Published on Jun 30, 2020 Updated 0 Hours ago

सीमाओं की अपनी ख़ुद की भाषा, आयाम और अलग नियम होते है. इसलिए भारत को कूटनीति व् सैन्य दोनों स्तर पर नए और सख्त प्रावधान तलाशने होंगे.

सीमा विवाद: भारत की आक्रमक नीति ने चीन की बौख़लाहट बढ़ाई

पूर्वी लद्दाख इलाके में गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास भारत और चीन की सेनाएं एक-दूसरी के सामने मोर्चा संभाले हुए हैं. हालांकि, दोनों देशों के बीच सुलह की बातचीत सैन्य और कूटनीतिक दोनों स्तर पर जारी है तनावग्रस्त गलवान घाटी,पैंगोंग त्सो झील और हॉट स्प्रिंग से चीनी सेना की संख्या कम होती तो दिख रही है लेकिन चीनी सेना द्वारा बनाये गए पक्के और कच्चे ढांचे अभी भी मौजूद है. चीन अपनी दोहरी चाल चलने से बाज कभी नहीं आएगा जंहा एक तरफ चीन सीमा पर शांति बहाली के लिए शांति वार्ता की दुहाई दे रहा है. वही दूसरी तरफ पूर्वी लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र की तरह ही उत्तरी लद्दाख से गुजरने वाली नियंत्रण रेखा के अति संवेदनशील इलाके डेपसांग में भी भरतीय सैनिकों के गश्त में रुकावट खड़ी करने की कोशिश कर रहा है. सामरिक नज़रिये से डेपसांग काफी अहम् है क्योंकि यहाँ से दौलत बेग ओल्डी, काराकोरम रोड और सियाचिन के रास्ते निकलते है 2013 में भी चीनी सेना इसी वाई जंक्शन पर जमा हुयी तो भारतीय सेना से हफ़्तों तनातनी बनी रही, राजनयिक और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के बाद चीन यहाँ से पीछे हटा था और भारत ने भविष्य में चीन के ऐसी किसी कदम को रोकने के लिए बॉटलनेक के नज़दीक नया पेट्रोलिंग बेस बनकर स्थायी रूप से सेना की तैनाती कर ली थी.

चीन पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि लद्दाख में मौजूदा गतिरोध आम पेट्रोलिंग खींचतान का हिस्सा नहीं है बल्कि ये चीन की उस लड़ाकू रणनीति का हिस्सा है जो डोकलाम के बाद उसने अपनाई. 73 दिन का डोकलाम गतिरोध हालिया वर्षों में सबसे गंभीर टकराव था. उसके बाद अब लद्दाख में ऐसी स्थिति बनी. डोकलाम गतिरोध के बाद चीन की गतिविधियां उसके मंसूबों की साफ तस्वीर पेश करती है. डोकलाम में भले ही गतिरोध समाप्त हो गया था लेकिन चीन की ओर से सैन्य ढांचे का विस्तार करना बंद नहीं हुआ था कुछ मामलों में इनकी LAC से दूरी महज 20 किलोमीटर है. ये ताजा ढांचा निर्माण इस मकसद से किए गए हैं कि चीनी सेना के मोबिलाइजेशन टाइम को कम किया जा सके.  तलों वाली बड़ी इमारतों का आर्मी कैम्प्स की तरह इस्तेमाल, मॉडल गांव, सुरंगे, चार लेन वाली सड़क सब कुछ लाइन ऑफ एक्चुअल (LAC) के पास चीन की इन सभी आक्रामक मुद्राओं का जिक्र उन रक्षा समीक्षाओं में हैं जो 2017 के डोकलाम टकराव के बाद की गईं.

चीन पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि लद्दाख में मौजूदा गतिरोध आम पेट्रोलिंग खींचतान का हिस्सा नहीं है बल्कि ये चीन की उस लड़ाकू रणनीति का हिस्सा है जो डोकलाम के बाद उसने अपनाई. 73 दिन का डोकलाम गतिरोध हालिया वर्षों में सबसे गंभीर टकराव था. उसके बाद अब लद्दाख में ऐसी स्थिति बनी

