने का दृष्टिकोण शायद समुद्री शासन व्यवस्था को बढ़ाने के दीर्घकालीन लक्ष्य के बदले अल्पकालिक पद्धतियों में फंसा रहेगा. इस तरह संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून संधि (यूएनसीएलओएस) जैसे तौर-तरीक़े और आईएमओ के द्वारा की गई अलग-अलग पहल एक समग्र परिकल्पना और पूरे समाज के लिए दृष्टिकोण की अनुपस्थिति में अमल लाने में सीमित बनी रहेगी.
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Pratnashree Basu is an Associate Fellow, Indo-Pacific at Observer Research Foundation, Kolkata, with the Strategic Studies Programme and the Centre for New Economic Diplomacy. She ...
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