Published on Oct 22, 2018 Updated 0 Hours ago

जब तक भारत सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति तेज नहीं करता, चीन के साथ भावी टकराव की स्थिति में उसे गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

सीमा पर बुनियादी ढांचा: निर्माण स्पर्धा में चीन से अभी भी पिछड़ रहा है भारत

डोकलाम में भारत और चीन के बीच 73 दिनों तक चले सीमा संकट को करीब एक साल बीत गये हैं। उस संकट और भारत चीन सबंधों पर उसके प्रभावों पर बात करें तो यहां ये याद करना बिल्कुल समयानुकूल है कि डोकलाम एक ऐसा अपवाद है जहां भारतीय सेना थोड़े बेहतर बुनियादी ढांचे की वजह से चीनी सेना पर तुलनात्मक रूप से थोड़ी भारी नजर आती है।

हांलाकि, तुलनात्मक रूप से बात करें तो बाकी सीमा पर बुनियादी ढांचे की स्थिति काफी खराब है। ये बात सच है कि, जब तक भारत सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति तेज नहीं करता, चीन के साथ भावी टकराव की स्थिति में उसे गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

भारत उप थल सेनाध्यक्ष ने रक्षा मंत्रालय से संबंधित संसद की स्थायी समिति को दिये बयान में सेना को 2018-19 के दौरान पर्याप्त कोष आवंटित नहीं करने पर गंभीर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने “उत्तरी सीमा पर चीन द्वारा बड़े पैमाने सड़कें बनाने और बुनियादी ढांचे संबंधी विकास”  का जिक्र करते हुए ज्यादा संसाधनों के आवंटित की दलील दी थी, ऐसी हालत में जबकि बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आवंटित संसाधन काफी कम पड़ रहे हैं।

सीमावर्ती क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की मौजूदा खराब स्थिति के लिए दोषपूर्ण नीति जिम्मेदार है जो कई दशकों से लागू है। भारत की राजनीतिक, गैर सैनिक नौकरशाही और सैन्य नेतृत्व का मानना था कि भारत-चीन सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण से भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ेगी क्योंकि ये चीन को आक्रमण के लिए उकसाने का काम करेगा।

इस तरह की सोच पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के 2010 के बयान से भी जाहिर होती है जब उन्होंने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के एक कार्यक्रम में कहा था कि “पहले ये धारणा थी कि दूरदराज इलाकों में अगम्यता दुश्मनों के लिए एक प्रतिरोधक के रूप में काम करेगी।”  उन्होंने ये स्वीकार किया था कि ये एक “गलत दृष्टिकोण” था। उन्होंने कहा कि सरकार अब सीमावर्ती इलाकों में सड़कों, सुरंगों और हवाईपट्टियों को बेहतर बनाने के लिए अनेकों उपाय कर रही है। इसी तरह की राय व्यक्त करते हुए बीआरओ के महानिदेशक एके नंदा ने कहा था कि सीमावर्ती इलाकों में खराब बुनियादी ढांचा भौगोलिक स्थिति की वजह से है लेकिन “हमारा विचार अब बदल गया है और हम अपनी क्षमता के मुताबिक आधुनिक उपकरणों और श्रमिकों की मदद लेकर इसका निर्माण कर रहे हैं।”

इस नीति में 2006 में उस समय बदलाव आया था जब राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर नीति निर्धारण का प्रमुख दायित्व संभालने वाली सुरक्षा से संबंधित कैबिनेट समिति ने एलएसी के पास रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 73 सड़कों को बेहतर बनाने का फैसला लिया था।

लेकिन एक दशक से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी जमीनी स्तर पर काफी कम काम नजर आता है। ये बात हैरत में डालने वाली है, उस स्थिति में जबकि भाजपा सरकार ने बुनियादी ढांचे के निर्माण पर जोर दिया है विशेषकर भारत-चीन सीमा पर।