इन परिसरों के निर्माण के पीछे इनके दोहरे इस्तेमाल का इरादा है. 2017 में डोकलाम गतिरोध के तुरंत बाद चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने LAC के पास अपने ट्रेनिंग कार्यक्रम को तेज कर दिया था. नए ट्रेनिंग मॉड्यूल में लगातार फायरिग, ग्रेनेड फेंकना और कठोर शारीरिक ड्रिल्स शामिल थे. दो नए ट्रेनिंग मैनुअल थे जो 2018 और 2019 में अमल में लाये गए थे बीते कई वर्षों से चीन अपनी रणनीतिक क्षमता बढ़ा रहा है चीन अपनी अति महत्वाकांक्षी परियोजना ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत चीन ने विश्व कई हिस्से में बंदरगाह बना रहा है और इन बंदरगाहों को सड़कों से जोड़ भी रहा है ताकि वो अपनी आर्मी और नेवी को आसानी से मोब्लाइज़ कर सके. ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ चीन की अरबों डॉलर का प्रोजेक्ट है जिसे 2013 में शी जिनपिग ने शुरू किया था. जिनपिग ने सत्ता में आते ही इस पहल की शुरुआत की थी. इस इनिशिएटिव के तहत दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप के हिस्सों को जोड़ना है. इस परियोजना के माध्यम से चीन जमीन से लेकर समंदर तक सड़कों का जाल बिछाने की तैयारी में है.

पिछले वर्ष 2019 में भारत द्वारा जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने के बाद लद्दाख सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण वाला केंद्र शासित प्रदेश बन गया है. चूँकि चीन ने अक्साई चीन के ऊपर कब्ज़ा कर रखा है और यह भू -भाग भौगोलिक रूप से लद्दाख का एक हिस्सा है और चीन की अति महत्वाकांक्षी परियोजना ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ इसी रास्ते से गुजरती है. हालाँकि, इस नए भौगोलिक स्वरुप से परस्पर देशों के मध्य नियंत्रण रेखा कही से भी आहत नहीं होती लेकिन चीन की विस्तारवादी रवैये को एक गहरा झटका जरूर कहा जा सकता है भारत सरकार के इस कदम से चीन के मकसद में नई बाधा आ खड़ी हुयी है इसीलिए चीन ने इस क्षेत्र के नए विभाजन पर गहरी आपत्ति जताई थी यह प्रयास चीन द्वारा भारत के सीमवर्ती क्षेत्रों में अतिक्रमण तथा सीमा सुरक्षा के नज़रिये से एक अत्यंत सूझबूझ भरा महत्वपूर्ण कदम है भारत द्वारा किया गया यह प्रयास चीन को रास नहीं आया. चीनी रणनीति भारत की बढ़ती रणनीतिक और सामरिक ताकत को अवरुद्ध कर सीमित करने की योजना है. चीन की रणनीतिक तैयारी किसी युद्ध की मंशा से नहीं बल्कि सीमा पर तनाव बढाकर दमखम दिखाने की चाल है चीन दक्षिण सागर में भी ऐसी रणनीति अपनाता रहा है भारत चीन सीमा विवाद, चीन एक तरीके से सांकेतिक तौर पर भारत को सीमा विवाद के जरिये धमकाने की कोशिश कर रहा है लेकिन चीन को यहाँ वांछित फल मिलने के कोई आसार नहीं दिख रहे है क्यूँ कि चीन की मंशा को भांपते हुए भारत पहले से ही समयोचित, संयमित रणनीतिक और सामरिक कदम की तैयारी किये हुए है चीन कई तरह के नए पैंतरे अपना रहा है चीनी सेना तनावग्रस्त इलाके से अपने कुछ सैनिकों को थोड़ा पीछे कर भारत को उलझाते हुए अन्य साजो सामान तथा निर्माण सम्बन्धी तैयारियां मजबूत करने में लगा है इधर भारतीय सेना चीन की हरकतों को भांपते हुए सीमा पर मिरर इमेज की रणनीति अपनाये हुए पूरी तरह तैयार है यानी एलएसी के प्रत्येक इलाके में चीनी सेना के बिलकुल बराबर स्तर पर भारतीय सेना भी तैनात है.

