Published on Dec 29, 2021 Updated 0 Hours ago

अमेरिका का मौजूदा बाइडेन प्रशासन इस क्षेत्र में अपनी कूटनीतिक गतिविधियां बढ़ाने की जुगत कर रहा है. ब्लिंकन के हालिया दौरे को इसी नज़रिए से देखा जा रहा है.

क्या दक्षिण पूर्व एशिया में अमेरिका के दांव निशाने पर हैं?

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन हाल ही में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की यात्रा पर थे. इस इलाक़े में अपने पहले दौरे की शुरुआत उन्होंने इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से की थी. उसके बाद ब्लिंकन मलेशिया पहुंचे थे. मलेशिया के बाद ब्लिंकन को थाईलैंड जाना था, लेकिन अचानक उन्हें अपना दौरा रद्द करना पड़ा. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक पूरे दौरे में विदेश मंत्री ब्लिंकन के साथ चल रही प्रेस टीम के एक सदस्य के कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने की वजह से ब्लिंकन ने थाईलैंड का दौरा रद्द कर दिया. थाईलैंड में ब्लिंकन का थाई उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री डॉन प्रमुदविनई से मुलाक़ात का कार्यक्रम था. ग़ौरतलब है कि दक्षिण पूर्वी एशिया का ये इलाक़ा हिंद-प्रशांत में अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टकराव और रस्साकशी का अखाड़ा बन गया है. ज़ाहिर है अमेरिका का मौजूदा बाइडेन प्रशासन इस क्षेत्र में अपनी कूटनीतिक गतिविधियां बढ़ाने की जुगत कर रहा है. ब्लिंकन के हालिया दौरे को इसी नज़रिए से देखा जा रहा है. इस पूरी क़वायद के ज़रिए मुख्य रूप से जो संदेश देने की कोशिश की गई है वो ये है- “अमेरिका एक साथी और भागीदार के तौर पर चीन से कहीं बेहतर है, भले ही वो इस इलाक़े में खुल कर ख़र्च ना कर रहा हो.”

 दक्षिण पूर्वी एशिया का ये इलाक़ा हिंद-प्रशांत में अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टकराव और रस्साकशी का अखाड़ा बन गया है. 

हालांकि जनवरी 2021 में सत्ता संभालने के बाद से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने निजी तौर पर दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से संपर्क बनाने का कोई प्रयास नहीं किया है. साफ़ है कि दक्षिण पूर्व एशिया के साथ बाइडेन प्रशासन के जुड़ावों का आग़ाज़ उथल-पुथल भरा रहा है. हालांकि वक़्त के साथ-साथ अमेरिका ने इस इलाक़े के देशों के साथ नज़दीकी बढ़ाने के प्रयास शुरू कर दिए. इसी कड़ी में जून 2021 में अमेरिका के उप विदेश मंत्री वेंडी शेर्मन ने इंडोनेशिया, थाईलैंड और कंबोडिया का दौरा किया. इसके बाद अगस्त 2021 में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी सिंगापुर और वियतनाम की यात्राएं कीं. हालांकि दक्षिण पूर्वी एशिया में अपने साथियों और मित्र देशों के साथ संपर्क स्थापित करने में चीन के मुक़ाबले अमेरिका का रुख़ सुस्ती भरा रहा है. इसी कालखंड में चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी ने आसियान देशों के विदेश मंत्रियों की आमने-सामने हुई बैठक की मेज़बानी कर डाली. इस बड़े जमावड़े में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों को चीन की ओर से आर्थिक सहायता और कोविड-19 से जुड़ी आपात परिस्थितियों के लिए बेरोकटोक मदद मुहैया कराए जाने का भरोसा दिया गया. ऐसे में अमेरिका को भी देर-सवेर इस इलाक़े में अपने कूटनीतिक प्रयासों में तेज़ी लानी ही थी. ज़ाहिर है अमेरिका ने इन उच्चस्तरीय दौरों के ज़रिए दक्षिण पूर्व एशिया के साथ अपने रिश्तों में नई जान फूंकने की क़वायद शुरू कर दी.