इस वर्ष के प्रारंभ में गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु ने संसद में कहा था कि सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास का काम “खतरे की संभावना, संसाधनों की उपलब्धता और भूभाग, ऊंचाई जैसे विभिन्न अन्य कारकों के आधार पर तय किया जाता है।” भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के महानिदेशक कृष्णा चौधरी ने भारत-चीन सीमा की स्थिति पर कहा कि 176 में से 172 नयी सीमावर्ती चौकियों (बॉर्डर आउटपोस्ट्स) का निर्माण किया जा चुका है और काम तेज गति से आगे बढ़ रहा है। उन्होंने भी ये स्वीकार किया कि भारत सीमावर्ती बुनियादी ढांचे की जरूरतों को लेकर देर से जागा है लेकिन अब “जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश में उन सीमावर्ती इलाकों में सड़क निर्माण कार्य की गति ‘काफी तेज’ है जहां देश की सीमा चीन से लगी हुई है।”

डोकलाम संकट के दौरान रक्षा राज्य मंत्री डा. सुभाष भामरे ने संसद में एक प्रश्न के उत्तर में कहा था “उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्र में भारत-चीन पर 73 सड़कों के निर्माण को मंजूरी (काफी पहले 2006 में) दी जा चुकी है। इनमें से 27 सड़कों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और शेष सड़कों का काम दिसंबर 2022 तक पूरा करने की योजना है।” सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे के रणनीतिक निर्माण कार्य की जिम्मेदारी संभालने वाला बीआरओ कई समयसीमाओं का पालन करने में विफल रहा है और इस वजह से 2022 की समयसीमा के उसके वादे को लेकर भी सवाल उठने लाजिमी हैं।

मंत्री महोदय ने आगे कहा “वन/वन्यजीव/पर्यावरण संबंधी अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल करने में देर, दुर्गम पहाड़ी इलाकों, काम के सीमीत मौसम, भूखंड पर कब्जे में देरी, निर्माण सामग्री की उपलब्धता में कठिनाइयों और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान” की वजह से परियोजनाओं के निर्माण कार्य में विलंब हुआ है। सरकारों में बदलाव के बावजूद ये बहाने एक जैसे रहे हैं। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि भारत-चीन सीमा पर घुसपैठ की घटनाओं में कमी आई है। वर्ष 2015 में सीमा उल्लंघन की 500, 2017 में 70 और इस वर्ष जुलाई तक 200 घटनाएं हुईं थीं। सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे के रणनीतिक निर्माण कार्य की जिम्मेदारी संभालने वाला बीआरओ कई समयसीमाओं का पालन करने में विफल रहा है।बुनियादी ढांचे से संबंधित समस्याओं के अलावा भी भारत को अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

उदाहरण के लिए, भारतीय सीमा पर प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालने वाली सेना, भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और असम राईफल्स जैसी एजेंसियों की बहुलता भी एक मसला है। इसका अर्थ ये हुआ कि सीमा पर गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय दोनों का अधिकार क्षेत्र है और भारत में अलग अलग विभागों और मंत्रालयों के बीच अच्छा समन्वय दूर की कौड़ी है।

दूसरी ओर चीन की सीमा पर सीमावर्ती क्षेत्र की जिम्मेदारी तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के एकमात्र एकीकृत कमांडर पर है। यहां ये बात याद रखनी चाहिए कि चीन ने सीमा की जिम्मेदारी संभालने वाले सैन्य कमान को पीएलए ग्राउंड फोर्सेज के अंतर्गत लाकर इसकी ताकत और बढ़ा दी है।

भले ही भारत में बुनियादी ढांचे  के विकास की गति धीमी है, इसके बावजूद ग्लोबल टाइम्स जैसे मीडिया संगठन ये आरोप लगाने से नहीं चूक रहे कि भारत सीमा पर चौकियों और अन्य अधोसंरचना के निर्माण की उकसाने वाली कार्यवाही कर रहा है। लेकिन भारत के पास सीमा पर बुनियादी ढांचे  के विकास की गति जारी रखने के अलावा कोई चारा नहीं है, यद्यपि इसकी उम्मीद कम है कि इसकी गति ज्यादा तेज होगी।


ये लेख मूल रूप से The Diplomat मैं पब्लिश हुई थी।

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