भारतीय सेना ने न केवल अपनी नई युद्धक रणनीति से चीन को मुहतोड़ जवाब दिया, वहीं अपने मिलिट्री ढांचे को भी बढ़ाया है भारतीय सेना ने पिछले साल सितंबर और अक्टूबर में लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के अग्रिम इलाकों में दो अभ्यास किए.भारतीय सेना ने पिछले साल पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में एक महीने के अंतर पर दो अहम वॉर गेम्स (सैन्य अभ्यास) किए थे. ये अपनी तरह के पहले अभ्यास थे जो चीन से अपनी युद्ध क्षमताओं का आकलन करने के लिए किए गए. इन्हें एक तरह से चीन की आक्रामक मुद्राओं के जवाब के तौर पर देखा गया था. इससे अगले महीनों में चीनी गतिविधियां अधिक आक्रामक और असामान्य रहीं.इसके एक महीने बाद ही एक और वॉर गेम अरुणाचल प्रदेश में हुआ. इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स (IBG) की क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए ये वॉर गेम त्वांग के पास हुए. इस पर चीन से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था लेकिन इस मसले को राजनयिक चैनलों के माध्यम से हल किया गया था. भारतीय सेना ने सितंबर में पूर्वी लद्दाख में अपने विभिन्न विंग्स के साथ दुर्लभ एकीकृत सैन्य अभ्यास किया था ये अभ्यास क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों के टकराव के कुछ ही दिन बाद हुआ था. इस अभ्यास में टैंक, इंफेंट्री जवान, हेलीकॉप्टर से कूदने वाले पैराट्रर्स, मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री भी शामिल रहे. ये सब तैयारियां चीन के खिलाफ सेना की क्षमताओं के आकलन के लिए थीं. मौजूदा गतिरोध भारतीय सीमा क्षेत्र में सड़क निर्माण तथा बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर हुआ जिस पर चीन ने आपत्ति जता रहा है जब कि चीन लगातार वर्षों से सभी सीमाओं पर मनमाने ढंग से निर्माण करता आ रहा है. सैन्य अड्डे बना रहा है. ऐसे में उसके मंसूबों को समझना तथा उन्हें रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों (सीमा क्षेत्र में बुनियादी ढांचा विकास,बेहतर रोड कनेक्टिविटी, पुल तथा संचार सुविधा इत्यादि) को चीन जवाबी कार्यवाही के तौरपर देख रहा है.

चीन की रणनीतिक तैयारी किसी युद्ध की मंशा से नहीं बल्कि सीमा पर तनाव बढाकर दमखम दिखाने की चाल है चीन दक्षिण सागर में भी ऐसी रणनीति अपनाता रहा है भारत चीन सीमा विवाद, चीन एक तरीके से सांकेतिक तौर पर भारत को सीमा विवाद के जरिये धमकाने की कोशिश कर रहा है

पड़ोसी देशों से सीमा पर लगातार होने वाली घुसपैठ की गतिविधियों को मद्देनज़र रखते हुए भारत सरकार ने एक तरफ एलएसी और दूसरी तरफ एलओसी से सटे केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में बेहतर बुनियादी ढांचा और रोड कनेक्टिविटी के साथ-साथ अब संचार नेटवर्क के विस्तार पर भी जोर दे रही है केंद्र सरकार ने यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) के तहत 58 नए मोबाइल टॉवर लगाने की मंजूरी दी है तथा उत्तराखंड में चीन से लगे सीमा क्षेत्र में सड़कों के निर्माण का कार्य फिर से शुरू कर दिया गया है इससे सेना को सीमा पर होने वाली अतिक्रमण सम्बन्धी गतिविधियों की जानकारी उचित समय पर मिलने में मदद होगी तथा सेना को जवाबी कार्यवाही की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिलेगा और घुसपैठियों को सीमा के अंदर आने से पहले ही रोका जा सकेगा अभी वर्तमान समय में सीमा पर संचार सुविधा की कमी के कारण सीमा पर होने वाले अतिक्रमण की शुरूआती जानकारी न मिल पाने के कारण जवाबी कार्यवाही में देर हो जाती है और जिसका परिणाम गलवान घाटी में हुयी हिं झड़प तथा डोकलाम में हुयी घटनाओं के रूप में सामने आते है सीमा पर बुनियादी ढांचा तथा संचार सुविधाओं के विकास से हमे भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने में मदद मिलेगी 1949 के बाद बिना गोली चले हुयी. इस सबसे घातक हिंसक झड़प के मायने अलग है. दोनों देशों को सीमाओं को लेकर रणनीति में बदलाव की ज़रुरत है भविष्य में ऐसे तनाव से बचने के लिए भारत चीन को सीमाओं के लेकर 2013 में हुए करार से आगे सोचने का समय है. सीमाओं की अपनी ख़ुद की भाषा, आयाम और अलग नियम होते है. इसलिए भारत को कूटनीति व् सैन्य दोनों स्तर पर नए और सख्त प्रावधान तलाशने होंगे. सेनाओं के बीच संकल्पों को व्यवस्थित करने के लिए और अधिक प्रभावी तरीके ढूंढ होंगे.

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