हिंद-प्रशांत को लेकर अमेरिका का नज़रिया

14 दिसंबर 2021 को इंडोनेशिया यूनिवर्सिटी में दिए अपने संबोधन में विदेश मंत्री ब्लिंकन ने खुले और मुक्त हिंद-प्रशांत को लेकर अमेरिका का नज़रिया पेश किया. इस सिलसिले में उन्होंने पांच प्रमुख सिद्धांत सामने रखे. इस इलाक़े में समान सोच वाले साथी और मित्र देश भी अमेरिका के इस रुख़ से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं. दरअसल अमेरिका और चीन के बीच प्रत्यक्ष टकराव के हालातों से इतर अमेरिका की सोच सामने रखने के मंसूबे से ये सिद्धांत पेश किए गए. अमेरिका चाहता है कि हिंद-प्रशांत के देश रिश्तों में मज़बूती लाने के उसके इरादे की गंभीरता को समझें. हालांकि दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक करतूतों को स्वाभाविक रूप से रेखांकित किया गया- “दक्षिण चीन सागर में चीन की कार्रवाइयों से सालाना 3 खरब अमेरिकी डॉलर (4 खरब सिंगापुर डॉलर) से ज़्यादा की वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए ख़तरा पैदा हो गया है.” बहरहाल दक्षिण पूर्वी एशिया का ब्लिंकन का ताज़ा दौरा अमेरिकी नेताओं द्वारा अतीत में की गई बयानबाज़ियों और यात्राओं से बिल्कुल अलग था. दरअसल केवल चीन को खरी-खोटी सुनाना इस दौरे का मुख्य मकसद नहीं था. ब्लिंकन के ताज़ा दौरे में इस बात को स्पष्ट करने के गंभीर प्रयास किए गए कि “ज़ोर-ज़बरदस्ती और दबंगई भरे बर्तावों से हटकर तमाम देशों को अपना रास्ता ख़ुद चुनने का हक़ है,” साथ ही “हिंद-प्रशांत अपने आप में स्वायत्त इलाक़ा है. यहां अमेरिका पर केंद्रित इलाक़ों और चीन पर टिके क्षेत्रों के बीच टकराव जैसी कोई बात नहीं है.” यक़ीनन इस दौरे में अमेरिका के रुख़ में बदलाव साफ़-साफ़ देखने को मिला. दरअसल दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों की ओर से बार-बार ये कहा जाता रहा है कि किसी एक पक्ष का चुनाव करने जैसे हालात उनके लिए सुखद और सहज नहीं हैं. लिहाज़ा ऐसा लग रहा है कि अमेरिकी सरकार ने इस बात की ओर ध्यान दिया है.

ब्लिंकन के ताज़ा दौरे में इस बात को स्पष्ट करने के गंभीर प्रयास किए गए कि “ज़ोर-ज़बरदस्ती और दबंगई भरे बर्तावों से हटकर तमाम देशों को अपना रास्ता ख़ुद चुनने का हक़ है.

हिंद-प्रशांत के लिए एक व्यापक आर्थिक तंत्र

अमेरिका द्वारा सामने रखे गए पांच प्रमुख तत्वों से आसियान के सदस्य देशों को हिंद-प्रशांत रणनीति को लेकर अमेरिका के असल इरादों की साफ़ झलक मिली. अमेरिका की रणनीति सिर्फ़ चीन के उभार को रोकना और उसकी काट करना ही नहीं है. पहले सिद्धांत में समस्याओं से खुले तौर पर निपटने और पारदर्शी रूप से नियम तय किए जाने की ज़रूरत को रेखांकित किया गया. साथ ही ये कहा गया कि शासन-प्रशासन पारदर्शी और लोगों की भलाई में संचालित होना चाहिए. दूसरे सिद्धांत में “इलाक़े में और उससे आगे मज़बूत संपर्क स्थापित करने” को लेकर अमेरिकी प्रतिबद्धता ज़ाहिर की गई. तीसरा और सबसे उल्लेखनीय कारक ये है कि अमेरिका ज़रूरत पड़ने पर इस इलाक़े में निवेश करने और वित्तीय तौर पर और ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार है. ऐसी अटकलें लग रही हैं कि बाइडेन प्रशासन हिंद-प्रशांत के लिए एक व्यापक आर्थिक तंत्र के आग़ाज़ की तैयारी कर रहा है. ब्लिंकन की घोषणाओं को इन्हीं अटकलों के मद्देनज़र देखे जाने की दरकार है. दक्षिण पूर्वी एशिया के देश हमेशा से ही अमेरिका से इस क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा निवेश करने की मांग करते आ रहे हैं. ऐसे में आने वाले वक़्त में सामने आना वाला समग्र आर्थिक ढांचा एक सकारात्मक क़दम साबित हो सकता है. अतीत में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का बेहतर विकल्प पेश करने के इरादे से अमेरिका ने ब्लू डॉट कार्यक्रम पेश किया था. बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी से जुड़ी पहल के तौर पर अमेरिका ने ये क़वायद की थी. हालांकि अमेरिका की इन कोशिशों के कुछ ख़ास नतीजे सामने नहीं आए. बहरहाल मौजूदा कोरोना महामारी के चलते चीनी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार पर भी लगाम लगने की आशंकाए जताई जा रही हैं. बीआरआई परियोजनाओं के तहत होने वाले निवेश और प्रगति पर इसका सीधा असर पड़ने की आशंका है. लिहाज़ा अमेरिका इस मौक़े का लाभ उठाते हुए हिंद-प्रशांत के लिए एक माकूल आर्थिक ढांचे को अमल में ला सकता है. इस ढांचे में दक्षिण पूर्व एशिया को केंद्र में रखा जा सकता है. चौथा, अमेरिका ख़ासतौर से महामारी के मद्देनज़र एक मज़बूत हिंद-प्रशांत तैयार करने में मदद करेगा. आख़िर में अमेरिका का लक्ष्य उभरते ख़तरों के बीच हिंद-प्रशांत की सुरक्षा में मज़बूती लाना है. हालांकि इनसे निपटने का तौर-तरीक़ा भी समान रूप से उभरना चाहिेए. गठजोड़ों और भागीदारियों के ज़रिए ऐसा किया जा सकता है.

दक्षिण पूर्व एशिया की ओर बाइडेन सरकार के ठंडे रुख़ से एशिया को लेकर उनके प्रशासन की दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं पर भी सवाल खड़े होने लगे थे. 

म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली अमेरिका का लक्ष्य

विदेश मंत्री ब्लिंकन ने अपने संबोधन में आसियान की केंद्रीय भूमिका पर भी ज़ोर दिया. उन्होंने भरोसा दिलाया कि अमेरिका को अब भी आसियान और उसकी कार्यक्षमता पर विश्वास है. इस सिलसिले में म्यांमार में तख़्तापलट को लेकर ब्लिंकन के रुख़ की मिसाल ले सकते हैं. ब्लिंकन ने साफ़ किया कि म्यांमार की मौजूदा हुकूमत पर हिंसा का इस्तेमाल न करने को लेकर लगातार ज़ोर डाला जा रहा है. साथ ही नाजायज़ तरीक़े से बंदी बनाए गए लोगों को रिहा करने और म्यांमार में बेरोकटोक मानवतावादी सहायता पहुंचने देने को लेकर भी सत्तारूढ़ जुंटा सरकार पर दबाव दिया जा रहा है. म्यांमार में समावेशी लोकतंत्र की बहाली ही अमेरिका का लक्ष्य है. उसने इसके लिए ज़रूरी अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी जुटा लिया है. हालांकि म्यांमार के बारे में दो टूक घोषणाओं के बावजूद ब्लिंकन ने म्यांमार में तख़्तापलट की अगुवाई करने वाले सैनिक नेता मिन ऑन्ग लाइंग और आसियान के बीच ‘पांच-सूत्री सहमति’ को लेकर अमेरिका का समर्थन जताया.

दरअसल दक्षिण पूर्व एशिया की ओर बाइडेन सरकार के ठंडे रुख़ से एशिया को लेकर उनके प्रशासन की दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं पर भी सवाल खड़े होने लगे थे. दक्षिण पूर्व एशिया को लेकर कोई ठोस नीति पेश करने में नाकामी के बीच सिर्फ़ चीन के ख़िलाफ़ बयानबाज़ियों से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हो रहा था. इतना ही नहीं ट्रांस-पैसिफ़िक पार्टनरशिप से बाहर निकलने का ट्रंप प्रशासन का फ़ैसला दक्षिण पूर्वी एशिया के नेताओं के ज़ेहन में अब भी ताज़ा है. लिहाज़ा इन उच्च स्तरीय दौरों से आसियान देशों में निवेश में बढ़ोतरी के वादों के साथ-साथ दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों को अमेरिका की ओर से रिश्तों और जुड़ावों को और गहरा करने से जुड़ी क़वायद किए जाने की भी उम्मीद होगी. इसके लिए दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों को कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रॉग्रेसिव एग्रीमेंट फ़ॉर ट्रांस-पैसिफ़िक पार्टनरशिप और क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी के ज़रिए अमेरिकी समर्थन की उम्मीद होगी. हिंद-प्रशांत में दक्षिण पूर्वी एशिया की भौगोलिक अहमियत को देखते हुए हिंद-प्रशांत को लेकर तमाम देशों की नीतियों में इस इलाक़े को प्रमुखता से शामिल किए जाने की ज़रूरत है. दरअसल इस इलाक़े के साथ चीन का जुड़ाव दोहरे किस्म का है. एक ओर तो ये इलाक़ा दक्षिण चीन सागर में चीन के विस्तारवादी कारनामों का ख़ामियाज़ा भुगतता रहा है, तो वहीं दूसरी ओर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन से सबसे ज़्यादा निवेश हासिल करने वाले देश भी इसी इलाक़े में हैं. ज़ाहिर है अगर अमेरिका हिंद-प्रशांत में चीन की चुनौती से निपटने के लिए गठजोड़ और भागीदारियां क़ायम करने की सोच रहा है तो उसके लिए दक्षिण पूर्व एशिया के साथ रिश्तों में मज़बूती लाना अनिवार्य हो जाता है. इस कड़ी में दक्षिण पूर्व एशिया में बुनियादी ढांचे से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भरपूर आर्थिक निवेश मुहैया कराना भविष्य को देखते हुए समझदारी भरा फ़ैसला हो सकता है. इस सिलसिले में यूएस नेशनल काउंसिल इंडो-पैसिफ़िक कोऑर्डिनेटर कर्ट कैंपबेल ने साफ़ तौर पर कहा है “प्रभावी एशियाई रणनीति और हिंद-प्रशांत को लेकर असरदार रुख़ के लिए दक्षिण पूर्व एशिया में और ज़्यादा सक्रियता दिखानी पड़ेगी.”

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